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पूंजी बाजार - Capital market

पूंजी बाजार भारतीय वित्तीय प्रणाली का सर्वाधिक महत्वपूर्ण खण्ड है। यह कंपनियों को उपलब्ध एक ऐसा बाजार है जो उनकी दीर्घावधिक निधियों की जरूरतों को पूरा करता है। यह निधियां उधार लेने और उधार देने की सभी सुविधाओं और संस्थागत व्यवस्थाओं से संबंधित है। अन्य शब्दों में, यह दीर्घावधि निवेश करने के प्रयोजनों के लिए मुद्रा पूंजी जुटाने के कार्य से जुड़ा है। इस बाजार में कई व्यक्ति और संस्थाएं (सरकार सहित) शामिल हैं जो दीर्घावधि पूंजी की मांग और आपूर्ति को सारणीबद्ध करते हैं और उसकी मांग करते हैं। दीर्घावधि पूंजी की मांग मुख्य रूप से निजी क्षेत्र विनिर्माण उद्योगों, कृषि क्षेत्र, व्यापार और सरकारी एजेंसियों की तरफ से होती है। जबकि पूंजी बाजार के लिए निधियों की आपूर्ति अधिकतर व्यक्तिगत और कॉर्पोरेट बचतों, बैंकों, बीमा कंपनियां, विशिष्ट वित्त पोषण एजेंसियों और सरकार के अधिशेषों से होती है।

भारतीय पूंजी बाजार स्थूल रूप से गिल्ट एज्ड बाजार और औद्योगिक प्रतिभूति बाजार में विभाजित है -

उत्कृष्ट बाजार: सरकार और अर्द्ध-सरकारी प्रतिभूतियों से संबंधित है जिसे भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई). का समर्थन प्राप्त है। सरकारी प्रतिभूतियां सरकार द्वारा जारी की गई बिक्री योग्य ऋण लिखते हैं, जो इसकी वित्तीय जरुरतों को पूरा करती हैं। 'उत्कृष्ट' शब्द का अर्थ है 'सर्वोत्तम क्वालिटी । इसी कारण सरकारी प्रतिभूतियों को बाकीदारी का कोई जोखिम नहीं उठाना पड़ता और इनसे काफी मात्रा में नकदी प्राप्त होती है (क्योंकि इसे बाजार में चालू मूल्यों पर बड़ी आसानी से बेचा जा सकता है।) भारतीय रिजर्व बैंक के खुले बाजार संचालन की ऐसी प्रतिभूतियों में किए जाते हैं।

औद्योगिक प्रतिभूति बाजार: ऐसा बाजार है जो कंपनियों की इक्विटियों और ऋण-पत्रों (डिबेंचरों) का लेन-देन करता है। इसे आगे प्राथमिक बाजार और द्वितीयक बाजार में विभाजित किया गया है।

प्राथमिक बाजार (नया निर्गम बाजार):- यह बाजार नई प्रतिभूतियों अर्थात् ऐसी प्रतिभूतियां जो पहले उपलब्ध नहीं थी और निवेश करने वाली जनता को पहली बार पेश की गई हैं, का लेन-देन करता है। यह बाजार शेयरों और डिबेचरों के रूप में नए सिरे से पूंजी जुटाने के लिए है। यह निर्गमकर्ता कंपनी को नया उद्यम शुरू करने अथवा मौजूदा उद्यम का विस्तार करने अथवा उसमें विविधता लाने के लिए अतिरिक्त धनराशि प्रदान करता है,

और इस प्रकार कंपनी के वित्त पोषण में इसका योगदान प्रत्यक्ष है। कंपनियों द्वारा नई पेशकश या तो प्रारम्भिक सार्वजनिक पेशकश (आईपीओ) अथवा राइट्स इश्यु के रूप में की जाती हैं।

