प्रधान मंत्री आवास योजना (PMAY)
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निवेश के लिए 6 क्षेत्रों का अवलोकन
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भारत की कृषि अर्थव्यवस्था का अवलोकन
जैसा कि हम जानते हैं कि भारत एक कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था है। इसकी लगभग 55% जनसंख्या इस क्षेत्र में कार्यरत है। कृषि का भारतीय अर्थव्यस्था के सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 14% योगदान है। लेकिन लगातार हमारी अर्थव्यवस्था में कृषि का योगदान घट रहा है। 1950 के दशक में हमारी अर्थव्यवस्था में कृषि का योगदान 53% प्रतिशत होता था जो वर्तमान में करीब 14% रह गया है। देश में निर्यात के क्षेत्र में कृषि का 10% हिस्सा है। देश की 1.26 अरब आबादी की खाद्य सुरक्षा कृषि पर निर्भर है।
जैसा कि हम जानते हैं कि भारत एक कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था है। इसकी लगभग 55% जनसंख्या इस क्षेत्र में कार्यरत है। कृषि का भारतीय अर्थव्यस्था के सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 14% योगदान है। लेकिन लगातार हमारी अर्थव्यवस्था में कृषि का योगदान घट रहा है। 1950 के दशक में हमारी अर्थव्यवस्था में कृषि का योगदान 53% प्रतिशत होता था जो वर्तमान में करीब 14% रह गया है। देश में निर्यात के क्षेत्र में कृषि का 10% हिस्सा है। देश की 1.26 अरब आबादी की खाद्य सुरक्षा कृषि पर निर्भर है।
भारत की कृषि अर्थव्यवस्था का अवलोकन
1950 के दशक में भारत के सकल घरेलू उत्पाद का आधा हिस्सा कृषि क्षेत्र से आता था । वर्ष 1995 तक यह घटकर 25 प्रतिशत रह गया, जो वर्तमान में करीब 14% घट गया है।
जैसा कि अन्य देशों के विकास में देखा गया है कि जैसे जैसे कोई देश विकास करता है उसके हिस्से में कृषि का योगदान कम होता जाता है यही कारण है कि भारत में अन्य क्षेत्रों के विकास के कारण,यहाँ की अर्थव्यस्था में कृषि क्षेत्र की हिस्सेदारी में लगातार गिरावट आई। जो कि नीचे दिए गए आंकड़ों से समझा जा सकता है।
1951
1965
1976
2011-12
2012-13
2013-14
2015-16
सकल घरेलू उत्पाद में कृषि का हिस्सा (%में)
पिछले पांच दशकों से आंतरिक और बाहरी कारणों से समय समय पर सरकार कृषि नीति में बदलाव करती रही। कृषि नीतियों को आपूर्ति पक्ष और मांग पक्ष में विभाजित किया जा सकता है।
आपूर्ति निवेश के लिए 6 क्षेत्रों का अवलोकन पक्ष की बात की जाए तो इसमें भूमि सुधार, भूमि उपयोग, कृषि विकास , नई प्रोद्योगिकी, सिंचाई और ग्रामीण बुनियादी ढांचे में सार्वजनिक निवेश शामिल है। दूसरी तरफ मांग पक्ष की बात की जाए तो राज्यों का कृषि बाजार में हस्तक्षेप, सार्वजनिक वितरण प्रणाली का ठीक संचालन इत्यादि आता है । कृषि के लिए बनाई गई नीतियाँ सरकार के बजट को प्रभावित करती हैं। सरकार की औद्योगिक नीतियों में भी कृषि क्षेत्र के विकास के लिए विशेष प्रावधान रखे जाते हैं ।
हरित क्रांति से पहले 1964-1965 की अवधि के दौरान कृषि क्षेत्र में 2.7 प्रतिशत की वार्षिक औसत वृद्धि हुई। इस अवधि में भूमि सुधार नीति और सिंचाई के विकास की दिशा में जोर दिया गया । हरित क्रांति के समय 1960 से 1991 के दशकों में, वर्ष 1965-66 से 1975-76 की अवधि में कृषि क्षेत्र में 3.2 प्रतिशत की वृद्धि हुई और वर्ष 1976-1977 से 1991-1992 के दौरान कृषि क्षेत्र में 3.1 प्रतिशत की वृद्धि हुई। इस अवधि के दौरान सरकार की ओर से पर्याप्त नीति और पैकेज में इन उपायों को शामिल किया गयाः
