तरल आहार में क्या लें
पानी को जीवन रक्षक पेय माना जाता है। भोजन के बिना हम दो दिन रह सकते हैं पर पानी के बिना 24 घंटे प्यासा रहना अति मुश्किल होता है। पानी की हमें प्रतिदिन आवश्यकता रहती है लेकिन कितना पानी हमें लेना चाहिए, इस बारे में कम लोग जानते हैं। पानी के स्थान पर अन्य कौन से तरल पदार्थ लेकर हम पानी की कमी को पूरा कर सकते हैं, इस बारे में भी लोग अभी कम जानते हैं।
अधिकतर लोग कहते हैं कि मैं अधिक पानी नहीं पी सकता। कुछ लोग कहते हैं पानी पीना याद ही नहीं रहता। जब भी पानी सामने आता है तो पी लेते हैं। हम कितना पीते हैं, इस ओर ध्यान ही नहीं जाता। कुछ लोग कहते हैं कि कौन बार-बार सीट से उठकर पानी पीने जाए, इसलिये पानी पीना टालते रहते हैं। वैसे हमारे शरीर में 50 से 60 प्रतिशत पानी है पर इस मात्रा को हम बरकरार रखेंगे तो हमारे शरीर को पानी की कमी नहीं होगी। अगर हम पानी कम पिएंगे तो हम डीहाड्रेशन के शिकार बन जाएंगे, त्वचा निस्तेज लगने लगेगी, किडनी में स्टोन बनेंगे, खाना ठीक से नहीं पचेगा और न जाने क्या क्या रोग हमें घेर लेंगे। अपने शरीर में पानी की मात्रा को ठीक बनाए रखने के लिए हमें प्रतिदिन 8 से 10 गिलास पानी चाहिए। यदि साधारण पानी इतना नहीं पी पाते हैं तो अन्य कुछ तरल पेय लेकर इस कमी को पूरा कर सकते हैं।
सब्जियों का जूस : सब्जियों का ताजा जूस सेहत के लिए भी अच्छा है और स्वाद की दृष्टि से भी अच्छा है। पानी का यह एक बेहतर आप्शन है। सब्जियों का जूस आप घर पर भी निकाल कर पी सकते हैं और बाजार में भी पी सकते हैं। डिब्बाबंद जूस न पिएं। उसमें नमक की मात्रा अधिक होती है और प्रिजर्वेटिव्स भी होते हैं जो तरलता ढेर हो जाती है नुकसान पहुंचाते हैं। आप सब्जियों के जूस में सीजनल सब्जियों का जूस पी सकते हैं जैसे गाजर, अदरक, टमाटर, चुकन्दर, खीरा, घीया आदि। इसमें पानी की कमी भी पूरी होगी और उचित पोषण और मिनरल्स भी मिलेंगे।
सब्जियों का सूप : ताजा सब्जियों का सूप भी सेहत, और स्वाद के लिए अच्छा है और पानी की कमी को भी पूरा करता है। सीजनल सब्जियों का ताजा सूप घर पर बनाकर लिया जा सकता है। गाजर, शलगम, पालक, टमाटर, अदरक, घीया, टिंडा, मटर आदि सब्जियों का सूप लें। विटामिन्स और मिनरल्स की कमी को भी पूरा करेगा।
पानी : पानी तो सबसे बेहतरीन चीज है अपने शरीर को तंदुरुस्त रखने के लिए। अधिक ठंडा पानी शरीर को नुकसान पहुंचाता है। सर्दियों में थोड़ा गुनगुना पानी अच्छा होता है और गर्मियों के लिए मटके का ठंडा पानी उत्तम होता है। पानी पीते समय यह ध्यान दें कि पानी साफ होना चाहिए। गंदा पानी लाभ के स्थान पर शरीर तरलता ढेर हो जाती है को हानि पहुंचा सकता है। घर पर वॉटर प्यूरिफायर लगवाएं। आफिस, स्कूल, बाहर जाते समय पानी साथ लेकर जाएं। गर्मियों में पानी में नींबू का रस निचोड़कर भी पी सकते हैं।
ताजे फलों का रस : कैंड, टिंड जूस के पैकेट ताजे फलों का रस नहीं होते। ताजे फलों को धोकर काटकर जूस निकाला जाए, वही फलों का रस सेहत के लिए अच्छा होता है क्योंकि फलों का शुगर खून में जल्दी घुल जाता है और लाभ तुरंत पहुंचाता है। वैसे फल खाना सेहत के लिए उत्तम होता है जूस के बजाय, पर कुछ लोग फल नहीं खा सकते तो वे दिन में जूस ले सकते हैं। मधुमेह रोगियों को फलों का जूस बिना डाक्टर के पूछे नहीं लेना चाहिए।