द्वितीयक बाजार शेयर बाजार (पुराना निर्गम बाजार अथवा शेयर बाजार ):- यह वर्तमान कंपनियों की प्रतिभूतियों की खरीद और बिक्री का बाजार है। इसके तहत प्रतिभूतियों का लेन-देन प्राथमिक बाजार में जनता को पहले इनकी पेशकश करने और/अथवा शेयर बाजार में सूचीबद्ध करने के बाद ही किया जाता है। यह एक संवेदी बेरोमीटर है और विभिन्न प्रतिभूतियों के मूल्यों में उतार-चढ़ाव के माध्यम से अर्थव्यवस्था की प्रवृत्तियों को परिलक्षित करता है। इसे "व्यक्तियों को एक निकाय, चाहे निगमित हो अथवा नहीं,

जो प्रतिभूतियों की खरीद बिक्री और लेन-देन के व्यवसाय में सहायता देना, उसे विनियमित अथवा नियमित करने के लिए गठित किया गया है" के रूप में परिभाषित किया गया है। शेयर बाजार में सूचीबद्धता शेयर धारकों को शेयर की कीमतों में घट-बढ़ की कारगार ढंग से निगरानी करने में समर्थ बनाती है। इससे उन्हें इस संबंध में विवकेपूर्ण निर्णय लेने में मदद मिलती है कि क्या वे अपनी धारिताओं को बनाए रखें अथवा बेच दे अथवा आगे और भी संचित कर लें। लेकिन शेयर बाजार प्रतिभूतियों को सूचीबद्ध कराने के लिए निर्गमकर्ता कंपनियों को कई निर्धारित मानदण्डों और प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है।

भारत में, पूंजी बाजार आर्थिक कार्य विभाग वित्त मंत्रालय के पूंजी बाजार प्रभाग द्वारा विनियमित किया जाता है।

यह प्रभाग प्रतिभूति बाजरों (अर्थात् शेयर, ऋण और व्युत्पन्न) की सुव्यवस्थित संबृद्धि और विकास और साथ ही साथ निवेशकों के हितों की सुरक्षा से संबंधित नीतियां तैयार करने के लिए जिम्मेदार है। विशेष रूप से, यह निम्नलिखित के लिए जिम्मेदार है

(i) प्रतिभूति बाजारों में संस्थागत सुधार,

(ii) विनियामक और बाजार संस्थाओं की स्थापना,

(iii) निवेशक सुरक्षा तंत्र को मजबूत बनाना, और

(iv) प्रतिभूति बाजारों के लिए सक्षम विधायी ढांचा प्रदान करना, जैसे कि भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड अधिनियम, 1992 (सेबी अधिनियम 1992 ); प्रतिभूति संविदा (विनियमन) अधिनियम, 1956; और निक्षेपागार (डिपाजिटरी) अधिनियम, 1996. यह प्रभाग इन विधानों और इनके तहत बनाए गए नियमों की प्रशासित करता है।

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पूंजी बाजार एक्सचेंज सिस्टम प्लेटफार्म है जो उन निवेशकों से पूंजी हस्तांतरित करता है जो अपनी अतिरिक्त पूंजी को उन व्यवसाय में नियोजित करना चाहते हैं जिन्हें विभिन्न परियोजनाओं के लिए पूंजी की आवश्यकता होती है।

भारतीय पूंजी बाजार में निवेशकों के सामने आने वाली समस्याएं और सुधार।

पूंजी बाजार में निवेशकों को कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इनमें से कुछ समस्याओं पर नीचे चर्चा की गई है:

1. अपर्याप्त प्रकटीकरण

निवेशक सुरक्षा प्रणाली विकसित करने के लिए पूर्ण और सही जानकारी की उपलब्धता आवश्यक है। लेकिन सिक्योरिटीज कॉन्ट्रैक्ट्स (रेगुलेशन) एक्ट, 1956 के तहत आवश्यक खुलासे, प्रॉस्पेक्टस में किए जाने वाले खुलासे के बारे में बहुत सारी खामियां छोड़ते हैं। इसलिए, कुछ कंपनियां अपने प्रॉस्पेक्टस में झूठे या भ्रामक बयान देती हैं ताकि निर्दोष निवेशकों को आकर्षित किया जा सके और धोखा दिया जा सके।

