बाजार पूर्वानुमान
तकनीकी विश्लेषण बनाने में विदेशी मुद्रा बाजार, व्यापारियों को समझना चाहिए और ऐसी शर्तों के रूप में - क्या रुझान है के उपयोग के लिए, चैनल, और समर्थन के स्तर.
डॉव थ्योरी
डाउ केवल विचार के समापन की कीमतों में ले लिया। औसत एक पिछला पीक से अधिक बंद करें या महत्वपूर्ण होने के लिए एक पिछले गर्त से भी कम था। इंट्रा दिन पेनेट्रेशन.
चार्ट पैटर्न
चार्ट पैटर्न तकनीकी विश्लेषण का एक रूप है, एक विधि बाजार की भविष्यवाणी करने का इरादा बदल जाता है और रुझान। चार्ट की स्थिति की सूचना के लिए मदद जहां बाजार जाता.
टेक्निकल इंडीकेटर्स
टेक्निकल इंडीकेटर्स के टेक्निकल इंडीकेटर्स अविभाज्य भाग रहे हैं. वे भविष्य में बाजार आंदोलनों की भविष्यवाणी और बाजार में उन्मुख किया जा करने के लिए एक व्यापारी.
बाजार अनुसंधान - market research
• जबकि बाजार अनुसंधान में, अनुसंधानकर्ता की बाजार का अध्ययन दृष्टि उपभोक्ता पर केन्द्रित होती है, अर्थात उपभोक्ता किसी वस्तु को क्यों खरीदता है? क्रय के पीछे क्या उपभोक्ता समस्याओं एवं अवसरों की पहचान करना एवं उन समस्याओं को हल करने के लिए उचित विधियों की खोज करना है। अतः 'उपभोक्ता समस्याएं ही इसमें अनुसंधानकर्ता के लिए अनुसंधान का केंद्र बिंदु होती है।
प्रयोजन तथा प्रेरणाएं हैं? आदि ।
बाजार अनुसंधान उपभोक्ता मांगों ( क्रय व्यवहार, प्रवृत्ति, प्राथमिकता, प्रतिस्पर्धा, बाजार मांग आदि) के अध्ययन एवं विश्लेषण में सहायता करता है तथा क्रय व्यवहार एवं प्रवृत्तियों में हो रहे परिवर्तनों को बतलाता है।
उपभोक्ता प्रबंधकों के लिए बाजार अनुसंधान की अपेक्षा उपभोक्ता अनुसंधान को अधिक उपयोगिता है, क्योंकि उपभोक्ता अनुसंधान प्रबंधकीय कार्यों का आधार होता है। सम्पूर्ण उपभोक्ता कार्यक्रम की रचना उपभोक्ता अनुसंधान द्वारा प्राप्त परिणामों के आधार पर की जाती हैं। इस प्रकार, बाजार अनुसंधान उपभोक्ता अनुसंधान का एक अंग मात्र है, जबकि उपभोक्ता अनुसंधान का क्षेत्र काफी व्यापक है जिसमें बाजार अनुसंधान उत्पाद अनुसंधान, विज्ञापन अनुसंधान अभिप्रेरणा अनुसंधान, भौतिक वितरण अनुसंधान आदि का शामिल किया जाता है। अग्र प्रदर्शित रेखाचित्र द्वारा इसे आसानी से समझा जा सकता है।
वास्तव में, उपभोक्ता अनुसंधान का कार्य उपभोक्ता समस्याओं एवं अवसरों की पहचान करना, इन समस्याओं को हल करने के लिए उपयुक्त विधियां खोजना तथा उन विधियों को प्रयुक्त करना है। इसका क्षेत्र उपभोक्ता की आवश्यकताओं तथा पसंदगी / नापसंदगी से प्ररम्भ होकर उपभोग के उपरान्त प्राप्त सन्तोष का अनुमान लगाने तक विस्तृत है। इस बीच उत्पाद नियोजन, विक्रय कीमत निर्धारण, विज्ञापन एवं अन्य प्रकार के संवहन तथा उत्पाद वितरण की क्रियाओं के संबंध में अनुसंधान किया जाता है।
एम. जे. बेकर ने उपभोक्ता क्रियाओं के क्षेत्र को निम्न शीर्षकों में स्पष्ट किया है:
