भारत में म्यूचुअल फंड में निवेश कैसे करें?

म्यूचुअल फंड उद्योग एक प्रकार का निवेश वाहन है जो कई निवेशकों से स्टॉक, बॉन्ड, मनी मार्केट इंस्ट्रूमेंट आदि जैसी प्रतिभूतियों में निवेश करने के लिए धन एकत्र करता है। पेशेवर मनी मैनेजर म्यूचुअल फंड का प्रबंधन करते हैं, संपत्ति आवंटित करते हैं और निवेशकों के लिए पूंजीगत लाभ का उत्पादन करने का प्रयास करते हैं। म्यूचुअल फंड पोर्टफोलियो संरचित और उनके प्रॉस्पेक्टस में उल्लिखित निवेश उद्देश्यों से मेल खाने के लिए प्रबंधित होते हैं। व्यक्ति और छोटे व्यवसाय म्यूचुअल फंड में निवेश कर सकते हैं, जो उन्हें स्टॉक, बॉन्ड आदि के पेशेवर रूप से प्रबंधित पोर्टफोलियो तक पहुंच प्रदान करते हैं। शेयरधारक फंड के लाभ या हानि को आनुपातिक रूप से साझा करते हैं। आम तौर पर, म्यूचुअल फंड का प्रदर्शन फंड के कुल मार्केट कैप में बदलाव पर आधारित होता है, जो फंड के अंतर्निहित निवेश के प्रदर्शन को जोड़कर प्राप्त किया जाता है।

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Mutual Fund: संभलकर करें निवेश, नहीं तो हो सकता है भारी नुकसान!

Mutual Fund: संभलकर करें निवेश, नहीं तो हो सकता है भारी नुकसान!

डीएनए हिंदी: म्यूचुअल फंड में एसआईपी (SIP) के जरिए निवेश होता है, इसके बारे में तो हम सभी बखूबी जानते हैं. अगर यह कहा जाए कि एसआईपी अब म्यूचुअल फंड का पर्यायवाची बन गया है तो कहना गलत नही होगा. हालांकि बहुत कम लोगों को पता है कि एसआईपी के अलावा भी बहुत से तरीके हैं जिनसे आप म्यूचुअल फंड (Mutual Fund) में निवेश कर सकते हैं. बता दें कि म्यूचुअल फंड कई तरह के निवेश के विकल्पों की सुविधा देते हैं. इनमें अलग अलग एसेट क्लास (Asset Class) और टैक्स बेनिफिट (Tax Benefit) होते हैं.

अमूमन ज्यादातर लोग म्यूचुअल फंड (Mutual Fund) में एक साथ या एसआईपी के जरिए मंथली बेसिस पर निवेश करते हैं. हालांकि कई बार ऐसी परिस्थितियां भी पनप जाती हैं जब एसआईपी के जरिए निवेश करना नुकसानदायक हो जाता है. यहां हम एसआईपी (SIP) से होने वाले नुकसान के बारे में बताएंगे जिन्हे अपनाकर आप परेशानियों से बच सकते हैं.

संभलकर चुनें फंड

अगर आप म्यूचुअल फंड में निवेश करने जा रहे हैं तो पहले अपने फाइनेंशियल टारगेट (Financial Target) के बारे में पता करें. यानी आप म्यूचुअल फंड में एसआईपी के जरिए निवेश क्यों करना चाहते हैं, मान लीजिए अगर आपने गलत फंड चुन लिया तो आप अपने टारगेट को पूरा नहीं कर पाएंगे. इसलिए सोच समझकर फंड का चुनाव करें.

अक्सर हम म्यूचुअल फंड (Mutual Fund) में निवेश करते वक्त उलझ जाते हैं कि हमें किस प्लान को लेना चाहिए तो मैं आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि ग्रोथ प्लान का चुनाव बेहतर रहेगा. ग्रोथ प्लान डिविडेंड प्लान के मुकाबले हाई रिटर्न देता है. आपको जानकर हैरानी होगी कि म्यूचुअल फंड एसेट्स अंडर मैनेजमेंट (Assets Under Management) से ही डिविडेंड देता है, जिससे फंड की NAV घट जाती है और डिविडेंड फंड की फेस वैल्यू पर निकाला जाता है. ग्रोथ प्लान को चुनकर आप टैक्स में भी रियायत पा सकते हैं.