हर्बल टी : स्वास्थ्य के प्रति जागरूक लोग अब हर्बल टी का अधिक सेवन करने लगे हैं। हर्बल टी भी बिना कैफीन के आती है जिसका सेवन आप कर सकते हैं। हर्बल टी में पिपरमेंट होने तरलता ढेर हो जाती है के कारण डाइजेशन सिस्टम ठीक रहता है और पेट में अफारा की समस्या को बढ़ने नहीं देता। चाहें तो आप दिन में एक या दो कप ग्रीन टी भी ले सकते हैं।
मुख्य समाचार
राजारहाट में गृहवधू ने धकियाया, गिरकर सास की मौत
सन्मार्ग संवाददाता विधाननगर : मामूली बात को लेकर घर में हुए विवाद के दौरान बहू द्वारा धक्का दिए जाने से जमीन पर गिरने से सास बुरी आगे पढ़ें »
गंगासागर मेला : कोविड परिक्षण के लिए कैंप स्थापित करेगा केएमसी
सन्मार्ग संवाददाता कोलकाता : चीन ने एक बार फिर दुनिया को डरा दिया है। कोरोना की जिस लहर में चीन है, उसने पूरी दुनिया को बेचैन आगे पढ़ें »
दाना-पानी: तरल आहार और हरा-भरा उपमा
नाश्ता और रात का भोजन कम से कम तेल-घी वाला करें, तो पाचन तंत्र सुचारु रूप से काम करता है और उदर विकार की संभावना कम रहती है। जहां तक संभव हो, इस मौसम में अन्न कम और फल तथा सब्जियों का उपयोग अधिक से अधिक करना चाहिए।
म
मानस मनोहर
होली के बाद का मौसम सेहत की दृष्टि बहुत संवेदनशील होता है। आयुर्वेद के अनुसार खासकर वात प्रकोप वाले लोगों को इस मौसम में हल्का भोजन ही करना चाहिए। गरिष्ठ भोजन कब्ज पैदा करता है। नाश्ता और तरलता ढेर हो जाती है रात का भोजन कम से कम तेल-घी वाला करें, तो पाचन तंत्र सुचारु रूप से काम करता है और उदर विकार की संभावना कम रहती है। जहां तक संभव हो, इस मौसम में अन्न कम और फल तथा सब्जियों का उपयोग अधिक से अधिक करना चाहिए। इसलिए इस मौसम में नाश्ते के रूप में क्या लिया जा सकता है, पेश हैं कुछ उसी के अनुरूप व्यंजन।
तरल आहार
यह मौसम न तो अधिक गरम होता है और न अधिक ठंडा। इसलिए इसमें कुछ ऐसे बैक्टीरिया पैदा होते हैं, जो जुकाम, खांसी, अपच जैसी समस्याएं पैदा करते हैं। उनसे बचने के लिए शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को दुरुस्त रखना जरूरी होता है। इसलिए खासकर पेय पदार्थ लेते वक्त ध्यान रखना चाहिए कि वे ठंडा न हों, या उनमें बर्फ डाल कर पीने की जरूरत न महसूस हो। इस मौसम में नाश्ते के तौर पर सत्तू का सेवन अधिक मुफीद होता है। सत्तू एक ऐसा खाद्य है, जिसमें नीबू और संतरा का रस मिला कर पीया जा सकता है। इस तरह अन्न और फल के रस दोनों का अद्भुत संगम बनता है। दो गिलास सत्तू पी लें, तो नाश्ते की जरूरत पूरी हो जाती है। दिन भर तरोताजा और हल्का महसूस करेंगे। सत्तू सहज ही बाजार में मिल जाता है। आमतौर पर लोग सत्तू का मतलब सिर्फ चने का सत्तू समझते हैं, पर सत्तू सही अर्थों में कई चीजों को मिला कर बनता है। पारंपरिक तरीका है कि जौ, चना, मूंग, मटर और मोठ को बराबर मात्रा में भून कर पीस लिया जाए। ऊपर से उसमें भुना हुआ जीरा पीस कर डाला जाए। मगर शहरों में ऐसा सत्तू बनाना मशक्कत भरा काम है। इसलिए जब भी सत्तू खरीदें तो चने के साथ जौ का सत्तू जरूर लें। दोनों को मिला कर रख लें। चने की तासीर गरम होती है, तो जौ की ढंडी। दोनों का मेल पेट के लिए उत्तम है।
