महंगाई पर असर
इससे वैश्विक स्तर पर महंगाई बढ़ गई है. फेडरल रिजर्व की तरफ से ब्याज दरें बढाए जाने के बाद अमेरिका में तेजी से ग्लोबल मनी पहुंचने लगी है. ऐसे में भारतीय मुद्रा का विदेशी भंडार भी तेजी से कम हुआ है. 2021 में भारत का विदेशी मुद्रा का भंडार 640 अरब डॉलर था जो अब घटकर 596 अरब डॉलर ही रह गया है.
रुपए पर राजनीति
मोदी जी ने रुपये के गिरने को जब भारत सरकार की साख और भ्रष्टाचार से जोड़ा था तो उस समय रुपया डॉलर के मुकाबले 65 रुपये था. लेकिन मोदी जी के सत्ता संभालने के बाद यह लगातार गिरता गया. जो लोग उम्मीद कर रहे थे मोदी जी की साख, ईमानदारी और सुशासन के कारण रुपया एक बार फिर से 40 रुपये प्रति डॉलर के स्तर पर जा सकता है, उन्हें झटका लगने लगा. रुपया नीचे जाने की बजाय ऊपर ही चढ़ता गया. 2020 के शुरुआती दिनों में डॉलर की तुलना में एक्सचेंज रेट 71 रुपये के स्तर पर था. कोरोना बल्कि डॉलर मजबूत हो रहा है आने के बाद यह 74-76 रुपये के स्तर तक गिर गया. रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण यह 78.50 रुपए के स्तर तक गिर गया. और अब 80 रुपए तक गिरने को मजबूर हो रहा है.
इकनोमी से सीधा संबंध नहीं
हालांकि कुछ अर्थशास्त्रियों का मानना है कि रुपये के गिरने को देश की अर्थव्यवस्था के साथ जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए. वे ये भी मानते हैं कि रिजर्व बैंक को इसे रोकने के लिए डॉलर की खरीदारी जैसे कदम भी नहीं उठाने चाहिए क्योंकि आने वाले दिनों में कच्चे तेल के दाम काफी बढ़ सकते हैं. ऐसी स्थिति में भारत को विदेशी मुद्रा भंडार की जरूरत होगी. अगर रुपया गिरता है तो उसे गिरने बल्कि डॉलर मजबूत हो रहा है देना चाहिए. यह चिंता का विषय नहीं होना चाहिए. कहीं ऐसा न हो कि रुपये को गिरने से बचाने की चक्कर में हमारी स्थिति भी पाकिस्तान और श्रीलंका जैसी हो जाए. इस समय श्रीलंका और पाकिस्तान के पास जरूरी सामानों के आयात के लिए भी विदेशी मुद्रा भंडार नहीं है.