उत्पाद उपभोक्ता अनुसंधान
उपर्युक्त विश्लेषण से यह ज्ञात होता है कि उपभोक्ता अनुसंधान का क्षेत्र अत्यन्त व्यापक है। विभिन्न विद्वानों द्वारा दिये गये विचारों के सार को निम्न प्रकार से प्रस्तुत किया जा सकता है।
बाजार के संबंध में :
(1) विद्यमान उत्पादों के बाजार के आकार का विश्लेषण ।
(ii) नवीन उत्पादों के लिए मांग का अनुमान एवं बाजार की विशेषताओं का निर्धारण, आकार और संरचना की प्रवृत्ति का अध्ययन करना ।
(iii) विक्रय पूर्वानुमान और सामान्य व्यावसायिक पूर्वानुमान ।
(iv) बाजार में कार्यरत वितरण वाहिकाओं का ढांचा, मिश्रण तथा संगठन
(v) बाजार के ढांचे को प्रभावित करने वाली आर्थिक एवं वातावरणीय प्रवृत्तियों की प्रकृति
(vi) विभिन्न बाजारों की सापेक्षिक लाभ-अर्जन क्षमता ।
(vii) बाजार में उत्पाद की प्रवृत्ति ।
(viii) आयु, लिंग, आय, व्यवसाय और उपभोक्ताओं के सामाजिक स्तर के अनुसार बाजार का आकार।
(ix) भावी ग्राहकों की भौगोलिक स्थिति, आदत व रीति-रिवाज ।
(x) प्रमुख प्रतिस्पर्धा ।
(ख) वस्तुओं तथा सेवाओं के संबंध में :
नई उत्पाद की ग्राहकों द्वारा स्वीकृति एवं सम्भावय । नये उत्पादों की तुलना वर्तमान उत्पाद से, जो उसकी प्रतिस्पर्धी वस्तु है एवं उनके प्रति क्या रुख है?
वस्तुओं की डिजाइन, पैकेज तथा लक्षणों से संबंधित खोज करना । नये उत्पाद का बाजार में परीक्षण करना।
उत्पाद विविधता में कमी।
विक्रय नीतियों एवं विधियों के संबंध में
(ii) एक सीमित क्षेत्र में विक्रय का लक्ष्य निर्धारित करना ।
(iii) वितरण वाहिकाओं की लागतों का अध्ययन।
(iv) बाजार परीक्षण, स्टाक अंकेक्षण ।
(v) उपभोक्ता पैनल कार्यकल्प ।
(vi) कीमतों का अध्ययन तथा उनका विस्तार ।
(vii) विज्ञापन माध्यमों का चुनाव करना।
(viii) विज्ञापन प्रतिलिपि का अनुसंधान ।
(ix) विज्ञापन प्रभावशीलता का मूल्यांकन ।
(i) लागत उत्पादन विश्लेषण ।
(ii) अल्पकालीन एवं दीर्घकालीन पूर्वानुमान ।
(iii) कीमत और लाभ विश्लेषण।
(iv) निर्यात उपभोक्ता अनुसंधान ।
(v) अभिप्रेरण अनुसंधान
बाहृय तथा वेस्फॉल का मत है कि प्रशासनिक प्रक्रिया के विभिन्न चरणों में उपभोक्ता अनुसंधान का प्रयोग किया जाता है। प्राशासनिक प्रक्रिया में निम्न चार चरण सम्मिलित हैं ।।
(i) तथ्य निर्धारण एवं व्यूहरचनाओं की स्थापना ।
(ii) उपभोक्ता योजना का विकास।
(iii) योजना को कार्यवाही के रूप में परिणातः करना, तथा
(iv) उपभोक्ता योजना की प्रभाशीलता का मूल्यांकन करना।
इनके अनुसार, जब प्रबंधक नयी व्यूहरचना का चयन करता है
