Why Rupee Falling: आखिर क्यों गिरता जा रहा है रुपया, जानिए इस रुपये की कहानी. रुपये की ही जुबानी!

डेली न्यूज़

व्यापक व्यापार घाटे के साथ हाल ही में विदेशी मुद्रा भंडार में कमी के कारण भारतीय रुपए के मूल्य में गिरावट दर्ज़ की गई और कुछ ही समय पहले यह अब तक के निचले स्तर पर पहुँच गया। रुपए के मूल्य में हो रही गिरावट आम आदमी से लेकर अर्थव्यवस्था तक सभी के लिये चिंता का विषय बनी हुई है। ऐसे में यह जानकारी होना आवश्यक है कि रुपए के मूल्य में हो रही गिरावट के मायने क्या हैं?

रुपया कमज़ोर या मज़बूत क्यों होता है?

  • विदेशी मुद्रा भंडार के घटने या बढ़ने का असर किसी भी देश की मुद्रा पर पड़ता है। चूँकि अमेरिकी डॉलर को अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा माना गया है जिसका अर्थ यह है कि निर्यात की जाने वाली सभी वस्तुओं की कीमत डॉलर में अदा की जाती है।
  • अतः भारत की विदेशी मुद्रा में कमी का तात्पर्य यह है कि भारत द्वारा किये जाने वाले वस्तुओं के आयात मूल्य में वृद्धि तथा निर्यात मूल्य में कमी।
  • उदहारण के लिये भारत को कच्चा तेल आदि खरीदने हेतु मूल्य डॉलर के रूप में चुकाना होता है, इस प्रकार भारत ने अपने विदेशी मुद्रा भंडार से जितने डॉलर खर्च कर तेल का आयात किया उतना उसका विदेशी मुद्रा भंडार कम हुआ इसके लिये भारत उतने ही डॉलर मूल्य की वस्तुओं का निर्यात करे तो उसके विदेशी मुद्रा भंडार में हुई कमी को पूरा मुद्रा का मूल्य कैसे कम होता है? किया जा सकता है। लेकिन यदि भारत से किये जाने वाले निर्यात के मूल्य में कमी हो तथा आयात कीमतों में लगातार वृद्धि हो रही हो तो ऐसी स्थिति में डॉलर खरीदने की ज़रूरत होती है तथा एक डॉलर खरीदने के लिये जितना अधिक रुपया खर्च होगा वह उतना ही कमज़ोर होगा।

विदेशी मुद्रा भंडार क्या है?

प्रत्येक देश के पास दूसरे देशों की मुद्रा का भंडार होता है, जिसका प्रयोग वस्तुओं के आयत –निर्यात में किया जाता है, इसे ही विदेशी मुद्रा भंडार कहते हैं। भारत में समय-समय पर इसके आंकडे भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा जारी किये जाते हैं।

कैसे मजबूत होता है रुपया और क्यों आती है गिरावट, जानिए

कैसे मजबूत होता है रुपया और क्यों आती है गिरावट, जानिए

नई दिल्ली (बिजनेस डेस्क)। डॉलर में कमजोरी के कारण आखिर रुपए में मजबूती क्यों आती है? जितना मासूम यह सवाल है उतना ही मासूम इसका जवाब भी है। देश की आबादी में एक बड़ा हिस्सा रखने वाले छोटे बच्चे भी अक्सर ऐसे ही मासूम से सवाल अपनों से पूछ बैठते हैं। हम भी आपको बेहद आसानी से समझाने की कोशिश करेंगे कि आखिर डॉलर और रुपए के बीच चलने वाली उठापठक कैसे रुपए की हालत कभी पतली तो कभी मजबूत कर देती है।

रुपए ने पार किया 65 का स्तर, बढ़ गई लोगों की चिंताएं:

गुरुवार को जैसे ही रुपए ने 65 का स्तर पार किया निवेशकों के साथ साथ ऐसे लोगों की चिंताएं बढ़ गईं जिनका सरोकार अक्सर डॉलर के साथ होता है। मसलन अमेरिका जाने वालों को डॉलर चाहिए होता है, विदेश में पढ़ने वाले बच्चों को पैसे भेजने होते हैं जो कि रुपए के हिसाब से ही डॉलर में बदलते हैं। दोपहर तक रुपया 65 के बेहद करीब कारोबार करता रहा।

रुपए की हालत क्यों पतली करता है डॉलर?