बाजार गिरने पर ज्यादा निवेश करें

बाजार में गिरावट और उछाल दोनों देखने को मिलता है. जब बाजार में गिरावट हो तो घबराएं नहीं बल्कि अच्छे स्टॉक्स की खरीदारी करें. उन्हें अपने म्यूचुअल फंड में जोड़ें

Investment Tips : बढ़ती महंगाई और मंदी के खतरे के बीच कैसे तैयार करें पोर्टफोलियो? कहां पैसा लगाना होगा फायदेमंद

नई दिल्ली. ये साल निवेशकों के लिए उतना बेहतर नहीं रहा, जितना 2021 रहा था. कोविड-19 के प्रभाव के बावजूद भारतीय बाजारों ने निवेशकों को तब जबरदस्त रिटर्न दिया था. हालांकि, 2022 में यूक्रेन-रूस युद्ध, कच्चे तेल की ऊंची कीमतों के कारण बढ़ती महंगाई, सख्त मौद्रिक नीतियों और मंदी की आशंका ने मनी मार्केट की कमर तोड़ दी. आगे भी कुछ समय स्थिति कमोबेश इसी तरह की दिख रही है. ऐसे में लोगों के पास निवेश के लिए क्या विकल्प हैं?

ऐसे समय में आपकी निवेश की रणनीति क्यों होनी चाहिए. आपको कहां और कितना निवेश करना चाहिए, यह समझना बहुत जरूरी है. अगर आप सोच-समझकर अपने निवेश से जुड़े फैसले करते हैं तो निश्चित है कि बाजार में किसी बड़ी उथल-पुथल का असर भी आप पर ज्यादा नहीं होगा. आज हम आपको यही किस एसेट क्लास में निवेश बताएंगे कि आप अपना पोर्टफोलियो किस तरह तैयार करें?

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केवल इक्विटी में नहीं लगाएं पैसा
शेयर मार्केट में पैसा लगाने का मकसद छोटी अवधि में अधिक कमाई होता है. हालांकि, विशेषज्ञ मानते हैं कि शेयर मार्केट में आपको लंबे समय तक पांव जमाने चाहिए. बेशक इक्विटी आपको कम समय में अन्य किसी एसेट के मुकाबले अधिक रिटर्न देने की क्षमता रखती है, लेकिन इसमें रिस्क फैक्टर भी उतना ही अधिक होता है. इसलिए अपना सारा निवेश शेयरों में डालने की बजाय डेट और गोल्ड की तरफ भी ध्यान दें. जानकारों के अनुसार, अपनी अपनी रिस्क लेने की क्षमता के अनुसार, इन एसेट्स में निवेश का बंटवारा कर सकते हैं. मान लीजिए आप अधिक जोखिम लेने की क्षमता रखते हैं तो इक्विटी, डेट और गोल्ड में 70-25-5 के अनुपात में निवेश करें. आप मध्यम स्तर का रिस्क लेना चाहते हैं तो ये अनुपात 45-45-10 कर दें. जबकि अगर आप रिस्क बहुत ही कम लेना चाहते हैं को इसे 20-70-10 कर दें. इक्विटी में फिलहाल लार्ज एंड मिड कैप और मल्‍टीकैप श्रेणी में निवेश किया जा सकता है. जबकि डेट में आप मैच्‍योरिटी वाले फंड और डायनमिक बॉन्‍ड देख सकते हैं.