तो उपभोक्ता अनुसंधान के उपयोग सूचनाओं द्वारा विभिन्न विषयों पर उपयोगी सूचनाएं प्राप्त कर सकता है। उपभोक्ता योजनाओं का विकास करते समय प्रायः प्रबंधक विभिन्न आधारभूत बाजार खंडों को पहचानने हेतु उपभोक्ता अनुसंधान का उपयोग करता है। उपभोक्ता योजना को लागू करते समय भी प्रबंधक यह जानने हेतु उपभोक्ता अनुसंधान का प्रयोग करता है कि योजना सही दिशा में आगे बढ़ रही है तथा वांछित परिणाम प्राप्त हो रहे है। अंत में, योजना की प्रभावशीलता का मूल्यांकन करने हेतु भी उपभोक्ता अनुसंधान का प्रयोग किया जाता है। अनुसंधान द्वारा प्राप्त सूचनाओं के आधार पर लक्ष्यों एवं वास्तवित परिणामों का मूल्यांकन किया जाता है तथा विक्रय लागत लाभ, उपभोक्ता जागरुकता, क्रयण व्यवहार, प्राथमिकता आदि का यथार्थ ज्ञान किया जाता है। इस प्रकार बाजार की विशेषताओं को मापने, पुर्वानुमान हेतु वांछित सूचनाओं को प्राप्त करने, नव उत्पाद विचारों का मूल्यांकन करने तथा विद्यमान उत्पादों को सुधारने, बेहतर विज्ञापन एवं विक्रय संवर्द्धन निर्णय लेने तथा अनेक लक्ष्यों में उपभोक्ता अनुसंधान का प्रयोग किया जाता है।
बाजार का अध्ययन
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वैश्विक उत्पाद बाजार
वैश्विक उत्पाद बाजार किसी देश या उत्पाद के प्रदर्शन, मांग, वैकल्पिक बाजारों और प्रतिस्पर्धियों की भूमिका के बारे में बताता है। यहां सूचनाएं टेबल, चार्ट और नक्शे में दी गई हैं और यहां आप उत्पाद, उत्पादों के समूह, देश और क्षेत्रीय देश समूहों के बारे में पूछ सकते हैं।
- मौजूदा निर्यात बाजारों का विश्लेषणः किसी भी उत्पाद के लिए निर्यात बाजारों की प्रोफाइल और उसके विभिन्न आयामों का विश्लेषण करता है, उत्पाद के मूल्य, बाजार के आकार और निर्यात संकेंद्रण का मूल्यांकन करता है तथा उन देशों को हाइलाइट करता है, जहां बाजार का आकार बढ़ा है।
- प्राथमिकता बाजारों का पूर्व-चयनः दुनिया के प्रमुख आयातकर्ता देशों की जानकारी देता है, आयात संक्रेंद्रण की सीमा बताता है और उन देशों की जानकारी देता है, जहां किसी उत्पाद विशेष की मांग बीते पांच वर्षों में बढ़ी है।
- वैश्विक और विशिष्ट बाजारों में प्रतिस्पर्धियों का विवरणः किसी उत्पाद विशेष के अग्रणी निर्यातकर्ता देश को चिह्नित करता है, वैश्विक निर्यात या आयात में किसी देश विशेष के भागीदार और पड़ोसी देशों की स्थिति को बताता है।
- किसी बाजार विशेष में उत्पाद विशाखन के लिए अवसरों की समीक्षा करनाः किसी निर्यात बाजार में संबंधित उत्पादों के आयात की मांग का तुलनात्मक विश्लेषण करता है, आयात किए जाने वाले उत्पादों के समान दूसरे उत्पादों को चिह्नित करता है।
- किसी भागीदार देश के साथ मौजूदा और संभावित द्विपक्षीय व्यापार को चिह्नित करनाः वास्तविक द्विपक्षीय व्यापार, भागीदार देशों की कुल आयात मांग और घरेलू देश की समग्र निर्यात आपूर्ति क्षमता का तुलनात्मक अध्ययन करते हुए उत्पाद-विशिष्ट अवसरों को चिह्नित करता है।
- टैरिफ संबंधी सूचनाः विभिन्न देशों को निर्यात के समय लगने वाले टैरिफ या आयात करने वाले देशों द्वारा लगाए जाने वाले टैरिफ संबंधी सूचनाएं देखी जा सकती हैं।
