बाहरी सुंदरता से ज्यादा महत्वपूर्ण आंतरिक सुंदरता

कैथल : हमारे चारों ओर सुंदरता ही फैली हुई है। सुबह से ही उसकी अद्भुत छटा के दर्शन होने लगते हैं। उगते सूरज की लालिमा के साथ पक्षियों का चहचहाना, हवाओं का बहना, फूलों और पत्तियों पर ओस की बूदें, चारों ओर मनोरम दृश्य। आज की इस भागती दौड़ती दुनिया में मनुष्य इतना मशीनी हो गया है कि वह सुंदरता का अनुभव ही नहीं कर पाता। सुबह से शाम तक की इस व्यस्त जीवन शैली ने लोगों को इतना अवसरवादी बना दिया है कि वे अपने आस पास की फैली सुंदरता को वह ना तो देख पाते है और ना ही महसूस कर पाते है।

जिस प्रकार प्राकृतिक सौंदर्य का आकलन उसकी सुंदरता से आंका जाता है, उसी प्रकार मनुष्य की सुंदरता का आकलन उसके विचारों एवं उसके स्वभाव से होता है। किसी भी व्यक्ति को महान बनाने में उसकी बाहरी सुंदरता ही नहीं बल्कि उसकी सोच और उसकी विचारधारा अधिक महत्वपूर्ण होती है। बाहरी सुंदरता तो किसी को एक बार प्रभावित करती है, लेकिन व्यक्ति की आंतरिक गुण और उसके संस्कार, विचार, कार्यशैली का प्रभाव चिरस्थाई रहता है।

हम इतिहास में ऐसे किसी भी एक व्यक्ति का उदाहरण नहीं दे सकते, जो कि आंतरिक गुणों के बिना महान बना हो। उन गुणों की नींव बचपन से ही पड़ जाती है। एक बच्चे की परवरिश जिस वातावरण में होती है, वह उसके व्यक्तित्व को निर्धारित करता है। एक बच्चे के समुचित विकास में उसके माता पिता व अध्यापकों को अहम योगदान होता है। इंसान के विचार और संस्कार उसके अभिभावकों व अध्यापकों के विचारों के व्यवहार से प्रेरित होते हैं।

अभिभावक व अध्यापक होने के नाते यह हमारी नैतिक जिम्मेवारी है कि हम बच्चों को प्रकृति के नजदीक लेकर जाए। वे अपना कुछ समय टीवी, बाहरी बार का क्या अर्थ है इंटरनेट, मोबाइल से दूर कहीं प्रकृति के सुंदर नजारे देखते हुए बिताए। सुबह सैर पर जाएं और पक्षियों को चहचहाना सुनें, पेड़ पौधे लगाएं और उनकी देखभाल करें। पक्षियों को दाना डालें, पानी पिलाएं। तब आपको आपकी आंतरिक सुंदरता का अहसास होगा। इससे आपके विचारों में सकारात्मकता का प्रवाह होगा।

-रेखा बिंदलिश, प्रिंसिपल जाट शाईनिंग स्टार पब्लिक स्कूल, कैथल

प्रकृति की सुंदरता बनाए

रखने के लिए करें प्रयास

आज सभी एक दूसरे से ज्यादा सुंदर दिखने की होड़ में लगे हुए हैं। सबसे पहले तो हमारी प्रकृति सुंदर होनी चाहिए, यदि वह सुंदर होगी तो हम स्वयं सुंदर होंगे। प्रकृति को सुंदर बनाने के लिए हमे साफ सफाई का विशेष ध्यान रखना चाहिए और अपने आसपास के क्षेत्र की सफाई रखनी चाहिए। ज्यादा से ज्यादा पेड़ पौधे लगाने चाहिए। प्रकृति सुंदर होगी तो तब देश का आर्थिक विकास भी होगा। लेकिन आज ऐसा नहीं है। आज देश में कई प्रकार की समस्याएं है जो देश के सामने मुंह बाए खड़ी हैं। पहली देश की जनसंख्या तेज गति से बढ़ती जा रही है। इसका सबसे बुरा प्रभाव प्रकृति पर पड़ रहा है। स्थान बनाने के लिए पेड़ों की लगातार कटाई की जा रही है। पेड़ पौधों के कटने से लगातार प्रदूषण बढ़ता जा रहा है। आजकल लोग भी अपने आसपास के क्षेत्र की सफाई पर ध्यान नहीं देते। वह सोचते हैं कि अपना घर साफ होना चाहिए, लेकिन गलियों व सड़कों पर फैली गंदगी की ओर ध्यान नहीं देते। ऐसे लोग बहुत कम जो देश को अपना घर मानते है। इन कारणों से प्राकृतिक सुंदरता नष्ट होती जा रही है। हमे आज तक जो भी मिला है, वह प्रकृति की ही देन है। हम सब को प्रकृति की सुंदरता को बचाए रखने के लिए प्रयास करने होंगे। इतना अधिक प्रदूषण फैल गया है कि सांस लेना तक मुश्किल होता है। हमें शोषण के खिलाफ भी आवाज उठानी चाहिए। यदि हम अपने पर्यावरण को बचाने के लिए कुछ नहीं करेंगे तो अपनी प्रकृति को नहीं बचा पाएंगे। मानव की असली सुंदरता तो उसके गुणों से होती और हर व्यक्ति को प्रकृति को बचाने के गुण को अपने अंदर विकसित करना चाहिए।