अलग-अलग एसेट क्लास क्यों?
निवेश एक्सपर्ट्स का मानना है कि बाजार में अनिश्चितताएं अभी बनी हुई हैं. शॉर्ट टर्म में वैश्विक रुझान भी कुछ बेहतर नहीं दिख रहे हैं. ऐसे में किसी एक एसेट क्‍लास पर ध्यान केंद्रित करना गलत साबित हो सकता है. इसके बजाय लोगों को अलग-अलग एसेट क्‍लास पर ध्‍यान देना चाहिए. जानकारों के अनुसार, आप कितना रिस्क ले सकते हैं और बाजार में कितना समय बिता सकते हैं इन 2 कारकों को ध्यान में रखते हुए ही निवेश करना चाहिए. विशेषज्ञ इसीलिए पोर्टफोलियो को इक्विटी, गोल्ज और डेट में बांटने की सलाह दे रहे हैं.

गोल्‍ड में निवेश
आमतौर पर लोग गोल्ड में निवेश इसलिए करते हैं कि अन्य एसेट क्लास में उन्हें घाटा हो रहा हो तो यहां थोड़ा समर्थन मिल जाए. इसलिए पोर्टफोलियो का 10 फीसदी स्टैंडर्ड तौर पर गोल्ड में लगाया जाता है. गोल्ड में निवेश के लिए सॉवरेन गोल्ड बांड को देखा जा सकता है. इसमें सालाना रिटर्न में 2.5 फीसदी का अतिरिक्त बेनिफिट मिलता है. गोल्ड में निवेश से आपको बाजार की अनिश्चितता के दौरान सुरक्षा मिलती है.

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Interest Rates में बढ़ोतरी के समय चाहते हैं बेहतर रिटर्न? अभी फ्लोटिंग रेट फंड में है निवेश किस एसेट क्लास में निवेश का बेहतर अवसर

नई दिल्‍ली, मनीष बंथिया। डेट मार्केट में पिछले कुछ महीनों में कई बदलाव देखे गए हैं। पिछले एक साल में इस एसेट क्‍लास में लोगों ने निवेश को काफी हद तक नजरअंदाज किया है। लेकिन निवेश के हिसाब से आगे का दौर काफी अच्‍छा दिख रहा है। अगले दो-तीन महीने काफी हद तक ब्‍याज दरों के समायोजन के होंगे, क्‍योंकि रिजर्व बैंक आगे भी ब्‍याज दरें बढ़ा सकता है। एक बार यह चरण खत्‍म हो जाए, तो हमारा मानना है कि अन्‍य एसेट क्‍लास के मुकाबले फिक्‍स्‍ड इनकम वाले डेट साधन आकर्षक हो जाएंगे।

हमारा यह दृढ़ मत इस तथ्‍य पर आधारित है कि एक एसेट क्‍लास के रूप में फिक्‍स्‍ड इनकम वर्ग साइक्‍लिकल यानी चक्रीय प्रकृति का होता है। पिछले 2 साल में रिजर्व बैंक ने ब्‍याज दरों में कटौती ही की थी, जिसकी वजह से ज्‍यादातर डेट फंड के यील्‍ड टु रिटर्न यानी YTM घटकर 4 से 5 फीसद तक आ गए थे। अब जब ब्‍याज दरों में बढ़त का सिलसिला शुरू हुआ है अगले दो-तीन महीने उतार-चढ़ाव वाले रहेंगे। लेकिन इसके बाद YTM 7 से 8 फीसद के आकर्षक दायरे में पहुंच सकता है। इसलिए अब फिक्‍स्‍ड इनकम साधनों में निवेश शुरू करने का समय आ गया है।

किसी साधन में आगे किस तरह के अवसर और रिटर्न मिल सकते हैं, इसका अंदाजा लगाने के लिए निवेशकों को उसके पिछले रिटर्न को नहीं देखना चाहिए।

निवेश के लिए एक बेहतर रणनीति यह होगी कि आप फ्लोटिंग रेट फंड का चुनाव करें। इसकी वजह यह है कि इसकी प्रकृति बढ़ते ब्‍याज दरों के साथ समायोजन की होती है और इनमें रिटर्न भी ज्‍यादा मिलता है, क्‍योंकि बेंचमार्क या RBI के ब्‍याज दरें बढ़ने से यह भी बढ़ जाता है।