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एक्ज़िम बैंक के इस पोर्टल का उद्देश्य सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों के लिए व्यापार वित्त और ऋण बीमा संबंधी सूचनाओं को सर्वसुलभ बनाना है। हालांकि पहले से कुछ प्लेटफॉर्म हैं, जहां निर्यातकों-आयातकों के लिए डाटा और सूचनाएं उपलब्ध हैं। किन्तु यह पोर्टल निर्यात-आयात से जुड़े हर पहलू से जुड़ी जानकारियां एक जगह उपलब्ध कराता है।
शिक्षा का बाजार और समाज
अब शोध का उद्देश्य ज्ञान प्राप्ति के बजाय केवल डिग्री हासिल करना भर रह गया है।
सांकेतिक फोटो।
ज्योति सिडाना
अब शोध का उद्देश्य ज्ञान प्राप्ति के बजाय केवल डिग्री हासिल करना भर रह गया है। इसका बड़ा कारण यह भी है कि डिग्रियों के बिना शिक्षण संस्थानों में पदोन्नति असंभव हो गई है। जब शिक्षा अपने मूल उद्देश्य से भटक जाए तो उसके परिणाम कितने हानिकारक हो सकते हैं, वर्तमान दौर के संकटों में
इसे समझा जा सकता है।शोध और विकास के बीच गहरा संबंध है। शोध कार्यों के नतीजों के आधार पर ही विकास कार्यों के लिए नीतियां बनाई जाती हैं। इसलिए अकादमिक संस्थानों में किए जाने वाले शोध देश के समग्र विकास की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण होते हैं। विज्ञान नीति पर चर्चा करते हुए एक बार प्रोफेसर जयंत विष्णु नार्लीकर ने कहा था कि भारत सरकार और विभिन्न सरकारों ने विज्ञान एवं अन्य अनुसंधानों को दिशा देने के लिए अनेक शोध संस्थान स्थापित किए हैं, ताकि एक वैज्ञानिक अपने विचार एवं क्रियाओं की स्वतंत्रता के साथ एक स्वायत्तशासी परिवेश में सक्रिय हो सके।
Mainpuri By-Election: शिवपाल के करीबी, तीन हथियारों के मालिक, जानिए कितनी प्रॉपर्टी के मालिक हैं डिंपल के खिलाफ लड़ रहे BJP उम्मीदवार रघुराज सिंह शाक्य
T20 World Cup: फिक्सिंग इस वजह से हुई थी, सबको डर था…, पाकिस्तान की हार के बाद बाजार का अध्ययन जावेद मियांदाद ने फोड़ा ‘बम’
लेकिन इन संस्थानों के प्रशासनिकीकरण, युवा वैज्ञानिकों के लिए शोध संबंधी रोजगार का ह्रास, विश्वविद्यालयों में विज्ञान एवं समाज विज्ञान विषयों की उपेक्षा और इन क्षेत्रों में कार्यरत विशेषज्ञों की तुलनात्मक रूप से कम प्रतिष्ठा आदि ऐसे पक्ष हैं जो भारत की ज्ञान अर्थव्यवस्था के विकास के समक्ष गंभीर चुनौती पेश करते हैं। पिछले कुछ वर्षों से अकादमिक संस्थानों में किए जाने वाले शोध कार्यों की गुणवत्ता पर संदेह किया जाता रहा है। साथ ही वैश्विक पायदान में भी हमारा कोई विश्वविद्यालय उच्च स्थान प्राप्त नहीं कर सका है। ऐसे में सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या वास्तव में उच्च शिक्षण संस्थानों और विश्वविद्यालयों में शोध की स्थिति इतनी खराब है कि उसमें नवाचार, नवीनता, वैधता जैसे तत्वों का अभाव है? अगर ऐसा है तो क्यों? यह सोचने का विषय है?