2. इनसाइडर ट्रेडिंग

इनसाइडर ट्रेडिंग का अर्थ है उन व्यक्तियों द्वारा प्रतिभूतियों की बिक्री या खरीद जिनके पास कंपनी के बारे में उनकी भरोसेमंद क्षमता के कारण मूल्य संवेदनशील जानकारी है। उदाहरण के लिए लाभांश की उच्च दर की घोषणा, बोनस जारी करना के भारत में पूँजी बाजार अधिकार शेयर आदि के बारे में जानकारी, कंपनी के वित्तीय परिणामों से संबंधित जानकारी, समामेलन विलय और अधिग्रहण, उपक्रम का निपटान और ऐसी अन्य जानकारी।

3. मूल्य हेरफेर

यह एक आम बात है कि सार्वजनिक निर्गम के साथ आने वाली कंपनियों के शेयरों की कीमतों को कृत्रिम रूप से बाजार में धकेला जाता है। यह आम तौर पर जनता या राइट इश्यू के ठीक पहले अखबारों में रोजगार के बड़े विज्ञापन देकर किया जाता है। ताकि किसी प्रकार का सम्मान पैदा किया जा सके और इस तरह उस कंपनी के शेयरों का बाजार मूल्य बढ़ाया जा सके।

4. शेयरों की अधिक सदस्यता

आमतौर पर जब कंपनियां पब्लिक इश्यू करती हैं तो उन्हें कई बार ओवर सब्सक्राइब किया जाता है। बड़ी संख्या में निवेशक कंपनी के पास बंद धन में रुचि खो देते हैं।

5. पारदर्शिता की कमी

पारदर्शिता की कमी शेयर बाजार की एक और कमी है। निवेशक को लेनदेन की वास्तविक दर का पता नहीं होता है। निवेशक को अनुबंध पर नोट करके दर और ब्रोकरेज के बारे में सूचित किया जाना चाहिए।

6. निवेशक की शिकायत

निवेशकों से कंपनियों और दलालों के खिलाफ हजारों शिकायतें प्राप्त होती हैं। शिकायतों में धनवापसी आदेश, आवंटन पत्र, लाभांश, दलाली, हामीदारी कमीशन आदि की प्राप्ति न होना शामिल है।

7. अधिग्रहण और विलय

एक करीबी कंपनी में, शेयरधारकों को अधिग्रहण के खिलाफ पर्याप्त रूप से संरक्षित किया जाता है क्योंकि शेयरधारकों की संख्या कम होती है और शेयरधारकों के समझौते हस्तांतरण पर प्रतिबंध लगाते हैं। लेकिन सार्वजनिक रूप से सूचीबद्ध कंपनी के मामले में अल्पसंख्यक शेयरधारकों की रक्षा के लिए समझौते में ऐसी सुरक्षा शामिल नहीं है।

8. निपटान तंत्र से संबंधित समस्याएं

कंपनी के बहीखातों में स्वामित्व परिवर्तन रिकॉर्ड करने के लिए निपटान तंत्र शेयर प्रमाण पत्रों के भौतिक संचलन की मांग करता है । कुछ गंभीर जोखिम जैसे खराब डिलीवरी, स्थानांतरण और पंजीकरण में देरी, विकृति, हानि, जालसाजी और प्रमाणपत्रों की चोरी को निपटान तंत्र से जोड़ा गया है। इन समस्याओं को कई निवेशक मंचों में बार-बार उठाया गया था।

भारत में पूंजी बाजार की समस्याओं के लिए सुधार

सेबी ने निवेशकों के हितों की रक्षा के लिए प्राथमिक बाजार में सुधार लिए कुछ कदम उठाए हैं। तदनुसार, कंपनी अधिनियम के तहत किए जाने वाले खुलासे के अलावा, कंपनियों को प्रकटीकरण और निवेशक संरक्षण के संबंध में सेबी के दिशानिर्देशों के अनुसार प्रकटीकरण करना होगा।