पारूल, छात्रा, कक्षा दसवीं, जाट शाईनिंग स्टार पब्लिक स्कूल, कैथल

सुंदरता भी बहुत जरूरी

हमारे चारों ओर कितना सुंदर वातावरण है, हम उसे महसूस कर सकते हैं। किसी पार्क में सैर करते हुए पक्षियों को देखकर हम सुंदरता का अहसास कर सकते हैं। एक बार मुझे और मेरे मित्र को पार्क में एक घायल गिलहरी मिली। वह इसी प्रकार पशु पक्षियों की सहायता करता है। कुछ दिनों में ही उसने गिलहरी का उपचार कर उसे ठीक कर दिया। जब मैने उसे उस गिलहरी को पालने के लिए कहा तो उसने कहा कि मैं इसे कैद नहीं करना चाहता, क्योंकि इसका घर यहीं पर है। किसी की आजादी छीनना सबसे बड़ा पाप है।

सुंदरता का मतलब बाहरी सुंदरता होना नहीं है। मन भी सुंदर होना चाहिए। हमे अपनी प्रकृति को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहिए। प्रकृति पर पड़ने वाला प्रभाव मानव जीवन पर ही पड़ता है। कूड़ा कर्कट यहां वहां नहीं फैलाना चाहिए। इससे प्रदूषण फैलता है। हमें खेतों में कीटनाशक दवाईयों के प्रयोग से बचाना चाहिए और जैविक खेती करनी चाहिए।

हमे अधिक से अधिक पेड़ पौधे लगाने चाहिए, ताकि प्रकृति हरी भरी और सुंदर दिखे। हमे अपने स्कूल व घर एवं आसपास के क्षेत्र में साफ सफाई का विशेष ध्यान रखता चाहिए, ताकि कोई बीमारी ना फैले। हमे कोई ऐसा कार्य नहीं करना चाहिए, जिससे दूसरों की हानि हो। जो भी आप लोगों को समझाना चाहतें है, वह सबसे पहले स्वयं पर लागू करें।

बिटटू नायडू, छात्र, कक्षा दसवीं, जाट शाईनिंग स्टार पब्लिक स्कूल, कैथल

विचारों व चरित्र की सुंदरता

भी रखती बहुत मायने

आज हर कोई सुंदर दिखना चाहता है और हर जगह फैशन का बोलबाला है। कोई अपने बालों को सुंदर बना रहा है तो कोई अपने चेहरे को सुंदर बनाने में लगा हुआ है। लोगों पर पाश्चात्य फैशन का भूत सवार है। आज लोग अपनी भारतीय संस्कृति को छोड़ कर विदेशों की नुकसानदायक चीजों को खरीद रहे हैं। आज भारत में चीन का सामान ज्यादा बिक रहा है। इससे देश की अर्थ व्यवस्था कमजोर हो रही है और भारत का पैसा विदेशों में जा रहा है। आज युवा वर्ग अपने आपको सुंदर बनाने के लिए फैशनेबल कपड़े पहनता है। लेकिन असली सुंदरता तो व्यक्ति के चरित्र से होती है। यदि हमारा चरित्र अच्छा होगा तो हमारी आने वाली पीढ़ी भी हमारे संस्कारों को अपनाएगी। तब हमारी संस्कृति दुनिया की श्रेष्ठ संस्कृति होगी। यदि हमारे विचार व चरित्र बुरा होगा तो लोग हमें खलनायक समझेंगे। हमारे विचार और हमार चरित्र बेदाग होना चाहिए, तभी समाज में हमारी सुंदरता की चमक फैलेगी।