क) कृषि को मजबूत बनाने के लिए गेहूं और चावल की उन्नत किस्मों का उपयोग, कृषि से सम्बंधित अनुसंधान और विस्तार सेवाओं को बढ़ावा देना।
ख) कृषि उपज को बढ़ाने के लिए रासायनिक उर्वरकों व कीटनाशकों के प्रयोग को बढ़ावा देना।
ग) प्रमुख लघु सिंचाई सुविधाओं का विस्तार।
घ) प्रमुख फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा, सरकारी खरीदी और सार्वजनिक वितरण जरूरतों को पूरा करने और अनाजों के बफर स्टॉक के लिए इमारतों का निर्माण।
ई) प्राथमिकता के आधार पर कृषि ऋण का प्रावधान।
च) इस अवधि में भी केंद्र व राज्य सरकार ने बाजार की जरूरतों का ध्यान रखा। किसानों की उपज को खरीदने के लिए उपयुक्त कदम उठाए। ताकि उनके उत्पाद का उन्हें सही मूल्य मिल सके।
खाद्यान्न उत्पादन में बृद्धि:
वर्ष 2011-12 के लिए कुल 250.42 खाद्यान्न उत्पादन का हुआ था, जो पिछले वर्ष के रिकॉर्ड उत्पादन से 5.64 लाख टन अधिक था। इसमें चावल का उत्पादन 102.75 लाख टन, गेहूं का 88.31 लाख टन व मोटे अनाज 42.08 लाख टन और दलहन का उत्पादन 17.28 लाख टन था। 2011-12 के दौरान तिलहन का उत्पादन 30.53 लाख टन, गन्ने का उत्पादन 347.87 लाख टन व कपास का उत्पादन 34.09 लाख गांठ के उत्पादन का अनुमान लगाया गया। वहीं जूट का उत्पादन 10.95 लाख गांठ उत्पादन का अनुमान लगाया गया।
देश के कुछ हिस्सों में अनिश्चित मौसम के बावजूद रिकार्ड उत्पादन हुआ। वर्ष 2011-12 के दौरान 245 लाख टन लक्षित उत्पादन की तुलना में पांच करोड़ टन अधिक खाद्यान्न हुआ। कृषि फसलों का उत्पादन कुल रकबा और पैदावार पर निर्भर करता है। रकबा का विस्तार होने से पैदावार में सुधार हुआ। गेहूं के मामले में वर्ष 2001 से 2011 के दौरान रकबा बढ़ा लेकिन औसत उत्पादकता नहीं बढ़ी । इसके लिए लिए सुझाव दिया गया कि उत्पादन को बढ़ाने के लिए जमीन की नए सिरे से अनुसंधान की जरुरत है।
वर्ष 2001 से 2011 के दौरान मक्का को छोड़कर सभी मोटे अनाजों का उत्पादन अनुमान के अनुरूप नहीं रहा। इस दौरान मक्का में 2.68 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि दर दर्ज की गई। हालांकि बाद में मक्के के उत्पादन में 7.12 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
दो अवधियों में पैदावार की विकास दर में वृद्धि हुई है जो कि मूंगफली और कपास में देखी गई। वर्ष 2002 के दौरान बीटी कपास के आने से कपास की फसल में महत्वपूर्ण परिवर्तन आया। 2002-03 की तुलना में 2011-12 में कपास का उत्पादन दोगुना हो गया। कपास क्षेत्र का लगभग 90 प्रतिशत स्थान बीटी काटन ले लिया । इस दौरान कपास की पैदावार में लगभग 70 प्रतिशत की वृद्धि हुई और प्रति वर्ष कच्चे कपास का निर्यात 10,000 करोड़ रुपये से अधिक हो गया।
इस प्रकार उपर्युक्त विश्लेषण से यह बात सिद्ध हो जातो है कि भारत अभी भी काफी हद तक कृषि प्रधान देश ही है और यदि इस देश को विकसित देश बनना है तो कृषि के विकास को साथ लेकर चलना पड़ेगा, अन्यथा देश में खाद्यान्न संकट उत्पन्न हो जायेगा, और कोई भी देश भूखे पेट विकास के रास्ते पर नहीं पहुच सकता I
E-Shram Card : सरकार मजदूरों को हर महीने देगी 3000 रुपए, जानिए कैसे?