सेबी ने सेबी इनसाइडर रेगुलेशन, 1992 तैयार किया है जो इनसाइडर ट्रेडिंग से संबंधित मामलों पर डीलिंग, संचार या परामर्श पर रोक लगाता है। विनियम के अनुसार, कोई भी अंदरूनी सूत्र अप्रकाशित मूल्य संवेदनशील जानकारी के आधार पर किसी भी कंपनी की अप्रकाशित मूल्य संवेदनशील जानकारी और परामर्श या किसी अन्य व्यक्ति को किसी कंपनी की प्रतिभूतियों में सौदा करने के लिए संचार नहीं करेगा।

सेबी ने विभिन्न प्रकार की कंपनियों द्वारा शेयर जारी करने के लिए दिशानिर्देश जारी किए हैं। इसके अलावा, इसने स्टॉक एक्सचेंजों के सहयोग से कीमतों में असामान्य उतार-चढ़ाव की निगरानी के लिए एक अलग डिवीजन की स्थापना की है।

कंपनी के पास बंद आवेदन राशि पर ब्याज की हानि को रोकने के लिए, सेबी ने एक योजना शुरू की है जिसे स्टॉक निवेश योजना के रूप में जाना जाता है जिसमें निवेशकों को आवेदन के साथ भेजी गई राशि पर ब्याज मिलेगा।

निवेशकों को सेवा प्रदान करने और उनकी शिकायतों पर ध्यान देने के लिए एक दशक पहले एक निवेशक शिकायत प्रकोष्ठ की स्थापना की गई थी। कुछ एक्सचेंजों में, इन सेल का नाम बदलकर इन्वेस्टर सर्विस सेल कर दिया जाता है।

सेबी ने स्टॉक ब्रोकर्स और सब ब्रोकर्स विनियम जारी किए हैं, जो रिकॉर्ड और दस्तावेजों को बनाए रखने और दलालों के निरीक्षण के लिए प्रक्रिया निर्धारित करते हैं। सेबी द्वारा स्टॉक एक्सचेंजों और दलालों का निरीक्षण किया जाता है। अब सेबी ने पुस्तकों, दस्तावेजों, अभिलेखों आदि की खोज और उत्पादन के संबंध में नागरिक प्रक्रिया संहिता के तहत एक दीवानी अदालत की शक्तियां दी हैं।

सेबी ने अधिग्रहण और विलय के संबंध में सभी सुरक्षा धारकों के साथ उचित और समान व्यवहार सुनिश्चित करने के उद्देश्य से अधिग्रहण और विलय के लिए एक कोड पेश किया है। भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (शेयरों और अधिग्रहणों का पर्याप्त अधिग्रहण) विनियमन, 1994 अल्पसंख्यक शेयरधारकों के अधिकारों की रक्षा के लिए सभी पक्षों को सेबी के नियामक ढांचे के तहत पर्याप्त अधिग्रहण में लाता है।

निवेशक सुरक्षा कोष स्थापित किया गया था ताकि निवेशकों को दलालों द्वारा डिफ़ॉल्ट रूप से कुछ निश्चित घटनाओं में उनके निवेश की एक निश्चित राशि तक मुआवजे के माध्यम से बेहतर सुरक्षा प्रदान की जा सके।

डिपॉजिटरी सिस्टम की शुरुआत एक सराहनीय पूंजी बाजार सुधार है, जो एक निवेशक को निपटान तंत्र के संबंध में उसके सामने आने भारत में पूँजी बाजार वाली विभिन्न समस्याओं से बचाएगा।

प्रतिभूति बाजार विनियमन से संबंधित धोखाधड़ी और अनुचित व्यापार प्रथाओं का निषेध 25 अक्टूबर 1995 को अधिसूचित किया गया था। अधिनियम में निर्धारित सेबी के कार्यों में से एक प्रतिभूति बाजार से संबंधित धोखाधड़ी और अनुचित व्यापार प्रथाओं को प्रतिबंधित करना है।

Mehul Choksi सेबी ने मेहुल चोकसी को पूंजी बाजार से 10 साल के लिए प्रतिबंधित किया, पांच करोड़ का जुर्माना लगाया