फ्लोटिंग दरों की सिक्‍योरिटीज का बढ़ते ब्‍याज दरों के साथ एक सकारात्‍मक सहसंबंध होता है और यह निवेशकों के पोर्टफोलियो को जरूरी सहारा दे सकता है।

फ्लोटिंग रेट बॉन्‍ड में रिटर्न स्थिर नहीं होता बल्‍कि ब्‍याज दरों के बढ़ने पर यह बढ़ता जाता है। इस तरह जब कूपन रेट यानी रिटर्न से आमदनी बढ़ रही हो और यह दर लगातार समायोजित हो रही हो तो मूल पूंजी को भी नुकसान नहीं होता।

इस तरह बढ़ते ब्‍याज दर के बाजार में किसी फ्लोटिंग रेट वाली सिक्‍योरिटी में कुल रिटर्न ऊंचाई की ओर बढ़ता जाता है। उदाहरण के लिए मान लीजिए किसी व्‍यक्‍ति ने कोई मकान खरीदा, तो वह फ्लोटिंग रेट पर लोन लेना पसंद करता है, अगर उसे लगता है कि आगे चलकर ब्‍याज दरें घटने वाली हैं। दूसरी तरफ, जब ब्‍याज दरें बढ़ने का अनुमान हो तो निवेशक उस समय के फिक्‍स रेट पर लोन लेना पसंद करेगा, अगर वह कम हो तो।

लेकिन फ्लोटिंग रेट बॉन्‍ड में इसका उलटा सिद्धांत काम करता है, क्‍योंकि यहां निवेशक पैसा लगा रहा है, न कि कोई कर्ज ले रहा है। आगे ब्‍याज दर बढ़ी तो उसे ज्‍यादा रिटर्न मिलेगा।

भारत सरकार ने फ्लोटिंग रेट साधनों का जो मौजूदा मूल्‍यांकन किया है वह 'ऐतिहासिक' रूप से आकर्षक दिख रहा है। इसे आंकने का एक सरल तरीका यह है कि फ्लोटिंग रेट बॉन्‍ड की तुलना आप उसी के बराबर मैच्‍योरिटी वाले दूसरे फिक्‍स्‍ड रेट वाले बॉन्‍ड से करें। स्‍वैपिंग करने से आपको फ्लोटिंग रेट बॉन्‍ड की फिक्‍स्‍ड से और इसी तरह इसके उलट हेज करने में मदद मिलेगी। अगर फ्लोटिंग रेट बॉन्‍ड हेज किए जाते हैं और इन्‍हें फिक्‍स्‍ड में बदल दिया जाता है तो निवेशक ऐपल टु ऐपल यानी एकसमान चीजों की तुलना कर सकता है।

इसे और सरल बनाने के लिए चलिए हम हेज किए गए किसी फ्लोटिंग रेट बॉन्‍ड को सिंथेटिक फिक्‍स्‍ड रेट बॉन्‍ड के नाम से पुकारते हैं। अब आप नीचे दिए टेबल से यह देख सकते हैं फिक्‍स्‍ड रेट सरकारी बॉन्‍ड्स और सिंथेटिक फिक्‍स्‍ड रेट सरकारी बॉन्‍ड्स में कितना रिटर्न मिल रहा है।।

(17 जून 2022 तक)

फ्लोटिंग रेट बॉन्‍ड पर रिटर्न का अंदाजा लगाने का सही तरीका यह देखना होगा कि सिंथेटिक फिक्‍स्‍ड रेट बॉन्‍ड पर कितना यील्‍ड मिल रहा है। इस तरह 12 साल के सरकारी फ्लोटिंग रेट बॉन्‍ड पर मैच्‍योरिटी पीरियड पर 8।9 फीसद का रिटर्न मिलने का अनुमान है। दूसरी तरफ, 6 साल के सरकारी फ्लोटिंग रेट बॉन्‍ड पर 8।2 फीसद का रिटर्न मिलने का अनुमान है। अब आंकड़ों को समझने के लिए आपको बता दें कि पिछले 20 साल में अगर 2008 और 2013 के कुछ दिनों को छोड़ दिया जाए तो कभी भी 10 साल के सरकारी बॉन्‍ड की खरीद-फरोख्‍त 9 फीसद से ऊपर नहीं हुई है।