E-Shram Card : ई-श्रम कार्ड बनवाने के लिए कोई भी 16 से 59 वर्ष का असंगठित क्षेत्र में कार्य करने वाले मजदूर इसमें आवेदन कर सकते हैं.
E-Shram Card Benefit: देश के असंगठित क्षेत्रों में काम करने वाले मजदूरों के उत्थान के लिए केंद्र और राज्य सरकारें कई योजनाएं संचालित कर रही है. पंजीकृत कामगारों के बच्चों की शिक्षा, पुत्रियों के विवाह से लेकर इलाज तक के लिए योजनाएं हैं. असंगठित क्षेत्रों में काम करने वाले मजदूरों के लिए सरकार की ओर से पंजीकरण के बाद ई श्रम कार्ड जारी किया जाता है. जो मजदूर इस योजना के तहत अपना (E-Shram Card Registration) कराते हैं उन्हें सरकार की ओर से कई तरह की सुविधाएं प्रदान की जाती हैं. ई-श्रम कार्ड (E-Shram Card) बनवाने के लिए कोई भी 16 से 59 वर्ष का असंगठित क्षेत्र में कार्य करने वाले मजदूर इसमें आवेदन कर सकते हैं.
बता दें कि ई-श्रम कार्ड के लिए निर्धारित योग्यता रखने वाले कामगारों और मजदूरों को ई श्रम पोर्टल पर पंजीकरण कराना होगा. E-Shram Card बनवाने के लिए आधिकारिक वेबसाइट eshram.gov.in पर जाकर रजिस्ट्रेशन कर सकते है. इसके अलावा आप सीएससी सेंटर पर जाकर भी पंजीकरण करवा सकते हैं.
हर महीने मिलेगी पेंशन
ई-श्रम कार्ड का पंजीकरण करने के लिए कामगारों को कुछ जरूरी दस्तावेजों की जरूरत पड़ेगी. जैसे – आवेदक का आधार कार्ड, आधार से लिंक्ड मोबाइल नंबर, बैंक अकाउंट नंबर, आदि. इन दस्तावेजों के आधार पर आप आसानी से ई-श्रम कार्ड के लिए रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया को पूरा कर सकेंगे. असंगठित क्षेत्र के कामगारों और श्रमिकों के हित के लिए केंद्र सरकार ने एक पोर्टल भी बनाया है. इस योजना में पंजीकृत श्रमिकों को 60 वर्ष पूरे होने पर पेंशन के रूप में हर महीने 3000 रूपए की आर्थिक मदद दी जाएगी.
सभी श्रमिकों को पोर्टल पर पंजीकरण कराने पर एक ई-श्रम कार्ड (E-Shram Card) जारी किया जाएगा. जिसके माध्यम से वो इन योजनाओं का लाभ ले सकेंगे. आप को बता दें की ये कार्ड एक 12 अंकों वाला श्रमिक कार्ड होता है. जो एक तरह से मजदूरों के पहचान के तरह कार्य करता है.
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ई-श्रम कार्ड के फायदे
- ई-श्रम पोर्टल पर पंजीकृत कामगारों को 2 लाख रूपये तक के दुर्घटना बीमा की सुविधा मिलती है.
- यदि दुर्घटना में कामगार की मृत्यु हो जाती है तो उसके परिवार को 2 लाख रूपये दिए जाएंगे.