Mehul Choksi moves Dominica High Court to quash proceedings

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नयी दिल्ली. भारतीय प्रतिभूति एवं विनियम बोर्ड (सेबी) ने भगोड़े उद्योगपति मेहुल चोकसी को प्रतिभूति बाजार से 10 साल के लिए प्रतिबंधित कर दिया है और पांच करोड़ रुपये का जुर्माना भी लगाया है। सेबी की तरफ से यह कार्रवाई गीतांजलि जेम्स लिमिटेड के शेयरों में धोखाधड़ी के कारोबार में शामिल होने को लेकर की गई है।

बाजार नियामक के सोमवार को जारी आदेश के अनुसार, चोकसी को 45 दिन में जुर्माना भरने का निर्देश दिया गया है। चोकसी गीतांजलि जेम्स के चेयरमैन और प्रबंध निदेशक होने के साथ कंपनी के प्रवर्तक समूह का हिस्सा थे। चोकसी और उसके भांजे नीरव मोदी पर पंजाब नेशनल बैंक (पीएनबी) के साथ कथित तौर पर 14,000 करोड़ रुपये से अधिक की धोखाधड़ी करने का आरोप है। वर्ष 2018 की शुरुआत में पीएनबी घोटाला सामने आने के बाद चोकसी और मोदी दोनों भारत से भाग गए।

चोकसी को एंटीगुआ और बारबुडा में होने का दावा किया जाता है। मोदी एक ब्रिटिश जेल में बंद है और उसने भारत के प्रत्यर्पण अनुरोध को भारत में पूँजी बाजार चुनौती दी है। सेबी के पूर्णकालिक सदस्य अश्विनी भाटिया ने अपने 20 पृष्ठ के आदेश में कहा, “चोकसी ने धोखाधड़ी और अनुचित व्यापार व्यवहार निषेध (पीएफयूटीपी) विनियम के प्रावधानों का उल्लंघन किया है।”

इसी वजह से चोकसी को ‘प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से किसी भी तरह से प्रतिभूतियों में लेनदेन या अन्यथा व्यवहार करने से रोक दिया है। साथ ही दस साल के लिए प्रतिभूति बाजार से प्रतिबंधित कर दिया है और पांच करोड़ का जुर्माना भरने के लिए कहा है।

इस साल फरवरी में सेबी ने चोकसी को एक साल के लिए प्रतिभूति बाजार से प्रतिबंधित कर दिया था और गीतांजलि जेम्स के मामले में भेदिया कारोबार के नियमों का उल्लंघन करने के लिए 1.5 करोड़ रुपये का भी जुर्माना लगाया था। (एजेंसी)

शेयर बाजार का 'गुब्बारा'

आदित्य चौपड़ा। भारत के शेयर बाजार की गाथा भी अजब-गजब रही है। इसका उबाल या तेजी प्रायः किसी न किसी स्कैम अर्थात मायाजाल से टूटता रहा है। चाहे वह हर्षद मेहता कांड हो या एमएस शूज घपला, हर मामले में साधारण व आम निवेशक ही माथे पर चोट खाता रहा है। हर्षद मेहता कांड में बही की चालाकी के साथ बैंकों की हुंडियों का दुरुपयोग किया गया था और बाजार को मांग व सप्लाई के समीकरण से बांध कर ऊंचा चढ़ाया गया था। एमएस शूज मामले में इनसाइडर ट्रेडिंग के नये कारनामें दर-पेश आये थे। मगर ये कांड तब हुए थे जब भारत का पूंजी बाजार अन्तर्राष्ट्रीय पूंजी बाजारों से जुड़ने की प्रक्रिया में था। अब 2021 चल रहा है और ये कांड नब्बे के दशक में हुए थे। पूंजी बाजार में इस समय दुनिया के बड़े वित्त निवेशक मौजूद हैं और वे शेयर बाजार में निवेश कर रहे हैं। लगातार भारत का प्रत्यक्ष विदेशी मुद्रा कोष बढ़ रहा है। इसमें से 80 प्रतिशत से अधिक पूंजी बाजार में ही अधिकाधिक मुनाफे की गरज से भारत में पूँजी बाजार निवेशित होता है। इस निवेश के कई कारण होते हैं। इसका एक पक्ष राजनीतिक भी होता है। इसका अर्थ यहां राजनीतिक स्थिरता से होता है। दूसरा पक्ष आर्थिक नीतियों का होता है अर्थात देश की सरकार अधिकाधिक निजीकरण को बढ़ावा देती है या नहीं। भारत इन दोनों ही मोर्चों पर संस्थागत विदेशी वित्तीय निवेशकों की कसौटी पर खरा उतर रहा है।