प्रिंस शर्मा, छात्र, कक्षा नौंवी, जाट शाईनिंग स्टार पब्लिक स्कूल, कैथल

सुंदर होने से ज्यादा

जरूरी चरित्रवान होना

आज कल लोग अपने आप को सुंदर दिखाने के लिए न जाने कितने पैसों की बर्बादी करती हैं। हर व्यक्ति अपने आपको सुंदर बनाने के लिए क्रीम, महगे साबुन, तेल, सेंट, महंगे कपड़े का प्रयोग करता है। जबकि यही भावना विद्यार्थियों में तेजी से प्रबल होती जा रही है। विद्यार्थी मौज मस्ती भरा जीवन बिताना चाहते है, जिसमें धन की अधिक बर्बादी होती है। ऐसा जीवन बिताने के लिए विद्यार्थियों को धन भी आसानी से नहीं मिलता। वे परिवार से ही झूठ बोलकर पैसा लेते हैं और ना मिलने पर चोरी करने लगते हैं। यदि कोई व्यक्ति अपनी सुंदरता को लेकर बहुत अधिक पैसा खर्च करता है और उसे दूसरों के साथ गलत व्यवहार करता है तो हम उसे सुंदर नहीं कर सकते। हमें दूसरों के प्रति ऐसा व्यवहार करना चाहिए, जो हमें स्वयं के प्रति चाहते हैं। यदि कोई व्यक्ति सुंदर नहीं है, लेकिन सभी से सदव्यवहार करता है तो वह असल में सुंदर है। किसी भी व्यक्ति की सुंदरता उसके चेहरे से नहीं होती। उसकी सुंदरता उसके व्यवहार, विचार एवं चरित्र से होती है।

क्या आपके बच्चे बार-बार जीभ बाहर निकालते हैं? जानें क्या है इसकी वजह

बच्चों के दांत आने लगते हैं तब वे अक्सर अपनी जीभ बाहर निकालते हैं.

बच्चों के दांत आने लगते हैं तब वे अक्सर अपनी जीभ बाहर निकालते हैं.

Why kids stick their tongue out: बच्चों में बहुत सी आदतें होती हैं जो देखने में मामूली नजर आने के कारण माता-पिता (Paren . अधिक पढ़ें

  • News18Hindi
  • Last Updated : March 30, 2022, 07:29 IST

Why kids stick their tongue out: अगर घर (Home) में छोटे-छोटे बच्चे (Kids) हों तो घर का माहौल खुशनुमा बना रहता है. बड़े होने के साथ-साथ बच्चों में कई प्रकार के परिवर्तन भी होते हैं. बच्चों में बहुत सी आदतें होती हैं जो देखने में मामूली नजर आने के कारण माता-पिता (Parents) उन पर ध्यान नहीं देते, लेकिन हर माता-पिता को अपने बच्चे की छोटी से छोटी आदतों (Habits) की तरफ ध्यान देना चाहिए, नहीं तो हो सकता है कि आगे चलकर बच्चे को सेहत से जुड़ी परेशानियां होने लगें.

इसी क्रम में बच्चों की एक आदत है बार-बार जीभ निकालना. यह आदत बच्चों में खेलने और दूसरे लोगों को चिढ़ाने के लिए हो सकती है. वैसे तो बच्चों के बार-बार जीभ निकालने के पीछे कई कारण हो सकते हैं. तो यदि आपका बच्चा भी बार-बार जीभ बाहर निकालता है तो हम आज आपको उसके पीछे के कारणों के बारे में बताएंगे.

ये हो सकती है वजह

– खेल-खेल में या भूख लगने के कारण
यदि छोटा बच्चा अपना मुंह खोलता है और अपनी जीभ बाहर निकालता है या अपने होठों को जीभ से चाटता है तो हो सकता है कि उसे भूख लग रही हो. इसके अलावा छोटे बच्चे खेल-खेल में या फिर किसी दूसरे बच्चे को चिढ़ाने के लिए भी जीभ बाहर निकालते हैं.