रुपए की हालत पूरी तरह मांग एवं आपूर्ति और आयात एवं निर्यात पर निर्भर करती है। दरअसल हर देश के पास उन उन देशों का मुद्रा भंडार होता है जिनसे वो लेनदेन यानी सौदा (आयात-निर्यात) करता है। इसे सामान्य भाषा में विदेशी मुद्रा भंडार कहा जाता है। इसका डेटा आरबीआई की ओर से जारी किया जाता है। इसके घटने और बढ़ने से ही उस देश की मुद्रा की स्थिति बदलती रहती है। जैसा कि डॉलर को वैश्विक करेंसी का रुतबा प्राप्त है लिहाजा रुपए की स्थिति को इसी के सापेक्ष तौली जाती है। भारत अपनी जरूरत का करीब दो तिहाई कच्चा तेल विदेशों से आयात करता है। देश मोबाइल फोन और अन्य इलेक्ट्रॉनिक सामानों का भी बड़े पैमाने पर आयात करता है। कई कार कंपनियां अपनी कार के अधिकांश कल-पुर्जों के लिए आयात पर ही निर्भर होती हैं। दाल और खाद्य तेल भी बड़े पैमाने पर हमारे यहां आयात किए जाते हैं। इसलिए भारत के विदेशी मुद्रा भंडार से ज्यादा रकम बाहर चली जाती है, जबकि उसमें इजाफा उस अनुपात में नहीं होता है जिस अनुपात में वो बाहर जाता है।

उदाहरण से समझिए: भारत की अधिकांश डीलिंग डॉलर में होती है। अगर अब आप अपनी जरूरत का कच्चा तेल, खाद्य पदार्थ और इलेक्ट्रॉनिक्स आइटम्स अधिक मात्रा में मंगवाएंगे तो आपको ज्यादा डॉलर खर्च करने होंगे। इससे आपको सामान तो मिल जाएगा लेकिन आपका मुद्राभंडार थोड़ा कम हो जाएगा। मान लीजिए आप अमेरिका से कुछ डीलिंग कर रहे हैं। अमेरिका के पास 65,000 रुपए हैं और आपके पास 1000 डॉलर। डॉलर का रेट 65 है तो दोनों के पास फिलहाल समान राशि है। अब अगर आपको अमेरिका से भारत में कोई ऐसी चीज मंगानी है जिसकी कीमत आपकी करेंसी के हिसाब से 6,500 रुपए है तो आपको इसके लिए 100 डॉलर चुकाने होंगे। यानी अब आपके भंडार में सिर्फ 900 डॉलर रह गए, लेकिन अमेरिका के पास पहुंच गए 71,500 रुपए, यानी अमेरिका के पास हमसे ज्यादा पैसे हो गए। यानी अमेरिका (विदेशी मुद्रा भंडार में) के पास भारत के जो 65,000 रुपए थे वो तो बने ही रहे, लेकिन भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में पड़े 100 डॉलर भी उसके पास पहुंच गए। अब भारत जब तक इतनी ही राशि यानी 100 डॉलर का सामान अमेरिका को नहीं दे देगा उसकी स्थिति कमजोर ही बनी रहेगी। यह स्थिति जब बड़े पैमाने पर होती है तो हमारे मुद्राभंडार में से रकम काफी तेजी से कमजोर होती है।

Why Rupee Falling: आखिर क्यों गिरता जा रहा है रुपया, जानिए इस रुपये की कहानी. रुपये की ही जुबानी!

Why Rupee Falling: सोमवार को रुपया 78.04 रुपये प्रति डॉलर के स्तर पर बंद हुआ था। सोमवार को एक वक्त ऐसा आया था जब रुपये ने 78.28 रुपये का न्यूनतम स्तर छुआ था। मंगलवार को रुपया मामूली मजबूती के साथ 78.03 रुपये के स्तर पर बंद हुआ। रुपये में गिरावट की वजह विदेशी निवेशकों का पूंजी निकालना और कच्चे तेल की बढ़ती कीमतें हैं।

Why Rupee Falling: आखिर क्यों गिरता जा रहा है रुपया, जानिए इस रुपये की कहानी. रुपये की ही जुबानी!

Why Rupee Falling: आखिर क्यों गिरता जा रहा है रुपया, जानिए इस रुपये की कहानी. रुपये की ही जुबानी!

