स्कैनिंग ब्रेकआउट स्ट्रैटेजीज 3 - गैप अप और ओपनिंग रेंज
गैप और ओपनिंग रेंज ब्रेकआउट
ओपनिंग रेंज ब्रेकआउट न केवल एक प्रसिद्ध बल्कि विशेष रूप से 5-10-15 मिनट के चार्ट का उपयोग करनेवाले इंट्रा डे ट्रेडर्स के लिए सिद्ध किए हुए परिणामों वाली एक बढ़िया स्ट्रैटेजी है। इसे गैप ओपनिंग के साथ कम्बाइन करें और अपनी सफलता की संभावना बढ़ाएँ।
ट्रेडिंग की यह स्टाइल आपके लिए बढ़िया है यदि-
· आप एंट्री और एग्जिट के निर्णय जल्दी ले सकते हैं।
· फ्यूचर्स ट्रेड करते हैं और
· अपने अकाउंट के रिस्क मैनेजमेंट के लिए बहुत दृढ़ हैं।
इसके उपयोग को समझने के लिए, इस स्कैन को निफ्टी 200 और निफ्टी फ्यूचर्स पर चलाएं और परिणाम देखें।
जैसा कि आप देख सकते हैं स्टॉक्स और फ्यूचर्स में परिणाम अलग अलग हो सकते हैं। यह कई कारणों से हो सकता है जैसे-
· स्टॉक्स की तुलना में फ्यूचर्स पर प्रीमियम/डिस्काउंट
· शुरुआती ट्रेडों में सप्लाई/डिमांड का मेल ना खाना
सबसे अच्छा चयन वो स्टॉक्स हैं जो दोनों सूचियों में हों। हालांकि, ट्रेडिंग का निर्णय लेने से पहले स्कैन परिणामों के चार्ट का विश्लेषण करना हमेशा बेहतर होता है।
ओपनिंग रेंज को परिभाषित करना
यह मार्केट खुलने के बाद दिए गए समय का उच्च और निम्न है। सामान्य तौर से यह समय ट्रेडिंग के पहले 15 मिनट होते हैं। कुछ ट्रेडर्स 30 मीन या 1 घंटे जैसे बड़े टाइम फ्रेम का भी उपयोग करते हैं।
गैप अप/ डाउन को परिभाषित करना
ज़ी चार्ट दिखाता है कि आज सुबह प्राइज़ में 0.55 की कमी आई है, यानी कल की क्लोजिंग प्राइज़ (340.50) और आज सुबह की ओपनिंग प्राइज़ (339.55) के बीच का अंतर।
एक आवश्यक कंडीशन जो पूरी हुई वह है कि आज का ओपन कल के लो (340.00) से कम है।
गैप अप ओपनिंग के मामले इंट्राडे और इंट्रा डे ट्रेडिंग में क्या अंतर है में, आज का ओपन कल के उच्च से अधिक होना चाहिए।
ब्रेकआउट
नीचे दिए गए ZEEL चार्ट में, गैप डाउन के बाद, ओपनिंग रेंज ब्रेकआउट (ओआरबी) सुबह 9.45 बजे हुआ है। 336.10 के नीचे स्टॉक ब्रेकडाउन होता है, 334.90 के निचले स्तर पर जाता है और 335.80 पर बंद होता है। वॉल्यूम अच्छी है।
आप इस ट्रेड को अगले कैंडल ओपन में 335.65 पर लेंगे, जो दिन के उच्च स्तर पर,341.40 पर बंद होगा। व्यापार पर जोखिम 5.75 रुपये है। मैं अपने जोखिम को 1x से 1.5x के लाभ को लक्षित करता हूं जो होगा 6-9 रुपये की सीमा में। एक बार जब मैं 1x लक्ष्य को पार कर जाता है, तो मैं अपने लाभ को सख्त स्टॉप्स से बचाऊंगा। यदि आप एक से अधिक ट्रेड कर रहे हैं, तो आप आंशिक लाभ बुक कर सकते हैं और बड़े लाभ के लिए धीरे धीरे स्टॉप पर जा सकते हैं। मैं वह फैसला आप पर छोड़ता इंट्राडे और इंट्रा डे ट्रेडिंग में क्या अंतर है हूं।