30 साल बाद शनि ग्रह गोचर करके बनाएंगे विशेष राजयोग, 2023 में इन राशियों को आकस्मिक धनलाभ के साथ उन्नति के प्रबल योग
सर्दी में इन 5 सब्जियों को भूलकर भी फ्रिज में नहीं रखें, बॉडी में ज़हर की तरह करती हैं असर, जानिए कैसे
सुबह नाश्ते के लिए एक बड़े बर्तन में तीन से चार चम्मच सत्तू लें। अगर उसे नमकीन पीना चाहते हैं, तो जरूरत भर का नमक मिलाएं। इसे मीठा भी पीया जा सकता है। मीठा पीने के लिए जरूरत भर चीनी डालें। वैसे सत्तू नमकीन ही पीएं, सेहत के लिए ठीक होता है। इसमें पुदीने के चार छह पत्ते बारीक काट कर डालें। एक चम्मच भुने हुए जीरे का पाउडर डालें और दो से तीन गिलास पानी डाल कर ठीक से घोल लें। सत्तू को ठीक से न मिलाया जाए तो उसमें गांठें बन जाती हैं, इसलिए उसे ठीक से मिलाएं। अब उसमें एक या दो नीबू का रस मिला दें। चाहें तो एक गिलास संतरे का रस भी डाल सकते हैं, स्वाद अच्छा आता है। संतरे का रस डालना हो, तो एक गिलास पानी कम मिलाएं। अगर संतरे का रस नहीं मिलाना चाहते, तो सत्तू के घोल में बारीक कटा हुआ थोड़ा-सा प्याज या गाजर भी मिला सकते हैं। इस तरह नाश्ते में अन्न, रस और सब्जी का बढ़िया मिश्रण मिलेगा। सत्तू पीने का फायदा यह है कि उसका फाइवर न सिर्फ पेट को साफ करता है, बल्कि आपको कई बार प्यास लगती है, आप पानी पीते हैं और पेट साफ रहता है।
हरा-भरा उपमा
नाश्ते के लिए उपमा सुपाच्य और उत्तम अहार है। इसे बनाने में अधिक मेहनत भी नहीं करनी पड़ती। इसके लिए एक कटोरी सूजी यानी रवा को कड़ाही में एक चम्मच घी डाल कर धीमी आंच पर सुनहरा होने तक भून लें। इसे हलवा के लिए सूजी भूनने समय जिस तरह अधिक घी की जरूरत होती है, वैसी नहीं होती। अगर आपको तेल-घी से परहेज है तो बिना घी के भी भून सकते हैं। अब दो काम करें। गाजर, चुकंदर, बीन्स, मटर के दाने, पत्ता गोभी, फूल गोभी आदि जो भी हरी सब्जी आप पसंद करते हों, बारीक काट कर कम से कम डेढ़ कटोरी की मात्रा में अलग रख लें। इसके अलावा धनिया पत्ता और कुछ हरी मिर्चें लेकर चटनी बना लें। अब एक कड़ाही में एक चम्मच घी गरम करें। राई और कढ़ी पत्ते का तड़का लगाएं और सब्जियों को डाल कर तेज आंच पर दो मिनट तक पका लें। अब उसमें भुनी हुई सूजी डालें और दो गिलास पानी मिला दें। ऊपर से नमक और एक चम्मच धनिए की चटनी डालें और कढ़ाई को ढक कर धीमी आंच पर पकने दें। जब सूजी पूरी तरह पानी सोख ले और उसका दाना-दाना फूल जाए तो आंच बंद कर दें। यह अन्न और सब्जियों का सुंदर मेल आपके नाश्ते के लिए उत्तम है। कुछ लोग ओट खाना पसंद करते हैं। वे सूजी की जगह ओट का इस्तेमाल कर सकते हैं। यह सुपाच्य नाश्ता आपको दिन भर हल्का और प्रसन्न रखेगा। शरीर को जरूरी पोषण भी देगा।
पढें रविवारी (Sundaymagazine News) खबरें, ताजा हिंदी समाचार (Latest Hindi News)के लिए डाउनलोड करें Hindi News App.