यहां लगभग हर बड़ी सरकारी कम्पनी बिकने की हालत में है और राजनीतिक स्थिरता है। मगर दूसरी तरफ देश की अर्थव्यवस्था जर्जर है। 2016- 17 से लगातार आर्थिक मोर्चे पर इसके मानक चादर ओढ़ कर सुस्ताने की प्रक्रिया में पलंग पर लेटे हुए से हैं। इसका प्रमाण ये सत्यापित आंकड़े हैं कि 2016-17 में जहां विकास वृद्धि दर जमा 8 प्रतिशत थी, वहीं 2020-21 में औंधे मुंह गिर कर यह नफी 7.3 प्रतिशत हो गई। अर्थात पलंग पर चादर ताने सो रही अर्थव्यवस्था इससे नीचे गिर कर बुरी तरह चोट खा बैठी। शेयर बाजार के नीचे जाने का यह सामान्य तार्किक कारण हो सकता था मगर भारत में पूँजी बाजार इसके विपरीत यह 2016-17 से लगातार कुलाचे मार रहा है और आजकल मुम्बई सूचकांक 50 हजार से ऊपर उड़ रहा है। इसका मतलब निकाला जा सकता है कि शेयर बाजार अब अर्थव्यवस्था के मूल मानकों से निर्देशित न होकर अन्य नीतिगत मानकों से निर्देशित हो रहा है और विदेशी संस्थागत व पोर्ट फोलियो निवेशक जमकर निवेश कर रहे हैं। हद तो यह हो गई है कि जब से कोरोना का आक्रमण भारत पर हुआ और इसकी अर्थव्यवस्था औंधे मुंह गिरनी शुरू हुई तब से शेयर बाजार पर कोई असर नहीं पड़ा और यह अपनी ऊपर जाने की गति पकड़े रहा। मगर कोरोना काल के दौरान ही हमने कृषि से सम्बन्धित तीन कानून देखे और सरकार का विनिवेश के जरिये धन उघाने की बड़ी योजना देखी।

विभिन्न सरकारी कम्पनियों के निजीकरण की घोषणा की गई और वित्त क्षेत्र में जीवन बीमा निगम व कई बड़े बैंकों के निजीकरण की स्कीम बनाई गई। सभी में विदेशी निवेश को खुला किया गया । विदेशी निवेशकों के लिए ये बहुत आकर्षक योजनाएं हैं। विदेशी संस्थागत निवेशकों की वित्तीय ताकत का अंदाजा आम या साधारण भारतीयों को नहीं रहा है। कुछ संस्थागत निवेशक ऐसे भी हैं जिनकी कुल वित्तीय जमा पूंजी भारत सरकार के बजट के बराबर तक है। मगर चिन्ता तब पैदा होती है जब भारत के किसी एक उद्योग समूह की चार कम्पनियों में कुछ ऐसे संस्थागत विदेशी निवेशक 43 हजार करोड़ रुपए का निवेश करते हैं जिनका आधार मारीशस देश में है। मगर उनका कोई अता-पता मुकम्मल नहीं हो पाता।