डॉलर के मुकाबले रुपया हुआ कमजोर, ये होगा महंगा और सस्ता
नई दिल्ली/टीम डिजिटल। डॉलर के मुकाबले रूपया का स्तर गिरता जा रहा है जिसके बाद कमजोर होते रुपए के लिए भारतीय बाजार में निराशा देखी गई। गुरुवार को भारतीय करेंसी डॉलर के मुकाबले सबसे निचले स्तर पर देखी गई। सुबह रुपया 28 पैसे की गिरावट के साथ 68.89 रुपए के स्तर पर खुला। वहीं बुधवार को रूपया 68.61 पर बंद हुआ था। इसतरह से रुपया डॉलर के मुकाबले 69 के अबतक के सबसे निचले स्तर तक पहुंच गया।
इसके पीछे कई तरह की वजहें बताई जा रही हैं। बहरहाल रुपए के डॉलर के मुकाबले गिरने पर कई तरह के नुकसान सामने आ सकते हैं। आएये देखते हैं इसके पीछे क्या कारण हो सकते हैं और सीधे तौर पर इससे आम आदमी को क्या फायदे और नुकसान होने वाले हैं:
RBI ने कोशिशें लेकिन नाकाम
एक्सपर्ट्स की मानें तो आरबीआई ने रुपए को 68.20 या 68.50 के स्तर तक बनाए रखने की कई कोशिशें की लेकिन ऐसा हो ना सका। इसके लिए आरबीआई ने 422 ने बिलियन डॉलर के सेलिंग की।
रुपये की गिरावट पर बोलीं निर्मला सीतारमण – रुपया कमजोर नहीं हो रहा, डॉलर मजबूत हो रहा है
वॉशिंगटन, 16 अक्टूबर। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत में लगातार गिरावट के बीच कहा है कि रुपये ने अन्य उभरती बाजार मुद्राओं की तुलना में काफी बेहतर प्रदर्शन किया है। उन्होंने कहा कि रुपया कमजोर नहीं हो रहा है बल्कि डॉलर के मजबूत होने के कारण रुपये की कीमत में गिरावट दर्ज की गई है। उल्लेखनीय है कि रुपया हाल में डॉलर के मुकाबले 82.69 के सर्वकालिक निचले स्तर तक गिर गया था।
निर्मला सीतारमण ने शनिवार को यहां कहा, ‘रुपया कमजोर नहीं हो रहा, हमें इसे ऐसे देखना चाहिए कि डॉलर मजबूत हो रहा है। लेकिन दूसरी मार्केट करेंसी देखें तो रुपया डॉलर की तुलना में काफी अच्छा कर रहा है।’ उन्होंने कहा कि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) यह सुनिश्चित करने पर ध्यान केंद्रित कर रहा था कि बहुत अधिक अस्थिरता न हो और इसलिए भारतीय मुद्रा के मूल्य को फिक्स करने के लिए बाजार में हस्तक्षेप नहीं कर रहा था।
रुपया भले ही अभी गिर रहा है लेकिन आने वाले वक्त में यह डॉलर का ‘काल’ बन जाएगा
पिछले कुछ समय से आपको यह खबरें लगातार सुनने को मिल रही होगी कि डॉलर के मुकाबले रुपये कमजोर हो रहा है। इन दिनों यह खबरें तमाम समाचार चैनलों से लेकर सोशल मीडिया पर छाई हुई है कि रुपया इतना गिर गया। रुपये का मूल्य उतना हो गया। विपक्षियों द्वारा रुपए के मूल्य में आ रही लगातार गिरावट के लिए मोदी सरकार को जमकर घेरा जा रहा है। परंतु ऐसा नहीं है कि केवल भारतीय रुपये ही नीचे जा रहा हो। बल्कि देखें तो अन्य डॉलर की तुलना में अन्य करेंसियों का हाल तो इससे भी बुरा है।
हालांकि जैसे कहा जाता है कि हर संकट अपने साथ अवसर बल्कि डॉलर मजबूत हो रहा है लेकर आता है। ऐसा ही कुछ भारतीय रुपये के साथ भी है। भले ही अभी भारतीय रुपये कमजोर हो रहा हो। परंतु अगर अपने पैमाने को थोड़ा बड़ा करके देखेंगे तो समझ आएगा कि हम तेजी से डी-डॉलराइजेशन यानी वैश्विक बाजारों में डॉलर के प्रभुत्व को कम करने और रुपये को मजबूत करने की दिशा में आगे बढ़ रहे है।
अन्य देशों की करेंसी मे भी गिरावट
देश में रुपए की गिरावट को लेकर निरंतर चर्चाएं चल रही हैं। तमाम अर्थशास्त्री विशेषज्ञ से लेकर अन्य लोग इस पर अपनी अपनी चिंताएं भी व्यक्त कर रहे हैं। इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ जब अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपया 80 के भी पार तक चला बल्कि डॉलर मजबूत हो रहा है गया। हालांकि वर्तमान समय की बात करें तो डॉलर की तुलना में रुपए 79.80 के स्तर पर फिसल आया है। विशेषज्ञों की मानें तो अभी आने वाले समय में रुपए में और गिरावट संभव है। डॉलर के मुकाबले रुपया 82 के स्तर तक टूट सकता है। इसे भारतीय रुपए की गिरावट की जगह अमेरिकी डॉलर की मजबूती के तौर पर भी देखा जा सकता है। क्योंकि इस समय केवल भारतीय रुपए का मूल्य ही बल्कि डॉलर मजबूत हो रहा है नहीं घट रहा। बल्कि अन्य देशों की करेंसी को देखें तो उनकी हालत इससे भी खस्ता हो चुकी है।