वर्ष 2020 में कोविड के दौर में वैज्ञानिक शोधों की संख्या में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है। देखा जाए तो लगभग एक लाख से ज्यादा शोध लेख विभिन्न वैज्ञानिक पत्र-पत्रिकाओं में छपे। लेकिन चिंताजनक बात यह है कि इन वैज्ञानिक लेखों की जो बहुस्तरीय बौद्धिक समीक्षा होती थी, अब वह समाप्त-सी हो गई है जिसके कारण अकादमिक धोखाधड़ी और अनैतिक व्यवहार बढ़ गया है। इसलिए वैज्ञानिक शोध आलेखों की संख्या बढ़ने के साथ-साथ गुणवत्ता में गिरावट भी आती गई। देखा जाए तो यह न केवल शैक्षणिक जगत के लिए अपितु समाज व राष्ट्र के विकास के लिए भी गंभीर चिंता का विषय है।
इसमें कोई दो राय नहीं है कि वैज्ञानिक शोध जो एक निश्चित परिणाम लेकर विकसित होने चाहिए, वे अब नहीं हो रहे हैं। ऐसा लगने लगा है कि वर्तमान में हो रहे शोध विशेष रूप से विज्ञान के क्षेत्र में किए जाने वाले शोध बाजार को लाभ पहुंचाने वाली सूचनाएं ही उपलब्ध करवाने में जुटे हैं। जबकि वैज्ञानिक सूचनाएं पूर्वाग्रहों व व्यक्तिगत मूल्यों से रहित और विश्वसनीय होनी चाहिए, न कि बाजार केंद्रित। महामारी के दौर में कुछ दवाइयों के दुष्प्रभाव या किसी टीके से रोगी की मृत्यु होने या किसी अमुक दवा से बाजार का अध्ययन कोविड से पूरी तरह स्वस्थ होने की खबरे आए दिन सुर्खियों में थी। फिर बाद में उनके खंडन या स्पष्टीकरण भी सामने आते रहे। ऐसी सूचनाएं तभी अस्तित्व में आ सकती हैं जब किसी शोध लेख को संबंधित विशेषज्ञों के समूह द्वारा समीक्षा किए बिना प्रकशित कर दिया जाए।
इस तरह की सूचनाओं ने समाज में लोगों में भय और भ्रम की स्थिति उत्पन्न करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। परिणामस्वरूप ऐसी घटनाएं भी सामने आर्इं, जिसमें लोगों ने कोविड की चपेट में आने से पहले ही सिर्फ खौफ और गफलत के कारण अपनी जान तक दे दी। इस तरह की भ्रामक और मिथ्या सूचनाओं को सार्वजानिक करना क्या अकादमिक बेईमानी नहीं कहा जाना चाहिए? कोई भी शोध या सूचना, चाहे वह चिकित्सा के क्षेत्र से संबंधित हो या राजनीतिक, धार्मिक, सामाजिक या फिर अर्थव्यवस्था से जुड़ी हो, बिना किसी बौद्धिक समीक्षा के सार्वजानिक नहीं की जानी चाहिए। यह शोधकर्ता और सूचनादाता की नैतिक जिम्मेदारी होती है। ऐसा न होने पर समाज में फैलने वाली अव्यवस्था और भय के लिए कौन जिम्मेदार होगा? यह विचारणीय विषय है।
इस दौर में ऑनलाइन राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय गोष्ठियों-सम्मेलनों की संख्या भी तेजी से बढ़ी है। इसमें न केवल विषय विशेषज्ञों के विवेचन और विश्लेषणों में भी कमी आई है बल्कि एक सामान्य जन के रूप में विषयों पर विवेचन और विमर्श बढ़ रहे हैं। एक और चुनौती जो सामने आई है, वह यह है कि वेबीनार में बिना सभागिता किए केवल फीस जमा करके या केवल जानकारी संबंधी फॉर्म भर कर ही प्रमाणपत्र लेना आसान हो गया है।
क्योंकि एपीआइ स्कोर इस बात पर निर्भर करता है कि आपके पास अकादमिक कार्यक्रमों में सहभागिता के कितने प्रमाणपत्र हैं, न कि इस बात पर कि आपने कितने शोध आलेख प्रस्तुत किए, उनकी गुणवत्ता और वर्तमान में उनकी प्रासंगिकता क्या है। ऑनलाइन वेबिनार के दौर में हर कोई अधिकाधिक प्रमाण पत्र एकत्र करने में जुटा है। इसलिए क्या यह मान लिया जाना चाहिए कि महामारी का यह दौर शोध एवं सैद्धांतिक विवेचन के ह्रास का दौर है? और यदि यह वास्तव में ह्रास का दौर है तो महामारी के बाद के दौर में शोध की क्या स्थिति होगी, इसका अनुमान लगा पाना कठिन नहीं है।
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