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कैसे रुपये के गिरने से भारत को हो रहा है नुकसान?
चलिए एक उदाहरण से समझते हैं कैसे रुपये का गिरना एक बड़ी समस्या है। मान लीजिए आपको कोई सामान आयात करने में 1 लाख डॉलर चुकाने होते हैं। इस साल की शुरुआत में रुपये की कीमत डॉलर की तुलना में करीब 75 रुपये थी। यानी तब हमें इस आयात के लिए 75 लाख रुपये चुकाने पड़ रहे थे। आज की तारीख में रुपया 78 रुपये से भी अधिक गिर गया है। ऐसे में हमें उसी सामान के लिए अब 75 के बजाय 78 लाख रुपये से भी अधिक चुकाने होंगे। यानी 3 लाख रुपये का नुकसान। यह आंकड़ा तो सिर्फ 1 लाख डॉलर के हिसाब से निकाला है, जबकि आयात के आंकड़े लाखों-करोड़ों डॉलर के होते हैं। अब आप अंदाजा लगा सकते हैं कि रुपये की वैल्यू गिरने से भारत को कितना नुकसान झेलना पड़ रहा है।

US Fed Rate Hike : अमेरिका में ब्याज दर बढ़ने से दुनिया में क्यों मच जाता है हाहाकार? इस बार हो सकता है 28 साल का सबसे बड़ा इजाफा
क्यों गिरता जा रहा है रुपया?
बाजार सूत्रों के अनुसार घरेलू कारोबार का नीरस माहौल, कच्चे तेल की कीमतों में तेजी और विदेशी पूंजी को भारतीय बाजार से लगातार निकालने के चलते रुपये की कीमत पर असर पड़ा है। वैश्विक तेल मानक ब्रेंट क्रूड वायदा का दाम 0.72 प्रतिशत बढ़कर 123.15 डॉलर प्रति बैरल हो गया। शेयर बाजार के अस्थायी आंकड़ों के अनुसार, विदेशी संस्थागत निवेशक पूंजी बाजार में शुद्ध बिकवाल रहे। उन्होंने सोमवार को शुद्ध रूप से 4,164.01 करोड़ रुपये के शेयर बेचे।

तो फिर विदेशी निवेशक क्यों निकाल रहे हैं पैसे?
मौजूदा समय में अमेरिका में महंगाई दर 40 सालों के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई है और तेजी से बढ़ रही है। मई महीने में यह 8.6 फीसदी दर्ज की गई थी। भारत में भी महंगाई काफी अधिक हो चुकी है और मई में यह करीब 7 फीसदी है। जिस तरह भारत के रिजर्व बैंक ने महंगाई को काबू में करने के लिए पिछले करीब डेढ़ महीनों में दो बार में 90 बेसिस प्वाइंट की बढ़ोतरी की है, वैसे ही अमेरिकी फेडरल रिजर्व बैंक भी बढ़ोतरी करने पर विचार कर रहा है।

अर्थशास्त्रियों का अनुमान है कि यह बढ़ोतरी 28 सालों की सबसे बड़ी बढ़ोतरी हो सकती है। ऐसे में विदेशी निवेशक मुद्रा का मूल्य कैसे कम होता है? शेयर बाजार से अपना पैसा निकाल कर अमेरिका में लगा सकते हैं, जिससे उन्हें अधिक मुनाफा हो। भारत के पूंजी बाजार में विदेशी निवेशक इसीलिए पैसे लगाते हैं, क्योंकि वहां की तुलना में यहां रिटर्न अधिक मिलते हैं। वैसे विदेशी निवेशक दुनिया भर के बाजारों में पैसे लगाते हैं और जहां ये लोग पैसे लगाते हैं, वहां बाजार भागता है।

गिरते रुपये को रोकें कैसे?

साल भर पहले तक एक डॉलर की कीमत 54 रुपये के आसपास थी। लेकिन इस साल मई से रुपये की कीमत गिरने लगी। इस सोमवार को तो रुपया इतना गिरा कि डॉलर की कीमत 61 रुपये तक जा.

गिरते रुपये को रोकें कैसे?