आंकड़ों पर नजर डालें तो पता चलता है कि इस साल अब तक रुपया करीब 7 फीसदी कमजोर हो चुका है। वही ब्रिटिश पाउंड, जापानी येन और यूरो जैसी करेंसीज डॉलर के मुकाबले रुपये से अधिक कमजोर हुई। यूरो हमेशा से ही डॉलर की तुलना में मजबूत करेंसी रहा है। परंतु यूक्रेन युद्ध के बाद इसमें लगातार गिरावट देखने को मिल रही है। डॉलर के मुकाबले यूरो 12 फीसदी तक नीचे गिर गया। वहीं ब्रिटिश पाउंड, जापानी बल्कि डॉलर मजबूत हो रहा है युआन समेत अन्य करेंसी का भी हाल बेहाल है।। ऐसे में अन्य करेंसी के मुकाबले तो रुपये इस वक्त मजबूत स्थिति में नजर आता है। ऐसे में इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि हमें इसे रुपये की गिरावट की जगहें डॉलर की मजबूती के तौर पर देखना चाहिए। परंतु देखा जाए तो अमेरिकी डॉलर की यह मजबूत स्थिर नहीं है। आगे आने वाले समय में डॉलर कमजोर पड़ता और भारतीय रुपया मजबूत होता नजर आ सकता है।
विश्व में अब कम होगा डॉलर का दबदबा
इसके पीछे भी कई कारण है। पहला यह है कि हाल ही में भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने रुपए का अंतर्राष्ट्रीयकरण करने की दिशा में जो निर्णय लिया है। बल्कि डॉलर मजबूत हो रहा है 11 जुलाई 2022 को RBI ने एक बड़ा कदम उठाते हुए आयात और निर्यात का भुगतान रुपये में करने की इजाजत दी। इस कदम के पीछे RBI का उद्देश्य निर्यात को बढ़ावा देना और घरेलू मुद्रा में वैश्विक व्यापार को प्रोत्साहन करना है। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के इस फैसले से भारतीय करेंसी की साख अंतराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ेगी और साथ ही साथ डॉलर पर निर्भरता कम भी होगी।
इसके अलावा रूस और यूक्रेन के बाद भारत द्विपक्षीय मुद्रा में व्यापार करने की भी तैयारी में जुटा है। दरअसल, यूक्रेन के साथ जारी युद्ध के दौरान तमाम देशों में रूस को अलग थलग करने के लिए उस पर आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए। इस वजह से रूस बाकी देशों से डॉलर में डील नहीं कर पा रहा था। प्रतिबंध के चलते भारत को भी रूस के साथ व्यापार करने में समस्या होने लगी। इस कारण भारत रूस के साथ उसकी करेंसी रूबल में व्यापार करने की योजना पर विचार करने लगा है। आने वाले में देखने मिल सकता है कि भारत, रूस के अलावा अन्य देशों के साथ भी द्विपक्षीय मुद्रा में व्यापार कर सकता है। भारत यह कदम उठाता है तो इससे रुपए की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान बढ़ेगी और डॉलर कमजोर हो सकता है। भारत के अलावा अन्य देश भी डॉलर पर अपनी निर्भरता कम करने के लिए द्विपक्षीय मुद्रा में व्यापार करने की तैयारी में है। चीन तो ब्राजील, रूस के साथ द्विपक्षीय मुद्रा में व्यापार कर भी रहा है। ऐसे में अब वो दिन दूर नहीं नजर आता जब विश्व में डॉलर का दबदबा कम होगा।
Rupee: गिरता रुपया भी है बड़े काम का, समझिए आपके लिए कैसे हो सकता है फायदेमंद
रुपये का मजबूत होना और गिरना दो देशों के बीच की बात है. कोई देश सिर्फ अपने स्तर पर न अपनी मुद्रा को मजबूत बना सकता है न कमजोर होने से बचा सकता है. दूसरे देशों का एक छोटा सा बदलाव भी आपकी मुद्रा को कमजोर या मजबूत बना सकता है. वैसे मोटे तौर पर कुछ चीजें ऐसी हैं जो मुद्रा की कमजोरी या मजबूती को प्रमुख रूप से प्रभावित करती हैं. ये हैं मुद्रास्फीति, व्याज दर में बदलाव, सार्वजनिक ऋण, मजबूत आर्थिक प्रदर्शन आदि.