फिलहाल खुदरा एफडी पर मिल रहे ब्‍याज और AAA कॉरपोरेट बॉन्‍ड पर मिल रहे 8 फीसदी के सबसे ऊंचे यील्‍ड को देखते हुए भारत सरकार द्वारा जारी ये बॉन्‍ड पिछले 20 साल के सबसे आकर्षक फिक्‍स्‍ड इनकम साधन साबित हो सकते हैं। यह ऐतिहासिक है और भारत में आज के दिन की बात करें तो सभी एसेट क्‍लास में सबसे सच्‍चा और गहरा वैल्‍यू प्रदान करने वाला निवेश अवसर है।

डिस्‍क्‍लेमर: परंपरागत निवेश अवसरों में रिटर्न का भरोसा और गारंटी मिलती है, लेकिन म्‍युचुअल फंड निवेश से बाजार का उतार-चढ़ाव और जोखिम जुड़ा होता है।

(लेखक ICICI Prudential AMC के सीनियर फंड मैनेजर हैं। प्रकाशित विचार उनके निजी हैं।)

एक जैसे नामों से दिग्भ्रमित न हों

म्यूचुअल फंड निवेश के मामले में कुछ ऐसे नाम एवं शब्दावलियां होती हैं जिनमें भिन्नता होते हुए भी कई वजहों से एकरूपता दिखती है। इसकी वजह से निवेशकों के लिए काफी भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। उदाहरण के तौर पर आप ग्रोथ फंड एवं ग्रोथ ऑप्शन को ही देखिए, इसमें नामकरण के स्तर पर कितनी समानता दिखती है। उसी तरह ज्यादातर निवेशक डिविडेंड एवं डिविडेंड यील्ड फंड के आधारभूत अंतर को समझ नहीं पाते एवं दोनों को एक ही जैसा मानते हैं। निवेशकों को इस शब्द के वास्तविक अर्थ एवं नामों के बीच के अंतर को ठीक से समझना होगा। आइए इस पहलू पर विस्तार से चर्चा करते हैं-

इक्विटी फंड्स में डिविडेंड एवं ग्रोथ ऑप्शन

म्यूचुअल फंड बाजार में इस समय कई प्रकार के फंड मौजूद हैं जिनमें काफी समानता दिखती है परंतु उनके बीच के अंतर को पता करने के लिए उनके एसेट क्लास (जहां निवेश किया जा रहा है) पर नजर रखी जा सकती है। मतलब ये कि इक्विटी ओरियेंटेड फंड, इक्विटीज में एवं डेट ओरिएंटेड फंड, डेट में ही अपने पैसै लगाते हैं। एक बार जब फंड विशेष का चुनाव कर लिया जाता है फिर उसके बाद इस बात की रूप-रेखा भी तैयार हो जाती है कि वह किस तरह से प्रदर्शन करेगा। फंड के अंतर्गत किस एसेट क्लास में निवेश इस तरह के कई सब-ऑप्शन हैं जो ग्रोथ एवं डिविडेंड ऑप्शन के रूप में कमाई का प्रबंधन करते हैं।