10.20 बजे 326.10 का निचला स्तर बाहर निकलने के लिए एक अच्छा स्तर था। सुबह 11.55 बजे एक और अवसर था जब निम्न 325.25 था जो उच्च वॉल्यूम इंट्राडे और इंट्रा डे ट्रेडिंग में क्या अंतर है पर एक दोजी दर्शा रहा है, यह दोनों संभावित रिवर्सल के सिग्नल हो सकते हैं।
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महत्वपूर्ण:
जब आप इन ब्रेकआउट ट्रेड्स लेते हैं तो आपको कुछ बिंदुओं को ध्यान में रखना चाहिए।
· ब्रेकआउट ट्रेड हमेशा गैप की दिशा में लें। यदि स्टॉक ने गैप अप किया है,तो एक लंबा ट्रेड करें,जब स्टॉक ओपनिंग रेंज के ऊपर ब्रेक करता है।
· यदि स्टॉक गैप डाउन करता है, छोटा ट्रेड लें, जब स्टॉक ओपनिंग रेंज के नीचे ब्रेक करता है।
· यदि आप एक काउंटर ट्रेंड ट्रेड लेना पसंद करते हैं, तो आप एक पुलबैक के दौरान गलत जगह पहुँचने का रिस्क उठाते हैं। इस रिस्क को कम करने के लिए, पोजीशन में प्रवेश करने से पहले, ब्रेकआउट को पहले होने और फिर विफल होने की पुष्टि करने की प्रतीक्षा करें।हम इस पर भविष्य के आर्टिकल में विस्तार से चर्चा करेंगे।
· ब्रेकआउट के समय पर पर्याप्त मात्रा होना सुनिश्चित करें। हालांकि, बहुत बड़ी मात्रा खत्म होने का सिग्नल देती है और कम मात्रा बेपरवाही का और दोनों को ही पसंद नहीं किए जाते।
· दिन में जितना जल्दी ब्रेक आउट हो उतना बेहतर। यदि ब्रेक आउट दिन में बाद में हो तो सावधानी से चलें क्योंकि मात्रा कम हो सकती है।
· इस स्ट्रैटेजी को ट्रेड करते समय हमेशा एक कड़े स्टॉप लॉस ऑर्डर का उपयोग करें। आदर्श स्टॉप लॉस एक बुलिश ब्रेकआउट के लिए ओपनिंग रेंज का कम से कम न्यूनतम या एक बियरिश ब्रेकआउट के लिए ओपनिंग रेंज का उच्च होना चाहिए। कुछ व्यापारी बेहतर मार्जिन रखने के लिए स्टॉप लॉस में अंतराल या अंतर के मध्य बिंदु को ध्यान में रखना पसंद करते हैं। मेरे लिए यह निर्णय अंतर, सीमा के आकार और व्यापार के लिए इनाम अनुपात के लिए मेरे जोखिम पर निर्भर करेगा। कुछ ट्रेडर्स बेहतर मार्जिन रखने के लिए स्टॉप लॉस की गैप या गैप के मध्य बिंदु को ध्यान में रखना पसंद करते हैं। मेरे लिए यह निर्णय गैप, रेंज के साइज़ और ट्रेड के मेरे रिस्क से रिवार्ड के रेशो पर निर्भर करता है।
· यदि गैप्स और ओपनिंज रेंज बहुत बड़ी है तो ट्रेड लेने से बचें। इसका मतलब यह होगा कि आप इंट्राडे और इंट्रा डे ट्रेडिंग में क्या अंतर है ट्रेड में जितना कमा सकते हैं उससे अधिक जोखिम उठा रहे हैं। यह इसके लायक नहीं है।
Note: This article is for educational purposes only. Kindly learn from it and build your knowledge. We do not advice or provide tips. We highly recommend to always trade using stop loss.
Arshad Fahoum
Arshad is an Options and Technical Strategy trader and is currently working with Market Pulse as a Product strategist. He is authoring this blog to help traders learn to earn.