मारीशस के साथ भारत की कर सन्धि है। इसी वजह से मारीशस आधार की कम्पनियों के माध्यम से भारत में पूंजी निवेश जमकर होता है। मारीशस रूट का मामला पिछली वाजपेयी सरकार के दौरान भी उछला था। उस समय वित्तमन्त्री माननीय यशवन्त सिन्हा थे और उन पर आरोप लगा था कि यूटीआई घोटाले से उनके परिवार के सदस्यों के तार जुड़े हुए हैं। कहने का मतलब यह है कि मारीशस आधारित कम्पनी यदि भारत की किसी कम्पनी के शेयरों में मांग व आपूर्ति के आधार पर हवा भरती है तो उसका खामियाजा देश के साधारण निवेशकों को ही भरना पड़ सकता है। शायद यही वजह है कि रिजर्व बैंक ने पिछले दिनों जारी अपनी रिपोर्ट में साफ कहा था कि शेयर बाजार क्यों तेजी की तरफ भाग रहा है, यह उसकी समझ से बाहर है। तेजी का यह गुब्बारा अभी तो ऊंचा उड़ रहा है और इसके ऊंचा उड़ने की वजह का अर्थव्यवस्था से कोई लेना-देना नहीं है। दूसरी तरफ अगर हम सोने के भावों को ले तो ये भी पर लगा कर उड़ रहे हैं। बेशक इसके भाव अन्तर्राष्ट्रीय बाजार भावों से सीधे जुड़े हुए हैं मगर ये बारास्ता डालर की विनिमय दर के ही हैं। डालर लगातार रुपये के मुकाबले महंगा होता गया है।

एक जमाना भारत में वह भी था जब 1996-97 में डालर का भाव 20 रुपए था और सोने का भाव लन्दन सट्टा बाजार में 300 डालर के करीब था तो सर्राफा बाजारों में सोना ठीक दीपावली के समय सेल (घटी दरों) पर बिक रहा था। यह वह दौर था जब बड़े-बड़े शक्तिशाली यूरोपीय देश अपना सोना बेच कर डालर इकट्ठा कर रहे थे। मगर बाद में हालात बदले डालर के रुपये के मुकाबले दाम बढ़ने शुरू हुए और अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में भी सोना इसके समानान्तर बढ़ना शुरू हुआ। अब डालर की कीमत 70 रुपये से ऊपर भाग रही है और इसका हवाला रेट भी बाकायदा भारत में जारी है जो नम्बर दो का कारोबार है। दूसरे अर्थव्यवस्था के लगातार गिरने से स्वर्ण धातु में निवेश बढ़ रहा है इसलिए इसके दाम ऊंचे होते जा रहे हैं। सोने की चमक गायब करने के लिए जरूरी है कि डालर के रेट कम हों जो असंभव दिखाई पड़ता है। इसलिए सोना भी आराम से बढ़ रहा है और शेयर बाजार भी। शेयर बाजार के बढ़ने की एक वजह और भी है कि पिछले डेढ़ साल में कोरोना काल के चलते देश के तीन प्रतिशत लोगों की सम्पत्ति में ही बढ़ावा हुआ है और निजी कम्पनियों अर्थात कार्पोरेट क्षेत्र का मुनाफा बढ़ा है जबकि 97 प्रतिशत लोगों की आय घटी है। समझ में बात आ सकता है कि शेयर बाजार में निवेश कौन लोग कर सकते हैं ?

भारत में पूंजी बाजार के सुधार की व्याख्या करें I

TbiaSupreme

भारत के पूंजी बाजार में समय के साथ कई सुधार देखे गए हैं। भारत के पूंजी बाजार के सामयिक विकास से बाज़ार का हर क्षेत्र में विकास संभव हो पाया है। विकास के कारण इसकी पहुँच बढ़ गई है जिससे अधिकाधिक लोग इसका लाभ उठा सकें। पूंजी बाज़ार क्षेत्र भी बढ़ गया है जिससे लोगो के लिए अवसर बढ़ गए हैं।

suggulachandravarshi

Answer:

भारत के पूंजी बाजार में समय के साथ कई सुधार देखे गए हैं। भारत के पूंजी बाजार के सामयिक विकास से बाज़ार का हर क्षेत्र में विकास संभव हो पाया है। विकास के कारण इसकी पहुँच बढ़ गई है जिससे अधिकाधिक लोग इसका लाभ उठा सकें। पूंजी बाज़ार क्षेत्र भी बढ़ गया है जिससे लोगो के लिए अवसर बढ़ गए हैं।

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