– मुंह से सांस लेने के कारण
ऐसा देखा गया है कि जो बच्चे नाक की जगह मुंह से सांस लेने के आदी होते हैं. वह अक्सर अपनी जीभ निकालते हैं. जब बच्च नाक से सांस नहीं ले पाते या फिर उन्हें नाक से सांस लेने में कठिनाई होती है तो वह मुंह से सांस लेने लगते हैं और इसी वजह से वे जीभ बाहर निकालने के आदी हो जाते हैं. इसके अलावा टॉन्सिल की समस्या भी बच्चों के जीभ बाहर निकालने का एक कारण हो सकती है.

– दांत निकलने की स्थिति में
जब किसी बच्चे के दांत आने लगते हैं तब वह अक्सर अपनी जीभ बाहर निकालते हैं. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि जब बच्चे के दांत निकलते हैं तो वह अपने मुंह में दांतो को महसूस करते हैं और उनके मुंह में हल्की-हल्की खुजली भी होती है तब वे उसे मिटाने के लिए कुछ चबाना चाहते हैं. ऐसे में वे अपनी जीभ को बाहर निकाल कर बाहरी बार का क्या अर्थ है उसे चबाने की कोशिश करते हैं. (Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारियां और सूचनाएं सामान्य मान्यताओं पर आधारित हैं. Hindi news 18 इनकी पुष्टि नहीं करता है. इन पर अमल करने से पहले संबधित विशेषज्ञ से संपर्क करें)

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NCERT Solutions for Class 8 Hindi Chapter 10 - बस की सैर कहानी

NCERT Solutions for Class 8 Hindi Chapter 10 बस की सैर कहानी are provided here with simple step-by-step explanations. These solutions for बस की सैर कहानी are extremely popular among Class 8 students for Hindi बस की सैर कहानी Solutions come handy for quickly completing your homework and preparing for exams. All questions and answers from the NCERT Book of Class 8 Hindi Chapter 10 are provided here for you बाहरी बार का क्या अर्थ है for free. You will also love the ad-free experience on Meritnation’s NCERT Solutions. All NCERT Solutions for class Class 8 Hindi are prepared by experts and are 100% accurate.

Page No 72:

Question 1:

(क) शहर की ओर जाते हुए वल्ली ने बस की खिड़की से बाहर क्या-क्या देखा?

"अब तो उसकी खिड़की से बाहर देखने की इच्छा भी खत्म हो गई थी।"

(ख) वापसी में वल्ली ने खिड़की के बाहर देखना बंद क्यों कर दिया?

(ग) वल्ली ने बस के टिकट के लिए पैसों का प्रबंध कैसे किया?

Answer:

(क) शहर की ओर जाते समय वल्ली ने नहर, उसके पार ताड़ के वृक्ष, घास के मैदान, सुदंर पहाड़ियाँ, नीला आकाश और गहरी खाई देखी। उसने बस की खिड़की से दूर-दूर फैले खेत, हरियाली ही हरियाली देखी।

(ख) उसने रास्ते में एक मरी बछिया देखी जिसे देखकर वह बहुत ही दुखी हुई। बछिया का ख्याल उसे बार-बार सता रहा था, जिससे खिड़की से बाहर देखने का उसका उत्साह ढीला पड़ गया और उसने बाहर देखना बन्द कर दिया।

(ग) वल्ली ने छोटी-छोटी रेजगारी इकट्टी की। अपनी मीठी गोलियाँ, गुब्बारे, खिलौने लेने की इच्छा को दबाया, यहाँ तक कि पैसे इकट्ठे करने के लिए वह गोल घूमने वाले झूले पर भी नहीं बैठी।

Page No 72:

Question 2:

(क) वल्ली की माँ जाग जाती और वल्ली को घर पर न पाती?

(ख) वल्ली शहर देखने के लिए बस से उतर जाती और बस वापिस चली जाती?

Answer:

(क) यदि वल्ली की माँ जाग जाती और वल्ली को घर पर न पाती तो परेशान हो जाती और उसे गाँव में ढूँढ़ने लगती।

(ख) यदि वल्ली शहरे देखने के लिए बस से उतर जाती और बस चली जाती तो वह छोटी बच्ची शहर में खो भी सकती थी।

Page No 73:

Question 3:

"ऐसी छोटी बच्ची का अकेले सफ़र करना ठीक नहीं।"

(क) क्या तुम इस बात से सहमत हो? अपने उत्तर का कारण भी बताओ।

(ख) वल्ली ने यह यात्रा घर के बड़ों से छिपकर की थी। तुम्हारे विचार से उसने ठीक किया या गलत? क्यों?