साल भर पहले तक एक डॉलर की कीमत 54 रुपये के आसपास थी। लेकिन इस साल मई से रुपये की कीमत गिरने लगी। इस सोमवार को तो रुपया इतना गिरा कि डॉलर की कीमत 61 रुपये तक जा पहुंची। इसके बाद से रुपये की कीमत में थोड़ा सुधार जरूर हुआ, लेकिन अब भी यह एशिया की सबसे कमजोर मुद्रा है। आपके और हमारे लिए इसका क्या अर्थ है? खासकर जब हमारी कमाई और ज्यादातर खर्च डॉलर में नहीं होते हैं। आटा, दाल-चावल, दूध, अंडे वगैरह हम डॉलर के हिसाब से नहीं खरीदते। हम अपनी गाड़ी में पेट्रोल भरवाने या बस का टिकट खरीदने के लिए डॉलर में भुगतान नहीं करते। अपने लिए मोबाइल फोन या बच्चों के लिए लैपटॉप खरीदते समय भी हमें डॉलर की जरूरत नहीं पड़ती। तो क्या हमें इस गिरते रुपये की चिंता करनी चाहिए? बिलकुल करनी चाहिए। ग्लोबल हो चुकी इस दुनिया में हर देश की मुद्रा की दुनिया की सबसे मजबूत मुद्रा अमेरिकी डॉलर के मुकाबले क्या कीमत है, इसका न सिर्फ उस देश की अर्थव्यवस्था पर असर पड़ता है, बल्कि बाजार में बहुत सारी चीजों की कीमतों पर भी। जैसे- भारत का 75 फीसदी आयात कच्च तेल है, जिसके लिए डॉलर में भुगतान होता है। अगर डॉलर की कीमत बढ़ती है, यानी डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत गिरती है, तो हमें इस आयात के लिए ज्यादा खर्च करना पड़ेगा। नतीजा क्या होगा? हालांकि, सरकार तेल कंपनियों और रिफाइनरियों को पैसा देकर सब्सिडी से इसकी कीमत को कम करने की कोशिश करती है, लेकिन यह काम अनंत काल तक नहीं किया जा सकता। इसलिए तेल कंपनियों के पास इसकी कीमत बढ़ाने के अलावा कोई और चारा नहीं होता। यही वजह है कि पेट्रोल, डीजल और रसोई गैस सभी की कीमत पिछले कुछ समय से लगातार बढ़ रही है। बावजूद इसके कि दुनिया भर में इनकी कीमत इन दिनों स्थिर है। लेकिन क्योंकि रुपये की कीमत गिर रही है, इसलिए हमें और आपको ज्यादा कीमत देनी पड़ रही है।

लेकिन रुपये की कीमत के गिरने का यह हम पर पड़ने वाला अकेला असर नहीं है। सब्जी, अनाज, मीट, मछली वगैरह जो भी चीजें हम खाते हैं, वे जिन ट्रक, टैंपू वगैरह पर लदकर आती हैं, उनके लिए भी डीजल और पेट्रोल की जरूरत पड़ती है। इसका असर माल भाड़े पर पड़ता है, जिससे इन सब चीजों की कीमत बढ़ जाती है। रुपये की गिरती कीमत हम पर और भी कई तरीकों से असर डालती है। जिस भी चीज के उत्पादन में कच्चे माल का आयात होता है, उसकी लागत बढ़ जाती है। इसका अर्थ हुआ कि उपभोक्ता को उसके लिए अपनी जेब ज्यादा ढीली करनी होती है। इसलिए अगर आप कार या स्कूटर खरीदने जा रहे हैं, तो आपको ज्यादा कीमत चुकानी होगी, क्योंकि इनके उत्पादन में कई आयातित चीजों का इस्तेमाल होता है। मोबाइल फोन, टैबलेट, कंप्यूटर और लैपटॉप भी आपको महंगे मिलेंगे, क्योंकि इनके ज्यादातर सामान आयात होते हैं। जो लोग विदेश में पढ़ रहे हैं या पढ़ने जाना चाहते हैं, उन्हें भी अब रुपये की कीमत गिरने के कारण ज्यादा खर्च करना होगा।