- यदि दुर्घटना में कामगार आंशिक रूप से विकलांग होता है तो उसे मात्र 1 लाख रूपये की आर्थिक मदद दी जाएगी.
- पंजीकृत कामगारों को एक UAN दिया जाएगा. जिससे उन्हें सरकारी योजना का लाभ मिल सके.
English News Headline : E-Shram Card Benefits For Labours Pension in Hindi.
e-Shram Card registration: कराना चाहते हैं ई-श्रम पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन, तैयार रखें ये डॉक्यूमेंट
e-Shram Card registration: इसपर रजिस्ट्रेशन के लिए आधार नंबर, आधार से जुड़ा मोबाइल नंबर और बैंक अकाउंट नंबर जरूरी है.
असंगठित क्षेत्र के 2 करोड़ से ज्यादा श्रमिक यहां रजिस्ट्रेशन करवा चुके हैं. (फोटो: पीटीआई)
e-Shram Card registration: केंद्र सरकार ने हाल ही में ई-श्रम पोर्टल शुरू किया है जिसे आधार कार्ड के साथ जोड़ा जाएगा. वहीं इसके रजिस्ट्रेशन के लिए श्रमिकों के पास कुछ जरूरी डॉक्यूमेंट होने चाहिए. ये हैं आधार नंबर, आधार से जुड़ा मोबाइल नंबर और बैंक अकाउंट नंबर. e-Shram पोर्टल के तहत रजिस्टर्ड श्रमिकों को प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना (PMSBY) के तहत नामांकित (enrolled) किया जाएगा. वहीं इसके पहले साल का प्रीमियम केंद्र सरकार का श्रम एवं रोजगार मंत्रालय (Ministry of Labour & Employment) देगा.
2 करोड़ से ज्यादा श्रमिकों ने कराया रजिस्ट्रेशन
आपको बता दें कि अब तक असंगठित क्षेत्र के 2 करोड़ से ज्यादा श्रमिक इस पोर्टल पर अपना रजिस्ट्रेशन करवा चुके हैं. श्रमिक कॉमन सर्विस सेंटर्स (CSCs), या राज्य सरकार के रीजनल ऑफिस में जाकर अपना नाम दर्ज करवा सकते हैं और इसके लिए उन्हें कोई फीस नहीं देनी होगी. वहीं वो खुद भी eshram.gov.in पर अपना नाम रजिस्टर करवा सकते हैं. असंगठित श्रमिकों के लिए इसमें अपना नाम दर्ज करवाने के लिए कोई आय मानदंड (income criteria) नहीं है. बस शर्त ये है कि वो इनकम टैक्स (income tax payee) न दे रहे हों.
श्रमिक कार्ड के लिए रजिस्ट्रेशन का प्रोसेस
-इसपर रजिस्ट्रेशन करने के लिए ई-श्रमिक पोर्टल की आधिकारिक वेबसाइट eshram.gov.in पर लॉगिन करें.
-होम पेज पर 'Register on e-SHRAM' के लिंक पर क्लिक करें.
-अब आधार से जुड़ा मोबाइल नंबर और कैप्चा कोड दर्ज करें. इसके बाद सेंड ओटीपी पर क्लिक करें
-रजिस्ट्रेशन प्रोसेस को पूरा करने लिए दिए गए निर्देश को फॉलो करें.
अगर किसी श्रमिक के पास आधार से जुड़ा मोबाइल नंबर नहीं है तो वो नजदीकी CSC सेंटर पर बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण (Biometric authentication) के जरिए रजिस्टर करवा सकते हैं.
इस टोल फ्री नंबर पर कर सकते हैं कॉल
मजदूर आसानी से इस पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन करवा पाएं, इसके लिए सरकार ने एक टोल फ्री नंबर जारी किया है. ये नंबर है 14434. अगर किसी मजदूर को रजिस्ट्रेशन करवाने में परेशानी हो रही है, तो वो इस नंबर पर कॉल कर सकता है.
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