बीस रुपए की शीशी में सैकड़ो लीटर तरल खाद तैयार
इन दिनो उर्वरक बाजार में एक छोटी सी बीस रुपए की शीशी ने धमाल मचा रखा है। कृषि विज्ञानियों की यह अद्भुत खोज किसानों के लिए वरदान बन गई है.
भारत सरकार की ओर से जैविक कृषि केंद्र ने यह वेस्ट डीकंपोजर बनाया है। यह देश के सभी गाजियाबाद, बंगलुरु, भुवनेश्वर, पंचकूला, इंम्फाल, जबलपुर, नागपुर, पटना आदि रीजनल जैविक कृषि केंद्रों पर उपलब्ध है।
डीकंपोजर की 40 मिली लीटर की शीशी की कीमत सिर्फ 20 रुपए रखी गई है। इससे कुछ ही देर में सैकड़ों लीटर तरल खाद तैयार की जा सकती है। सबसे बड़ी बात ये है कि इसकी मदद से घरेलू कचरा मामूली सी मेहनत पर खाद बन जाता है।
ये डीकंपोजर तो 20 रुपए की शीशी नहीं, जादू की पुड़िया जैसी है। 20 रुपए में 40 मिली लीटर की शीशी और उससे सैकड़ों लीटर लिक्विड खाद तैयार। फसलों के लिए खाद की लागत किसानों की कमर तोड़ देती है, वे कर्ज के बोझ से लदे रहते हैं, लेकिन डीकंपोजर ने मानो उनकी किस्मत का दरवाजा ही खोल दिया है। इन दिनो उर्वरक बाजार में एक छोटी सी बीस रुपए की शीशी ने धमाल मचा रखा है। कृषि विज्ञानियों की यह अद्भुत खोज किसानों के लिए वरदान बन गई है।
मंदिरों के सामने रोजाना फूलों का ढेर लग जाता है। कचरे की तरह इधर-उधर फैलता रहता है। पिछले दिनो लोकसभा सांसद मीनाक्षी लेखी जब दिल्ली के झंडेवालान देवी मंदिर पर डीकंपोजर का आनावरण किया तब पता चला कि यह शीशी तो रोजाना सौ किलो तक फूल को खाद बना देती है। दरअसल, एंजेलिक फाउंडेशन ने मंदिर के प्रबंधन की निगरानी करने वाली चैरिटेबल सोयायटी बद्री भगत झंडेवालान मंदिर सोसायटी को स्वचालित जैविक अपशिष्ट डीकंपोजर दान करने से पहले सांसद लेखी से संपर्क किया था।
मीनाक्षी लेखी ने इस पहल को प्रधानमंत्री के स्वच्छ भारत अभियान से जोड़ दिया। भारत सरकार की ओर से जैविक कृषि केंद्र ने यह वेस्ट डीकंपोजर बनाया है। यह देश के सभी गाजियाबाद, बंगलुरु, भुवनेश्वर, पंचकूला, इंम्फाल, जबलपुर, नागपुर, पटना आदि रीजनल जैविक कृषि केंद्रों पर उपलब्ध है। डीकंपोजर की 40 मिली लीटर की शीशी की कीमत सिर्फ 20 रुपए रखी गई है। इससे कुछ ही देर में सैकड़ों लीटर तरल खाद तैयार की जा सकती है। सबसे बड़ी बात ये है कि इसकी मदद से घरेलू कचरा मामूली सी मेहनत पर खाद बन जाता है।
कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि कोई भी किसान इसे आसानी से उपलब्ध कर सरलता से उर्वर्क तैयार कर सकता है। पहले सरकार ऐसे फॉर्मूले निजी कारखानेदारों को बेच दिया करती थी। वे इसे महंगी कीमत पर बाजार में उपलब्ध कराते थे। साथ ही उसमें अपेक्षित गुणवत्ता भी नहीं होती थी। अब सरकार स्वयं अपने माध्यमों से डीकंपोजर किसानों तक पहुंचा रही है। डीकंपोजर का इस्तेमाल फसलों की सिंचाई, छिड़काव तथा बीजों के शोधन में भी किया जा सकता है। इसका इस्तेमाल कर किसान आर्थिक बचत के साथ खेती में अपेक्षित उत्पादन भी कर रहे हैं।