कम समय में चाहते हैं मोटा मुनाफा, तो आप ट्रेडिंग ऑप्शन पर लगा सकते हैं दांव
शेयर मार्केट में ट्रेडिंग स्ट्रेटेजी से मोटा मुनाफा संभव है.
शेयर मार्केट के संबंध में अक्सर ट्रेंडिंग और निवेश शब्द सुनने को मिलते हैं. हालांकि, दोनों माध्यमों में निवेशकों का मकस . अधिक पढ़ें
- News18Hindi
- Last Updated : June 11, 2022, 14:52 IST
नई दिल्ली . शेयर मार्केट संबंधित चर्चा होते ही अक्सर ट्रेंडिंग और निवेश शब्द सुनने को मिलते हैं. कई लोग ट्रेडिंग और निवेश में फर्क नहीं कर पाते हैं. तो आपको बता दें कि ट्रेडिंग और निवेश के बीच सबसे अहम अंतर समय अवधि का है. निवेश की तुलना में ट्रेडिंग में समय अवधि काफी कम होती है. ट्रेडिंग कई प्रकार की होतीं हैं और ट्रेडर्स स्टॉक में अपनी पॉजिशन बहुत कम समय तक रखते हैं, जबकि निवेश वे लोग करते हैं, जो स्टॉक को वर्षों तक अपने पोर्टफोलियो में रखते हैं. अगर आप कम समय में मोटा मुनाफा चाहते हैं, तो ट्रेडिंग आपके लिए बेस्ट ऑप्शन साबित हो सकती है.
सिक्योरिटीज की खरीद-बिक्री की प्रक्रिया को ट्रेडिंग कहते हैं. फाइनेंसियल इंट्राडे और इंट्रा डे ट्रेडिंग में क्या अंतर है मार्केट की स्थिति और जोखिम के आधार पर ट्रेडिंग की विभिन्न स्ट्रेटेजी हैं. ट्रेडर्स अपने वित्तीय लक्ष्य के हिसाब से इनका चयन करते हैं. साथ ही विभिन्न प्रकार की ट्रेडिंग से जुड़े रिस्क और लागत को भी ध्यान में रखते हैं. आइए, यहां हम उन लोकप्रिय ट्रेडिंग स्ट्रेटेजी की चर्चा करते हैं, जो अधिकतर ट्रेडर अपनाते हैं.
ये भी पढ़ें- LIC के शेयर में गिरावट से सरकार चिंतित, DIPAM सचिव बोले- अस्थायी है गिरावट
इंट्राडे ट्रेडिंग
शेयर बाजार में महज 1 दिन के कारोबार में भी मोटा प्रॉफिट कमाया जा सकता है. दरअसल, बाजार में एक ही ट्रेडिंग डे पर शेयर खरीदने और बेचने को इंट्राडे ट्रेडिंग (Intraday trading) कहते हैं. इस स्ट्रेटेजी के तहत शेयर खरीदा तो जाता है, लेकिन उसका मकसद निवेश नहीं, बल्कि 1 दिन में ही उसमें होने वाली बढ़त से प्रॉफिट कमाना होता है. इसमें चंद मिनटों से ले कर कुछ घंटे तक में ट्रेडिंग हो जाती है. हालांकि, यह जरूरी नहीं कि इंट्रोडे ट्रेडर्स को हमेशा प्रॉफिट ही होता हो. ट्रेडर्स अपना ट्रेड शेयर मार्केट बंद होने से पहले बंद करते हैं और प्रॉफिट या लॉस उठाते हैं. इसमें तेजी से निर्णय लेना होता है.
पॉजिशनल ट्रेडिंग
पॉजिशनल ट्रेडिंग (Positional trading) स्टॉक मार्केट की एक ऐसी ट्रेडिंग स्ट्रेटेजी है, जिसमें स्टॉक को लंबे समय तक होल्ड किया जाता है. इस स्ट्रेटेजी के तहत ट्रेडर्स किसी स्टॉक को कुछ महीने से लेकर कुछ साल तक के लिए खरीदते हैं. उसके बाद उस स्टॉक को बेच कर प्रॉफिट या लॉस लेते हैं. उनका मानना होता है कि इतनी अवधि में शेयर के दाम में अच्छी बढ़ोतरी होगी. निवेशक आमतौर पर फंडामेंटल एनालिसिस के साथ टेक्निकल ग्राउंड को ध्यान में रखकर फंडामेंटल एनालिसिस के साथ टेक्निकल को ध्यान में रखकर यह स्ट्रेटेजी अपनाते हैं.