लेकिन रुपया इतना ज्यादा गिरा क्यों? इसके लिए हमें अमेरिकी अर्थव्यवस्था को देखना होगा। पिछले कुछ साल में अमेरिका आर्थिक सुस्ती से गुजरा है। कुछ लोग इसे मंदी भी कहते हैं। इस दौरान अमेरिकी अर्थव्यवस्था में ज्यादा बढ़ोतरी नहीं हुई, रोजगार के नए अवसर नहीं पैदा हुए, बेरोजगारी बढ़ी और नए कारोबार में ज्यादा निवेश नहीं हुआ। अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने के लिए अमेरिकी फेडरल रिजर्व (जो हमारे रिजर्व बैंक जैसी ही संस्था है) नोट छापने शुरू कर दिए, ताकि अर्थव्यवस्था में मुद्रा आपूर्ति बढ़ाई जा सके। यह काम आम तौर पर सरकारी बांड खरीदकर किया जाता है, सरकार इस पैसे का इस्तेमाल खर्च और उपभोग बढ़ाने के लिए करती है। इसका एक असर यह भी हुआ कि डॉलर की कीमत कम हो गई। लेकिन इस साल के शुरू में जब अर्थव्यवस्था के अपने रंग में वापस आने के संकेत दिखाई दिए, तो फेडरल रिजर्व ने बांड खरीदने का सिलसिला रोक दिया। इसका अर्थ था बाजार में डॉलर की आपूर्ति का पहले के मुकाबले कम हो जाना। इससे डॉलर की कीमत बढ़ने लगी, जिसकी वजह से वैश्विक निवेशक उन देशों के बाजारों को छोड़ने लगे, जहां की मुद्रा कमजोर है। भारत और दूसरे विकासशील देश इसका शिकार बने। भारत में निवेश करने वाले वैश्विक फंड तुरंत ही अमेरिका के मजबूत बाजार की ओर रुख करने लगे।

इससे भी बुरी बात यह हुई कि भारत की अर्थव्यवस्था सुस्त होने लगी। जहां कभी आठ और नौ फीसदी की विकास थी, वहां अब विकास दर पांच फीसदी के आसपास हो गई। तो क्या इसका अर्थ है कि रुपये की कीमत के गिरने में सब बुरा ही बुरा है? और फिर भारत रुपये की इस गिरावट का मुकाबला कैसे कर सकता है? पहले बात करते हैं गिरते रुपये के फायदे की। जब रुपया गिरता है, तो विदेशी बाजार में भारतीय सामान सस्ता हो जाता है। इससे विदेशी खरीदारों को भारतीय निर्यात ज्यादा आकर्षक लगने लगता है। और अगर निर्यात तेजी से बढ़े, तो डॉलर में कारोबार करने वाले निर्यातकों की आमदनी भी तेजी से बढ़ेगी। इससे हमारा विदेश व्यापार घाटा भी कम हो सकता है। क्योंकि अभी तक हम आयात करने के लिए जितनी विदेशी मुद्रा खर्च करते हैं, उसके मुकाबले कम निर्यात के कारण बहुत कम विदेशी मुद्रा ही हमें मिल पाती है। रुपये की कीमत कम होने के कारण निर्यातकों को फायदा हो सकता है, लेकिन यह इस पर भी निर्भर करेगा कि चीन और दूसरे एशियाई देशों के मुकाबले हमारा माल कहां ठहर पाता है। इसका फायदा भारत के आउटसोर्सिंग उद्योग को भी होगा, खास तौर पर कॉल सेंटर और बिजनेस प्रोसेस आउटसोर्सिंग कंपनियों को। इन सबका कारोबार भी डॉलर में होता है और अब ये सेवाएं विदेशी ग्राहकों के लिए सस्ती पड़ेंगी।

और अब आता है गिरते रुपये का मुकाबला करने का मुद्दा। इसका सबसे अच्छा तरीका है कि भारतीय उद्योगों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को प्रोत्साहित किया जाए। प्रत्यक्ष विदेशी निवेश या एफडीआई के रूप में जो धन आता है, वह भारतीय बाजार के दीर्घकालिक महत्व को देखते हुए आता है। यह शेयर बाजार या मुद्रा बाजार में होने वाला निवेश नहीं है, जो थोड़े से उतार-चढ़ाव से ही बाहर आ जा सकता है। जैसे-जैसे एफडीआई की आमद बढ़ेगी, रुपये की कीमत सुधरेगी। यही वजह है कि सरकार इन दिनों खुदरा बाजार, टेलीकॉम, ऊर्जा और दूसरे क्षेत्रों में एफडीआई लाने की कोशिश तेज कर रही है। निर्यात और विदेशी निवेश को बढ़ाकर ही हम गिरते रुपये को थाम सकते हैं।

2 साल के निचले स्तर पर विदेशी मुद्रा भंडार, डॉलर के आगे रेंग रहा रुपया, आप पर क्या असर?