किसानों को सलाह है कि वे दो सौ लीटर पानी में दो किलो गुड़ के साथ डीकंपोजर डालकर उसे ठीक से मिश्रित कर लें। इसके बाद मौसम के अनुसार जाड़े में चार दिन तक और गर्मी में दो दिन तक उसे उसी तरह पड़े रहने दें। अब इसमें से एक बाल्टी घोल निकाल कर दो सौ लीटर पानी में मिला लें। इस तरह इस्तेमाल के लिए घोल तैयार। एक-एक बाल्टी निकालकर दो-दो सौ लीटर पानी में मिलाते जाइए, छिड़काव या सिंचाई करते जाइए। सिंचाई के समय ध्यान में तरलता ढेर हो जाती है रखें कि घोल सिंचाई के पानी में मिलाते जाएं।
डीकंपोजर खाद-बीज के शोधन में भी काम आता है। एक शीशी डीकंपोजर से 20 किलो तक बीज का शोधन हो जाता है। एक शीशी डिकम्पोस्ट को 30 ग्राम गुड़ में मिश्रित कर देने से इससे 20 किलो तक बीज का शोधन हो जाता है। शोधन के आधा घंटा बाद बीज की बुआई की सकती है। कम्पोस्ट खाद बनाने के लिए एक टन कूड़े-कचरे में 20 लीटर घोल छिड़क दीजिए। इसके बाद इसके ऊपर एक परत बिछाने के बाद उस पर घोल का छिड़काव कर दीजिए। इसके बाद उसे ढक कर छोड़ दीजिए। जब चालीस दिन बीत जाए तो उसका कम्पोस्ट खाद के रूप में आराम से इस्तेमाल करिए।
डीकंपोजर रोजाना 100 किलो फूलों को खाद में तब्दील कर सकता है। खाद का उपयोग मंदिर के चारों ओर हरे-भरे क्षेत्रों को उर्वर बनाने के लिए किया जा सकता है। एंजेलिक इंटरनेशनल के सीएसआर के प्रमुख जयश्री गोयल बताते हैं कि अपशिष्ट प्रबंधन स्वच्छता के रूप में महत्वपूर्ण है। फूलों और जैविक अपशिष्ट को आर्थिक रूप से हरे-भरे क्षेत्रों के लिए उपयोगी खाद में परिवर्तित करने की प्रक्रिया हमारी नई सीएसआर पहल है। यह मिट्टी से फूल और फूलों से फिर मिट्टी तक का हमारा यह सफर सफल हो रहा है।
डीकंपोजर खाद और कीटनाशक का काम अकेले करता है। इसकी मदद से घरेलू कचरे से कई एकड़ जमीन के लिए बेहतरीन खाद तैयार की जा सकती है। आर्गेनिक खेती के लिए यह खोज किसी वरदान से कम नहीं है। इसमें बैक्टीरिया, फंगस आक्टिनोमाइस आदि को शामिल किया है। 30 मिली लीटर की यह शीशी वैसे तो 260 रुपए की है मगर किसानों को सिर्फ 20 रुपए में दी जा रही है। इससे कुछ ही देर में कई सौ लीटर तरल खाद तैयार हो जाती है।
बीस रुपए की शीशी में सैकड़ो लीटर तरल खाद तैयार
इन दिनो उर्वरक बाजार में एक छोटी सी बीस रुपए की शीशी ने धमाल मचा रखा है। कृषि विज्ञानियों की यह अद्भुत खोज किसानों के लिए वरदान बन गई है.