(ग) क्या तुमने भी कभी कोई काम इसी तरह छिपकर किया है? उसके बारे में लिखो।

Answer:

(क) हाँ! हम इस बात से सहमत हैं। एक छोटी बच्ची का अकेले सफ़र करना ठीक नहीं है। वल्ली एक नादान बच्ची है, रास्ता भी भूल सकती है। कोई उसे बहका कर भी ले जा सकता है।

(ख) उसने यह गलत किया। इससे वह अपने परिवार से बिछुड़ सकती थी।

(ग) नहीं हमने कोई काम छिपकर नहीं किया। कभी-कभी कापी के पन्ने ज़रूर फाड़े हैं। जब भी माँ को इस बात का पता चला हमें डाँट पड़ी है।(इस प्रश्न का उत्तर हर छात्र के लिए अलग-अलग होगा क्योंकि यह प्रश्न हर छात्र से पूछा गया है।जहाँ तक संभव हो छात्र इस प्रश्न का उत्तर स्वयं दें।यह उनके व्यक्तिगत अनुभव पर आधारित है इसलिए यह आवश्यक नहीं है कि हर छात्र का उत्तर यही हो या एक जैसे हों।)

Page No 73:

Question 4:

"मैंने कह दिया न नहीं. ।" उसने दृढ़ता से कहा।

वल्ली ने कंडक्टर से खाने-पीने का सामान लेने से साफ़ मना कर दिया।

(क) ऐसी और कौन-कौन सी बातें हो सकती हैं जिनके लिए तुम्हें भी बड़ों को दृढ़ता से मना कर देना चाहिए?

(ख) क्या तुमने भी कभी किसी को किसी चीज़/कार्य के लिए मना किया है? उसके बारे में बताओ।

Answer:

(क) ऐसी निम्नलिखित बातें हैं जिनके लिए बड़ों को दृढ़ता से मना कर देना चाहिए –

1. अनजान व्यक्तियों के साथ कहीं नहीं जाना चाहिए।

2. यदि घर जाने की बात भी कहें तो भी मना करना चाहिए।

3. किसी को भी मामा, काका आदि नहीं बनाना चाहिए।

(ख) हाँ एक बार हमारे स्कूल के चपरासी ने हमें टॉफियाँ देने की कोशिश की पर हमने मना कर दिया।

Page No 73:

Question 5:

वल्ली को या उसके किसी साथी को घमंडी शब्द का अर्थ ही मालूम नहीं था।

(क) तुम्हारे विचार से घमंडी का क्या अर्थ होता है?

(ख) तुम किसी घमंडी को जानते हो? तुम्हें वह घमंडी क्यों लगता/लगती है?

(ग) वल्ली 'घमंडी' शब्द का अर्थ जानने के लिए क्या-क्या कर सकती थी? उसके लिए कुछ उपाय सुझाओ।

Answer:

(क) हमारे विचार से जो अपनी छोटी-छोटी बातों के सामने भी किसी को अहमियत न दे, उसे घमंडी कहते हैं।

(ख) हमारी एक दोस्त है जो घमंडी है। उससे कोई भी बात करो, वह किसी को महत्व नहीं देती बल्कि अपनी बात को आगे रखने की कोशिश करती है।

(ग) वल्ली 'घमंडी' शब्द का अर्थ जानने के लिए निम्नलिखित उपाय कर सकती थी –

1. माँ से पूछ सकती थी।

2. अपनी टीचर से पूछ सकती थी।

3. अपनी किसी सहेली जो उससे कुछ बड़ी हो, उससे पता कर सकती थी।

Page No 73:

Question 6:

वल्ली ने एक खास काम के लिए पैसों की बचत की। बहुत से लोग अलग-अलग कारणों से रुपए-पैसे की बचत करते हैं। बचत करने के तरीके भी अलग-अलग हैं।

(क) किसी डाकघर या बैंक जाकर पता करो कि किन-किन तरीकों से बचत की जा सकती है?

(ख) घर पर ही बचत करने के कौन-कौन से तरीके हो सकते हैं?