डॉलर के मुकाबले भारतीय करेंसी रुपया ने पहली बार 81 के स्तर को पार किया है। शुक्रवार को कारोबार के दौरान गिरावट ऐसी रही कि रुपया 81.23 के स्तर तक जा पहुंचा था। हालांकि, बाद में मामूली रिकवरी दिखी।

2 साल के निचले स्तर पर विदेशी मुद्रा भंडार, डॉलर के आगे रेंग रहा रुपया, आप पर क्या असर?

अमेरिका के सेंट्रल बैंक फेड रिजर्व द्वारा ब्याज दर बढ़ाए जाने के बाद भारतीय करेंसी रुपया एक बार फिर रेंगने लगा है। इस बीच, विदेशी मुद्रा भंडार ने भी चिंता बढ़ा दी है। भारत का विदेशी मुद्रा भंडार लगातार सातवें सप्ताह गिरा है और अब यह 2 साल के निचले स्तर पर आ चुका है।

रुपया की स्थिति: डॉलर के मुकाबले रुपया ने पहली बार 81 के स्तर को पार किया है। शुक्रवार को कारोबार के दौरान गिरावट ऐसी रही कि रुपया 81.23 के स्तर तक जा पहुंचा था। हालांकि, कारोबार के अंत में मामूली रिकवरी हुई। इसके बावजूद रुपया 19 पैसे गिरकर 80.98 रुपये प्रति डॉलर के लेवल पर बंद हुआ। यह पहली बार है जब भारतीय करेंसी की क्लोजिंग इतने निचले स्तर पर हुई है।

विदेशी मुद्रा भंडार की स्थिति: आरबीआई के ताजा आंकड़ों के मुताबिक 16 सितंबर को सप्ताह में विदेशी मुद्रा भंडार गिरकर 545.652 बिलियन डॉलर पर आ गया। पिछले सप्ताह भंडार 550.871 अरब डॉलर था। विदेशी मुद्रा भंडार का यह दो साल का निचला स्तर है। अब सवाल है कि रुपया के कमजोर होने या विदेशी मुद्रा भंडार के घट जाने की कीमत आपको कैसे चुकानी पड़ सकती है?

रुपया कमजोर होने की वजह: विदेशी बाजारों में अमेरिकी डॉलर के लगातार मजबूत बने रहने की वजह से रुपया कमजोर हुआ है। दुनिया की छह प्रमुख मुद्राओं मुद्रा का मूल्य कैसे कम होता है? के समक्ष डॉलर की मजबूती को आंकने वाला डॉलर सूचकांक 0.72 प्रतिशत चढ़कर 112.15 पर पहुंच गया है। डॉलर इसिलए मजबूत बना हुआ है क्योंकि अमेरिकी फेड रिजर्व ने लगातार तीसरी बार ब्याज दर में 75 बेसिस प्वाइंट बढ़ोतरी कर दी है।

दरअसल, ब्याज दर बढ़ने की वजह से ज्यादा मुनाफे के लिए विदेशी निवेशक अमेरिकी बाजार की ओर आकर्षित हो रहे हैं। इस वजह से डॉलर को मजबूती मिल रही है। इसके उलट भारतीय बाजार में बिकवाली का माहौल लौट आया है। बाजार से निवेशक पैसे निकाल रहे हैं, इस वजह से भी रुपया कमजोर हुआ है।

असर क्या होगा: रुपया कमजोर होने से भारत का आयात बिल बढ़ जाएगा। भारत को आयात के लिए पहले के मुकाबले ज्यादा पैसे खर्च करने पड़ेंगे। रुपया कमजोर होने से आयात पर निर्भर कंपनियों का मार्जिन कम होगा, जिसकी भरपाई दाम बढ़ाकर की जाएगी। इससे महंगाई बढ़ेगी। खासतौर पर पेट्रोलियम उत्पाद के मामले में भारत की आयात पर निर्भरता ज्यादा है। इसके अलावा विदेश घूमना, विदेश से सर्विसेज लेना आदि भी महंगा हो जाएगा।

विदेशी मुद्रा भंडार पर असर: रुपया कमजोर होने से विदेशी मुद्रा भंडार कमजोर होता है। देश को आयात के लिए ज्यादा पैसे खर्च करने पड़ते हैं तो जाहिर सी बात है कि खजाना खाली होगा। यह आर्थिक लिहाज से ठीक बात नहीं है।

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