भारत सरकार की ओर से जैविक कृषि केंद्र ने यह वेस्ट डीकंपोजर बनाया है। यह देश के सभी गाजियाबाद, बंगलुरु, भुवनेश्वर, पंचकूला, इंम्फाल, जबलपुर, नागपुर, पटना आदि रीजनल जैविक कृषि केंद्रों पर उपलब्ध है।
डीकंपोजर की 40 मिली लीटर की शीशी की कीमत सिर्फ 20 रुपए रखी गई है। इससे कुछ ही देर में सैकड़ों लीटर तरल खाद तैयार की जा सकती है। सबसे बड़ी बात ये है कि इसकी मदद से घरेलू कचरा मामूली सी मेहनत पर खाद बन जाता है।
ये डीकंपोजर तो 20 रुपए की शीशी नहीं, जादू की पुड़िया जैसी है। 20 रुपए में 40 मिली लीटर की शीशी और उससे सैकड़ों लीटर लिक्विड खाद तैयार। फसलों के लिए खाद की लागत किसानों की कमर तोड़ देती है, वे कर्ज के बोझ से लदे रहते हैं, लेकिन डीकंपोजर ने मानो उनकी किस्मत का दरवाजा ही खोल दिया है। इन दिनो उर्वरक बाजार में एक छोटी सी बीस रुपए की शीशी ने धमाल मचा रखा है। कृषि विज्ञानियों की यह अद्भुत खोज किसानों के लिए वरदान बन गई है।
मंदिरों के सामने रोजाना फूलों का ढेर लग जाता है। कचरे की तरह इधर-उधर फैलता रहता है। पिछले दिनो लोकसभा सांसद मीनाक्षी लेखी जब दिल्ली के झंडेवालान देवी मंदिर पर डीकंपोजर का आनावरण किया तब पता चला कि यह शीशी तो तरलता ढेर हो जाती है रोजाना सौ किलो तक फूल को खाद बना देती है। दरअसल, एंजेलिक फाउंडेशन ने मंदिर के प्रबंधन की निगरानी करने वाली चैरिटेबल सोयायटी बद्री भगत झंडेवालान मंदिर सोसायटी को स्वचालित जैविक अपशिष्ट डीकंपोजर दान करने से पहले सांसद लेखी से संपर्क किया था।
मीनाक्षी लेखी ने इस पहल को प्रधानमंत्री के स्वच्छ भारत अभियान से जोड़ दिया। भारत सरकार की ओर से जैविक कृषि केंद्र ने यह वेस्ट डीकंपोजर बनाया है। यह देश के सभी गाजियाबाद, बंगलुरु, भुवनेश्वर, पंचकूला, इंम्फाल, जबलपुर, नागपुर, पटना आदि रीजनल जैविक कृषि केंद्रों पर उपलब्ध है। डीकंपोजर की 40 मिली लीटर की शीशी की कीमत सिर्फ 20 रुपए रखी गई है। इससे कुछ ही देर में सैकड़ों लीटर तरल खाद तैयार की जा सकती है। सबसे बड़ी बात ये है कि इसकी मदद से घरेलू कचरा मामूली सी मेहनत पर खाद बन जाता है।
कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि कोई भी किसान इसे आसानी से उपलब्ध कर सरलता से उर्वर्क तैयार कर सकता है। पहले सरकार ऐसे फॉर्मूले निजी कारखानेदारों को बेच दिया करती थी। वे इसे महंगी कीमत पर बाजार में उपलब्ध कराते थे। साथ ही उसमें अपेक्षित गुणवत्ता भी नहीं होती थी। अब सरकार स्वयं अपने माध्यमों से डीकंपोजर किसानों तक पहुंचा रही है। डीकंपोजर का इस्तेमाल फसलों की सिंचाई, छिड़काव तथा बीजों के शोधन में भी किया जा सकता है। इसका इस्तेमाल कर किसान आर्थिक बचत के साथ खेती में अपेक्षित उत्पादन भी कर रहे हैं।