स्विंग ट्रेडिंग
स्विंग ट्रेडिंग (Swing trading) में टाइम पीरियड इंट्राडे से अधिक होता है. कोई स्विंग ट्रेडर अपनी पॉजिशन 1 दिन से अधिक से लेकर कई हफ्तों तक होल्ड कर सकता है. बड़े टाइम फ्रेम में वोलैटिलिटी कम होने के साथ प्रॉफिट बनाने की संभावना काफी अधिक होती है. यही कारण है कि अधिकतर लोग इंट्राडे की अपेक्षा स्विंग ट्रेडिंग करना पसंद करते हैं.
टेक्निकल ट्रेडिंग
टेक्निकल ट्रेडिंग (technical trading) में निवेशक मार्केट में मूल्य परिवर्तन की भविष्यवाणी करने के लिए अपने टेक्निकल एनालिसिस ज्ञान का उपयोग करते हैं. हालांकि, इस ट्रेडिंग के लिए कोई समय-सीमा निर्धारित नहीं है. इसमें पॉजिशन 1 दिन से लेकर कई महीने तक रखा जा सकता है. शेयर मार्केट में कीमतों में उतार-चढ़ाव को निर्धारित करने के लिए अधिकतर ट्रेडर्स अपने टेक्निकल एनालिसिस स्किल का उपयोग करते हैं. टेक्निकल एनालिसिस के तहत देखा जाता है कि किसी खास समय अवधि में किसी शेयर की कीमत में कितना उतार-चढ़ाव आया. इस अवधि में इसकी ट्रेड की गई संख्या में क्या कभी कोई बड़ा उतार-चढ़ाव देखने को मिल रहा है.
ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें News18 हिंदी| आज की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट, पढ़ें सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट News18 हिंदी|
कम समय में चाहते हैं मोटा मुनाफा, तो आप ट्रेडिंग ऑप्शन पर लगा सकते हैं दांव
शेयर मार्केट में ट्रेडिंग स्ट्रेटेजी से मोटा मुनाफा संभव है.
शेयर मार्केट के संबंध में अक्सर ट्रेंडिंग और निवेश शब्द सुनने को मिलते हैं. हालांकि, दोनों माध्यमों में निवेशकों का मकस . अधिक पढ़ें
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नई दिल्ली . शेयर मार्केट संबंधित चर्चा होते ही अक्सर ट्रेंडिंग और निवेश शब्द सुनने को मिलते हैं. कई लोग ट्रेडिंग और निवेश में फर्क नहीं कर पाते हैं. तो आपको बता दें कि ट्रेडिंग और निवेश के बीच सबसे अहम अंतर समय अवधि का है. निवेश की तुलना में ट्रेडिंग में समय अवधि काफी कम होती है. ट्रेडिंग कई प्रकार की होतीं हैं और ट्रेडर्स स्टॉक में अपनी पॉजिशन बहुत कम समय तक रखते इंट्राडे और इंट्रा डे ट्रेडिंग में क्या अंतर है हैं, जबकि निवेश वे लोग करते हैं, जो स्टॉक को वर्षों तक अपने पोर्टफोलियो में रखते हैं. अगर आप कम समय में मोटा मुनाफा चाहते हैं, तो ट्रेडिंग आपके लिए बेस्ट ऑप्शन साबित हो सकती है.
सिक्योरिटीज की खरीद-बिक्री की प्रक्रिया को ट्रेडिंग कहते हैं. फाइनेंसियल मार्केट की स्थिति और जोखिम के आधार पर ट्रेडिंग की विभिन्न स्ट्रेटेजी हैं. ट्रेडर्स अपने वित्तीय लक्ष्य के हिसाब से इनका चयन करते हैं. साथ ही विभिन्न प्रकार की ट्रेडिंग से जुड़े रिस्क और लागत को भी ध्यान में रखते हैं. आइए, यहां हम उन लोकप्रिय ट्रेडिंग स्ट्रेटेजी की चर्चा करते हैं, जो अधिकतर ट्रेडर अपनाते हैं.