(ग) तुम्हारे घर के बड़े लोग बचत किन तरीकों से करते हैं? पता करो।

Answer:

(क) बैंक में, फिक्स डिपोजिट में, छोटे-छोटे मनी बैंक में जैसे गुल्लक लेकर आदि में पैसे जमा करके पैसों की बचत की जा सकती है।

(ख) गुल्लक में पैसे डालकर, अलग पर्स में जमा करके, कुछ लोग आपस में मिलकर थोड़े-थोड़े पैसे एक साथ जमा करें तो घर पर ही पैसें जमा हो सकते हैं।

(ग) बैंक में जमा करके, फिक्स डिपोजिट से किसान पत्र आदि लेकर घर के बड़े लोग बचत करते हैं।

बाहरी बार का क्या अर्थ है

क्या होते हैं इम्यून सिस्टम, एंटीबाडी, एंटीजन और टी सेल्स?

शरीर का प्रतिरक्षा तंत्र अपने और परायों का भेद समझता है जब भी शरीर पर कोई बाहरी बैक्टीरिया, वायरस या रोगजनक हमला करता है तो यह प्रतिरक्षा तंत्र सक्रिय हो जाता है

By Lalit Maurya

On: Monday 12 April 2021

जीवों का शरीर इस तरह से विकसित हुआ है कि जब उसपर कोई संकट आता है तो अपने आप ही उसे बचाने की प्रक्रिया भी शुरु बाहरी बार का क्या अर्थ है हो जाती है। इसमें शरीर के प्रतिरक्षा तन्त्र यानी इम्यून सिस्टम का बहुत बड़ा हाथ होता है। शरीर का प्रतिरक्षा तंत्र अपने और परायों का भेद समझता है जब भी शरीर पर कोई बाहरी बैक्टीरिया, वायरस या रोगजनक हमला करता है तो यह प्रतिरक्षा तंत्र सक्रिय हो जाता है और रोगजनकों से बचाव की प्रक्रिया शुरू कर देता है। देखा जाए तो यह प्रतिरक्षा तंत्र बहुत ही जटिल होता है और सारे शरीर में फैला होता है। आइए जानने की कोशिश करते हैं इससे जुड़े कुछ जरुरी और बुनियादी सवालों के जवाब:

क्या होता है इम्यून सिस्टम या प्रतिरक्षा प्रणाली?

इम्यून सिस्टम या प्रतिरक्षा प्रणाली शरीर की आंतरिक प्रतिरक्षा प्रणाली होती है जो शरीर की बाहरी खतरों से सुरक्षा करती है। जैसे ही कोई वायरस, बैक्टीरिया या रोगजनक शरीर पर आक्रमण करते हैं तो अपने आप ही यह प्रणाली सक्रिय हो जाती है और इनसे बचाव की प्रक्रिया शुरु कर देती है। यह बहुत ही जटिल प्रणाली होती है, जो पूरे शरीर में फैली होती है। इसमें अनेक रसायन और भिन्न-भिन्न प्रकार की कोशिकाएं होती हैं, जो शरीर की रक्षा के लिए अलग-अलग तरीके से काम करती हैं। ऐसा नहीं है कि यह सिर्फ इंसानों में ही होती है यह अन्य जीवों में भी होती हैं जो संक्रमण से शरीर की रक्षा करती हैं।

क्या होता है एंटीबॉडी?

एंटीबॉडी शरीर में बनने वाले ऐसे प्रोटीन यौगिक होते हैं, जिनका निर्माण हमारा इम्यून सिस्टम शरीर में रोगाणुओं को बेअसर करने के लिए करता है। कई बार संक्रमण के बाद एंटीबॉडीज बनने में कई हफ्तों का समय लग जाता है। इन्हें एंटीबॉडी इम्युनोग्लोब्युलिन (एलजी) के नाम से भी जाना जाता है। सबसे सरल एंटीबॉडी (प्रतिरक्षी) Y आकार का होता है जिसमें 4 पॉलीपेप्टाइड शृंखला शामिल होती है। यह एंटीबॉडी, एंटीजन को समाप्त करके शरीर की संक्रमण से सुरक्षा करते हैं। यह पांच तरह के होते हैं:

  1. इम्यूनोग्लोबुलिन एम
  2. इम्यूनोग्लोबुलिन जी
  3. इम्यूनोग्लोबुलिन इ
  4. इम्यूनोग्लोबुलिन डी
  5. इम्यूनोग्लोबुलिन ए

शरीर के लिए क्यों जरुरी है एंटीबॉडी?