किसानों को सलाह है कि वे दो सौ लीटर पानी में दो किलो गुड़ के साथ डीकंपोजर डालकर उसे ठीक से मिश्रित कर लें। इसके बाद मौसम के अनुसार जाड़े में चार दिन तक और गर्मी में दो दिन तक उसे उसी तरह पड़े रहने दें। अब इसमें से एक बाल्टी घोल निकाल कर दो सौ लीटर पानी में मिला लें। इस तरह इस्तेमाल के लिए घोल तैयार। एक-एक बाल्टी निकालकर दो-दो सौ लीटर पानी में मिलाते जाइए, छिड़काव या सिंचाई करते जाइए। सिंचाई के समय ध्यान में रखें कि घोल सिंचाई के पानी में मिलाते जाएं।
डीकंपोजर खाद-बीज के शोधन में भी काम आता है। एक शीशी डीकंपोजर से 20 किलो तक बीज का शोधन हो जाता है। एक शीशी डिकम्पोस्ट को 30 ग्राम गुड़ में मिश्रित कर देने से इससे 20 किलो तक बीज का शोधन हो जाता है। शोधन के आधा घंटा बाद बीज की बुआई की सकती है। कम्पोस्ट तरलता ढेर हो जाती है खाद बनाने के लिए एक टन कूड़े-कचरे में 20 लीटर घोल छिड़क दीजिए। इसके बाद इसके ऊपर एक परत बिछाने के बाद उस पर घोल का छिड़काव कर दीजिए। इसके बाद उसे ढक कर छोड़ दीजिए। जब चालीस दिन बीत जाए तो उसका कम्पोस्ट खाद के रूप में आराम से इस्तेमाल करिए।
डीकंपोजर रोजाना 100 किलो फूलों को खाद में तब्दील कर सकता है। खाद का उपयोग मंदिर के चारों ओर हरे-भरे क्षेत्रों को उर्वर बनाने के लिए किया जा सकता है। एंजेलिक इंटरनेशनल के सीएसआर के प्रमुख जयश्री गोयल बताते हैं कि अपशिष्ट प्रबंधन स्वच्छता के रूप में महत्वपूर्ण है। फूलों और जैविक अपशिष्ट को आर्थिक रूप से हरे-भरे क्षेत्रों के लिए उपयोगी खाद में परिवर्तित करने की प्रक्रिया हमारी नई सीएसआर पहल है। यह मिट्टी से फूल और फूलों से फिर मिट्टी तक का हमारा यह सफर सफल हो रहा है।
डीकंपोजर खाद और कीटनाशक का काम अकेले करता है। इसकी मदद से घरेलू कचरे से कई एकड़ जमीन के लिए बेहतरीन खाद तैयार की जा सकती है। आर्गेनिक खेती के लिए यह खोज किसी वरदान से कम नहीं है। इसमें बैक्टीरिया, फंगस आक्टिनोमाइस आदि को शामिल किया है। 30 मिली लीटर की यह शीशी वैसे तो 260 रुपए की है मगर किसानों को सिर्फ 20 रुपए में दी जा रही है। इससे कुछ ही देर में कई सौ लीटर तरल खाद तैयार हो जाती है।
पेट्रोल में निकल रहा है पानी जैसा तरल पदार्थ
इंदौर। इन दिनों अजीबोगरीब शिकायत सामने आ रही है कि दो पहिया वाहनों में डाले जा रहे पेट्रोल में पानी मिला हुआ है। इसकी वजह से गाड़ी स्टार्ट नहीं हो पाती है। ये शिकायत इस हद तक बढ़ गई है कि पेट्रोलियम कंपनियों से लेकर खाद्य अधिकारी तक जांच में जुट गए हैं। फौरी तौर पर यह कारण सामने आया है कि पेट्रोल में मिलाया जा रहा इथेनॉल केमिकल रिएक्शन से पानी में बदल रहा है। इससे वाहन स्टार्ट होने में दिक्कत पैदा कर रहे हैं।