रुपए में बदलाव कैसे आता है?
आपको हम बताते हैं रुपया कमजोर और मजबूत कैसे होता है. रोज सुबह जब बैंक खुलते हैं तो उनके पास बहुत सारे ग्राहक आते हैं. कुछ को विदेश यात्रा पर जाने के लिए डॉलर या कोई और मुद्रा चाहिए होती है तो कुछ को विदेश में पढ़ रहे अपने बच्चों की फीस भरने के लिए. इसी तरह किसी को विदेश में इलाज के लिए, निवेश के लिए या आयात के लिए. सरकारी कंपनियों को पेट्रोलियम, सोना, हथियार आदि खरीदने के लिए विदेशी मुद्रा की जरूरत होती है. उन लोगों को भी विदेशी मुद्रा की जरूरत होती है जिन्होंने शेयर बाजार में निवेश किया हुआ है और कुछ शेयर बेचकर पैसा अपने देश ले जाना चाहते हैं. सरकार या कंपनियों को विदेशों से लिए गए कर्ज को चुकाने के लिए भी विदेशी मुद्रा की जरूरत पड़ती है. अब सवाल ये है कि ये मुद्रा आएगी कहां से ?
रुपये की गिरावट पर बोलीं निर्मला सीतारमण – रुपया कमजोर नहीं हो रहा, डॉलर मजबूत हो रहा है
वॉशिंगटन, 16 अक्टूबर। वित्त मंत्री बल्कि डॉलर मजबूत हो रहा है निर्मला सीतारमण ने डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत में लगातार गिरावट के बीच कहा है कि रुपये ने अन्य उभरती बाजार मुद्राओं की तुलना में काफी बेहतर प्रदर्शन किया है। उन्होंने कहा कि रुपया कमजोर नहीं हो रहा है बल्कि डॉलर के मजबूत होने के कारण रुपये की कीमत में गिरावट दर्ज की गई है। उल्लेखनीय है कि रुपया हाल में डॉलर के मुकाबले 82.69 के सर्वकालिक निचले स्तर तक गिर गया था।
निर्मला सीतारमण ने शनिवार को यहां कहा, ‘रुपया कमजोर नहीं हो रहा, हमें इसे ऐसे देखना चाहिए कि डॉलर मजबूत हो रहा है। लेकिन दूसरी मार्केट करेंसी देखें तो रुपया डॉलर की तुलना में काफी अच्छा कर रहा है।’ उन्होंने कहा कि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) यह सुनिश्चित करने पर ध्यान केंद्रित कर रहा था कि बहुत अधिक अस्थिरता बल्कि डॉलर मजबूत हो रहा है न हो और इसलिए भारतीय मुद्रा के मूल्य को फिक्स करने के लिए बाजार में हस्तक्षेप नहीं कर रहा था।
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