जब कोई व्यक्ति किसी वायरस या रोगजनकों से ग्रस्त हो जाता है तो उनके शरीर में उस वायरस के खिलाफ एंटीबॉडी बनने लगती हैं जो उस वायरस से लड़ती है। जिन लोगों में वायरस या संक्रमण के खिलाफ एंटीबाडी नहीं बनती है उसका मतलब है कि उनकी इम्यूनिटी कमजोर है जबकि जिनके शरीर में ठीक होने के दो सप्ताह के भीतर ही एंटीबॉडी बन जाती है, वो कई वर्षों तक रहती है। इसका मतलब होता है कि उनकी इम्यूनिटी मजबूत है। ऐसा कोरोनावायरस के साथ भी होता है। यही वजह है कि इस बीमारी से स्वस्थ हो चुका व्यक्ति प्लाज्मा डोनेट कर सकता है।

क्या होते हैं टी सेल्स?

शरीर में दो प्रकार की सफेद रक्त कोशिकाएं होती हैं, जिन्हें लिम्फोसाइट्स कहते हैं। यह दोनों ही कोशिकाएं प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया के लिए अहम होती हैं। इनका निर्माण अस्थि मज्जा (बोन मेरो) में होता है। जब शरीर पर किसी एंटीजन का हमला होता है तो इनमें से बी सेल्स उस एंटीजन की पहचान करती हैं। वहीं उससे लड़ने का काम ये टी-सेल ही करते हैं।

यह कोशिका विभिन्न रोगाणुओं से शरीर का बचाव करती है। जब कोई रोगाणु, जैसे कि जीवाणु, विषाणु इत्यादि शरीर में प्रवेश करता है, तो यह एक प्रकार के एंटीबाडी का निर्माण करती है। यह एंटीबाडी उस रोगाणु का मुकाबला करके उसे नष्ट कर देता है। यह कोशिका अपने निर्माण के बाद बाल्यग्रन्थि या थाइमस ग्रन्थि में चली जाती है, वहीं पर इसका विकास होता है। इसलिए इन्हें टी सेल्स कहा जाता है।

क्या होते हैं एंटीजन?

एंटीजन वो आंतरिक और बाह्य पदार्थ हैं, जो शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को एंटीबॉडी पैदा करने के लिए सक्रिय कर देते हैं। यह वातावरण में मौजूद कोई भी तत्व हो सकते हैं जैसे कैमिकल, जीवाणु, विषाणु या फिर अन्य रोगजनक। यह शरीर के लिए नुकसानदेह होते हैं। शरीर में इसका पाया जाना ही इस बात का संकेत है कि शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को एक बाहरी हमले से लड़ने के लिए एंटीबॉडी बनाने पर मजबूर होना पड़ा है। आमतौर पर एंटीजन शरीर के बाहर के रोगाणु होते हैं। जबकि कभी-कभी शरीर के अंदर अपने आप भी एंटीजन बनने लगते हैं जिन्हें ऑटोएंटीजन कहते हैं।

वैक्सीन और एंटीबाडी में क्या होता है अंतर?

वैक्सीन ऐसे रसायन होते हैं जो शरीर को एंटीबॉडी को विकसित करने में मदद करते हैं। जबकि इसके विपरीत एंटीबॉडी रोगजनकों से लड़ने में मदद करती है, जिन्हें प्रतिरक्षा प्रणाली द्वारा विकसित किया जाता है।

कोविड-19 के खिलाफ क्या है इनकी भूमिका?

एंटीबाडी रोगजनकों से बाहरी बार का क्या अर्थ है लड़ने और उन्हें नष्ट करने में अहम भूमिका निभाती है। चूंकि कोविड-19 भी एक तरह का वायरस से होने वाला संक्रमण है। ऐसे में शरीर में मौजूद एंटीबाडी इसकी रोकथाम में अहम भूमिका निभाती है। एक बार जिन लोगों का शरीर किसी वायरस से संक्रमित होने के बाद उनके खिलाफ एंटीबाडी विकसित कर लेता है तो उनमें उस वायरस से लड़ने की क्षमता बढ़ जाती है। यह बात कोरोनावायरस पर भी लागु होती है।

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