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इंट्राडे ट्रेडिंग
शेयर बाजार में महज 1 दिन के कारोबार में भी मोटा प्रॉफिट कमाया जा सकता है. दरअसल, बाजार में एक ही ट्रेडिंग डे पर शेयर खरीदने और बेचने को इंट्राडे ट्रेडिंग (Intraday trading) कहते हैं. इस स्ट्रेटेजी के तहत शेयर खरीदा तो जाता है, लेकिन उसका मकसद निवेश नहीं, बल्कि 1 दिन में ही उसमें होने वाली बढ़त से प्रॉफिट कमाना होता है. इसमें चंद मिनटों से ले कर कुछ घंटे तक में इंट्राडे और इंट्रा डे ट्रेडिंग में क्या अंतर है ट्रेडिंग हो जाती है. हालांकि, यह जरूरी नहीं कि इंट्रोडे ट्रेडर्स को हमेशा प्रॉफिट ही होता हो. ट्रेडर्स अपना ट्रेड शेयर मार्केट बंद होने से पहले बंद करते हैं और प्रॉफिट या लॉस उठाते हैं. इसमें तेजी से निर्णय लेना होता है.
पॉजिशनल ट्रेडिंग
पॉजिशनल ट्रेडिंग (Positional trading) स्टॉक मार्केट की एक ऐसी ट्रेडिंग स्ट्रेटेजी है, जिसमें स्टॉक को लंबे समय तक होल्ड किया जाता है. इस स्ट्रेटेजी के तहत ट्रेडर्स किसी स्टॉक को कुछ महीने से लेकर कुछ साल तक के लिए खरीदते हैं. उसके बाद उस स्टॉक को बेच कर प्रॉफिट या लॉस लेते हैं. उनका मानना होता है कि इतनी अवधि में शेयर के दाम में अच्छी बढ़ोतरी होगी. निवेशक आमतौर पर फंडामेंटल एनालिसिस के साथ टेक्निकल ग्राउंड को ध्यान में रखकर फंडामेंटल एनालिसिस के साथ टेक्निकल को ध्यान में रखकर यह स्ट्रेटेजी अपनाते हैं.
स्विंग ट्रेडिंग
स्विंग ट्रेडिंग (Swing trading) में टाइम पीरियड इंट्राडे से अधिक होता है. कोई स्विंग ट्रेडर अपनी पॉजिशन 1 दिन से अधिक से लेकर कई हफ्तों तक होल्ड कर सकता है. बड़े टाइम फ्रेम में वोलैटिलिटी कम होने के साथ प्रॉफिट बनाने की संभावना काफी अधिक होती है. यही कारण है कि अधिकतर लोग इंट्राडे की अपेक्षा स्विंग ट्रेडिंग करना पसंद करते हैं.
टेक्निकल ट्रेडिंग
टेक्निकल ट्रेडिंग (technical trading) में निवेशक मार्केट में मूल्य परिवर्तन की भविष्यवाणी करने के लिए अपने टेक्निकल एनालिसिस ज्ञान का उपयोग करते हैं. हालांकि, इस ट्रेडिंग के लिए कोई समय-सीमा निर्धारित नहीं है. इसमें पॉजिशन 1 दिन से लेकर कई महीने तक रखा जा सकता है. शेयर मार्केट में कीमतों में उतार-चढ़ाव को निर्धारित करने के लिए अधिकतर ट्रेडर्स अपने टेक्निकल एनालिसिस स्किल का उपयोग करते हैं. टेक्निकल एनालिसिस के तहत देखा जाता है कि किसी खास समय अवधि में किसी शेयर की कीमत में कितना उतार-चढ़ाव आया. इस अवधि में इसकी ट्रेड की गई संख्या में क्या कभी कोई बड़ा उतार-चढ़ाव देखने को मिल रहा है.
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Long term investing क्या होता है?