ऑटो गैरेजों पर मरम्मत के लिए आ रहे वाहनों में कुछ समय से ऐसे दो पहिया की संख्या अचानक बढ़ गई है, जो स्टार्ट नहीं हो रहे हैं। जब मेकेनिक पेट्रोल टैंक के सप्लाई पाइप को खोलते हैं तो इसमें से पहले पानी निकलता है। ऑटोमोबाइल और मेकेनिकल इंजीनियरों के मुताबिक, पेट्रोल में इथेनॉल की मात्रा ज्यादा होने से यह दिक्कत पैदा हो रही है। शिकायतें सामने आने के बाद पेट्रोलियम कंपनियों ने पेट्रोल पम्पों की जांच भी शुरू कर दी है। हाल ही में धार, कुक्षी, बड़वाह और इंदौर जिले में सांवेर रोड पर पेट्रोल पम्पों से सैंपल लिए गए। मालवा में इंदौर और रतलाम के पेट्रोलियम कंपनियों के डिपो में इथेनॉल मिलाया जाता है। इसे ब्लेंडिंग की प्रक्रिया कहते हैं। इंदौर में मांगलिया क्षेत्र में इंडियन ऑयल कार्पोरेशन, भारत पेट्रोलियम और हिन्दुस्तान पेट्रोलियम तीनों के डिपो हैं। यहां से इंदौर संभाग के सभी जिलों के पेट्रोल पम्पों पर पेट्रोल की आपूर्ति की जाती है। इथेनॉल खरीदने के लिए ऑल इंडिया स्तर पर टेंडर होते हैं।
बीना रिफाइनरी के केमिकल इंजीनियर प्रशांत कुमार बताते हैं कि यदि पानी के संपर्क में इथेनॉल आता है तो उसका कैरेक्टर भी पानी की तरह हो जाएगा। ऐसी स्थिति में इथेनॉल फ्यूल नहीं रह पाएगा और उसकी हीटिंग वैल्यू कम हो जाएगी। ऐसे में वाहन धोते समय या बारिश में रखा होने से इसके पेट्रोल टैंक में पानी चला जाए और इसमें पेट्रोल डलवाया जाए तो पेट्रोल में जितनी मात्रा इथेनॉल की होगी, वह भी पानी बन जाएगी। इसका ध्यान रखा जाना चाहिए।
दो पहिया वाहन के फ्यूल टैंक के पाइप से पानी निकलने की बात सही है। इससे वाहन स्टार्ट होने में दिक्कत आ रही है। यह समस्या मैं और मेरे मित्र भी भुगत चुके हैं। चार पहिया वाहनों में ये दिक्कत इसलिए नहीं आती कि इनमें फिल्टर लगा होता है।
मरम्मत के लिए आ रहे वाहनों में यह समस्या अचानक बढ़ गई है कि वे चलते-चलते बंद हो जाते हैं। जब चेक किया जाता है तो पता चलता है कि पेट्रोल टैंक से कारबुरेटर तक सप्लाई करने वाले पाइप में पानी है। पेट्रोल टैंक को साफ करने और नए सिरे से पेट्रोल डलवाने पर यह समस्या खत्म हो जाती है।
जनता को भी इथेनॉल के बारे में जानकारी होनी चाहिए। वाहन चालकों से अपील है कि ईंधन भरवाने से पहले तरलता ढेर हो जाती है अपने वाहन में पानी को चेक कर लें। पम्प में इस तरह की शिकायत नहीं आती। यहां प्रतिदिन वाटर पेस्ट लगाकर स्टोरेज में चेक किया जाता है। यदि स्टोरेज टैंक में पानी होगा तो वाटर पेस्ट लाल हो जाता है।
अधिकतम अंक: 5
न्यूनतम अंक: 1
मतदाताओं की संख्या: 843