जब किसी स्टॉक में लम्बे समय तक निवेश किया जाये, तो उसे Long term investing कहा जाता है, Long Term Investing से हमारा मतलब, स्टॉक मार्केट में ट्रेड करने की उस तरीके से है, जिसमे कोई निवेशक कोई स्टॉक 6 महीने से लेकर कुछ सालो तक लिए उसी स्टॉक में निवेश किया रहता है,
Long Term investing के Example-
लॉन्ग टर्म इन्वेस्टिंग के कुछ Example इस प्रकार है –
जैसे –1 साल से अधिक का निवेश,
1 साल से 3 साल इंट्राडे और इंट्रा डे ट्रेडिंग में क्या अंतर है तक का निवेश
1 साल से 5 साल तक का निवेश
5 साल या उस से ज्यादा समय के लिए निवेश
इस तरह के टाइम फ्रेम में की जाने वाली ट्रेडिंग को Long term investing कहा जाता है,
LONG TERM INVESTING और LONG TERM TRADING
Technically देखा जाये तो, स्टॉक मार्केट में Investing जैसी कोई चीज नहीं होती, हम स्टॉक खरीदते और बेचते है, चाहे समय का अंतर कितना भी हो, 1 दिन वाली ट्रेडिंग हो या 10 साल वाली ट्रेडिंग,
स्टॉक मार्केट में सिर्फ ट्रेडिंग ही होता है,
लेकिन जब हम किसी एक ही कंपनी में लम्बे समय तक स्टॉक खरीदने के बाद बने पैसा उसी कंपनी में लगाये रहते है, तो इस तरह की ट्रेडिंग, ट्रेडिंग नहीं बोल के इन्वेस्टिंग कहा जाता है,
LONG TERM INVESTING का PURPOSE
इस तरह Long Term Trading में ट्रेडर का मकसद होता है,
- टैक्स का लाभ लेना, (किसी एक स्टॉक में 1 साल से ज्यादा समय तक निवेश टैक्स फ्री हो जाता है)
- Dividend का लाभ लेना, (कुछ कंपनी अपने स्टॉक्स पर रेगुलर डिविडेंड देती है )
- कंपनी का ग्रोथ अगर तेजी से होता है, तो ऐसे में लॉन्ग टर्म इन्वेस्टमेंट पर बहुत अच्छा लाभ मिल जाता है,
यहाँ पर एक गौर करने वाली बात है कि , स्टॉक मार्केट के King कहे जाने वाले चाहे वारेन वफे हो या राकेश झुनझुनवाला दोनों भी इसी तरह के लम्बे समय की ट्रेडिंग और इन्वेस्टिंग में विस्वास रखते है,
Long term investing के फायदे,
अगर बात की जाये लॉन्ग टर्म इन्वेस्टमेंट के फायदों की तो,
- मार्केट में रोज के उतार चढाव से आप को घबराने की जरुरत नहीं होती,
- आपको टैक्स फ्री dividend और लाभ मिलता है,
- अगर आप का निवेश किसी ऐसी कमपनी है, जिसका फ्यूचर में मार्केट ग्रोथ बहुत अच्छा है, तो आपको अपने निवेश पर बहुत ही शानदार फायदा होता है,
Long term Investing के लिए क्या करे-
अगर आप स्टॉक मार्केट में अनुशाषित निवेश करते है, और मार्केट इंट्राडे और इंट्रा डे ट्रेडिंग में क्या अंतर है पर नजर बनाए रखते हुए, fundamental और technical दोनों पहलु को ध्यान रखने के साथ फ्यूचर इकॉनमी को ध्यान में रखते हुए, अच्छे स्टॉक्स, का चुनाव करके आप, लॉन्ग टर्म काफी अच्छा लाभ कमा सकते है.
लॉन्ग टर्म इन्वेस्टिंग के लिए हमें स्टॉक का fundamental analysis पहले करना पड़ता है, इसिलिये अगर आप लॉन्ग टर्म इन्वेस्टमेंट का लाभ उठाना चाहते है तो आपको fundamental analysis अच्छी तरह समझना होगा. ताकि आप बड़े निवेशको की इस धन बनाने के तरीके से लाभ उठा सके .
अगर पोस्ट अच्छा लगा तो नीचे अपना कमेंट या सवाल जरुर लिखे,
usd vs inr : चढ़ता डॉलर, गिरता रुपया !आखिर क्यों?
कोई आश्चर्य नहीं, USD डॉलर (usd vs inr) दुनिया में सबसे लोकप्रिय, शक्तिशाली मुद्रा में से एक है। यह दुनिया भर में चर्चा का एक केंद्रीय बिंदु रहा है। अमेरिका एक शक्तिशाली देश है , जिसकी मुद्रा दुनिया में सबसे शक्तिशाली मुद्रा है।अधिकांशतः हर देश इसे स्वीकार करता है !
भारत की आजादी के साथ प्रारंभ हुआ रुपए और इंट्राडे और इंट्रा डे ट्रेडिंग में क्या अंतर है डॉलर का खेल ,1947 में जहां रुपया ₹4.16 पैसे था वह 2020 में ₹75 के पास पहुंच गया है। यह हर साल रुपए की गिरती कीमत हर भारतीय के मन में, एक चिंता का विषय बनी रहती है।
USD डॉलर की Universal Acceptance पर भरोसा किया जा सकता है ,testimonials –185 अंतर्राष्ट्रीय मानक संगठन द्वारा मान्यता प्राप्त मुद्राओं को उनके देशों के बाहर बहुत कम कारोबार किया जाता है। यूरो और येन के साथ दुनिया में तीन सबसे अधिक कारोबार वाली मुद्राओं में से एक के रूप में सूचीबद्ध, यूएसडी $ वैश्विक व्यापार का लगभग 64% बनाता है। इस प्रकार, यह दुनिया की वास्तविक मुद्रा है। 1947 में अपनी आजादी के बाद से सभी भारतीय वर्षों से अमेरिकी डॉलर के मूल्य रूपांतरणों (Exchange Rate ) को जानना चाहते हैं तो 1947 से 2020 तक की डॉलर यात्रा को देखना दिलचस्प होगा।
डॉलर की सापेक्ष , भारतीय रुपए के (usd vs inr) लगातार गिरने के कुछ मुख्य कारण :
1. Foreign direct investment ( FDI ), foreign portfolio investments ( FPI) and trade deficit (total exports-imports) में असंतुलन होना! आइए जानते हैं FDI , FPI एवं Trade Deficit के बारे में !
FDI : एक देश की कंपनी का दूसरे देश में इंट्राडे और इंट्रा डे ट्रेडिंग में क्या अंतर है किया गया निवेश प्रत्यक्ष विदेशी निवेश FDI कहलाता है।
FPI : किसी विदेशी व्यक्ति या कंपनी द्वारा किसी भारतीय कंपनी में लगने वाले पैसे को FPI कहा जाता है। विदेशी निवेशक उस कंपनी के शेयर या बांड खरीद सकता है !
Trade Deficit : आयात एवं निर्यात का अंतर ।
2. (usd vs inr )डॉलर का वैश्विक रूप से मजबूत होना :दुनिया का 85% व्यापार डॉलर $ में होता है ,दुनिया भर का कर्ज 39% डॉलर $ में दिया जाता है। यह भी रुपए के लगातार कमजोर होने का कारण है।
3. विकासशील देशों की मुद्रा का कमजोर होना : किसी भी देश की मुद्रा में जब गिरावट आती है तो उस देश के उत्पादों की मांग अन्य देश में बढ़ जाती है, इस कारण से निर्यात बढ़ जाता है एवं आयात के अधिकतर बिल विदेशी मुद्रा में चुकाने होते हैं। मुद्रा के गिरने के कारण अपने देश की मुद्रा अधिक खर्च होती है।
4. विदेशी मुद्रा की जरूरतें : आयात के बिलों का भुगतान USD $ में किया जाता है !आपात स्थिति के लिए अपने देश का विदेशी मुद्रा भंडार पर्याप्त मात्रा में इकट्ठा करके रखना हर देश की एक जरूरत है ।सभी बिलों का भुगतान विदेशी मुद्रा यूएस डॉलर में ही किया जा रहा है। इस कारण से विदेशी मुद्रा यूएस डॉलर का कितना भंडारण (Foreign Reserve ) किस देश ने किया है, वह उस देश की आर्थिक शक्ति को दिखाता है|
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