इसका मतलब ये कि कुछ विशेष फंड जिसमें संपूर्ण निवेश किया गया है उसे पोर्टफोलियो में देखा जा सकता है। इसके अंतर्गत निवेशक को फंड से होने वाली कमाई का प्रबंधन कैसे होगा, इसे सुनिश्चित करने का विकल्प मिलता है। यह ग्रोथ के रूप में हो सकता है जहां फंड की कुल कमाई को संग्रहित किया जाता है। इस ग्रोथ की वजह से फंड के नेट एसेट वैल्यू (एनएवी) में भी वृद्धि होती है। ग्रोथ ऑप्शन के अंतर्गत यदि निवेशक कमाई या आय प्राप्त करना चाहते हैं तो उन्हें फंड से यूनिटों की आवश्यक संख्या को बेचकर उसमें से रकम निकालना होगा।

बात जब डिविडेंड की होती है तब निवेशक म्यूचुअल फंड को इसका अधिकार देता है कि वह डिविडेंड के रूप में आंशिक या संपूर्ण अदायगी करके आय संबंधी मसले से निपटे। यहां निवेशकों द्वारा डिविडेंड पेआउट प्राप्त किया जा सकेगा। इसके अंतर्गत उन्हें (निवेशक) अपने बैंक एकाउंट में कैश के रूप में डिविडेंड प्राप्त होगा। इतना ही नहीं डिविडेंड, डिविडेंड रीइंवेस्टमेंट रूट के जरिए भी प्राप्त किया जा सकता है जहां निवेशक को डिविडेंड के रूप में कुछ अतिरिक्त यूनिटें मिलेंगी। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि जब म्यूचुअल फंड को लगेगा कि सरप्लस अमाउंट मौजूद है तो वही डिविडेंड तय करेगा। इन सबके बीच निवेशकों को यह अधिकार भी मिलता है कि वे अपने निवेश को बेच कर अपने पैसे वापस प्राप्त कर सकते हैं।

डिविडेंड यील्ड फंड

अभी तक हमने डिविडेंड के बारे में बात की। आइए अब डिविडेंड यील्ड फंड के बारे में बात करते हैं। डिविडेंड यील्ड फंड, म्यूचुअल फंड स्कीम का प्रकार है जो कि फंड मैनेजमेंट की एक रणनीति पर आधारित है। डिविडेंड यील्ड फंड एक इक्विटी ओरिएंटेड फंड है किस एसेट क्लास में निवेश जो स्टॉक एक्सचेंज पर सूचीबद्ध कंपनियों में इक्विटी की खरीद करता है। हालांकि इस फंड के पोर्टफोलियो में विशेष प्रकार के कंपनियों को ही जगह मिल पाता है।

कौन सी कंपनी ऊंची डिविडेंड यील्ड देती है इसे फंड ही तय करता है एवं इसका निर्धारण कुछ कारकों पर निर्भर करता है। डिविडेंड यील्ड की गणना दरअसल कंपनी के वर्तमान शेयर प्राइस द्वारा प्रति शेयर घोषित डिविडेंड में भाग देकर की जाती है। यदि डिविडेंड यील्ड ऊंचा है तो इसका मतलब है कि संबंधित कंपनी अच्छा (डिविडेंड के रूप में ही) रिटर्न दे रही है। फंड, ऊंची डिविडेंड यील्ड को परिभाषित करता है एवं फंड मैनेजर सूची से वैसी कंपनियों का चुनाव करता है जो आवश्यक मानदंडों को पूरा करता हो। इससे यह सुनिश्चित होता है कि पोर्टफोलियो में हाई डिविडेंड यील्ड देने वाली कंपनियों को शामिल किया गया है। इसके अलावा यह भी उम्मीद की जाती है कि पोर्टफोलियो एक निश्चित मनोदशा के साथ व्यवहार करेगा।

अत: पोर्टफोलियो में चुने गए शेयरों के आधार पर किस एसेट क्लास में निवेश डिविडेंड यील्ड फंड विशेष तरह का व्यवहार करता है। इस तरह के फंड कुछ निश्चित परिस्थितियों मसलन यदि बाजार की स्थिति अच्छी न हो या भ्रम व असुरक्षा का माहौल उत्पन्न हो गया तो, में अच्छा प्रदर्शन करते हैं। हालांकि बाजार की मनोदशा जब सकारात्मक हो एवं यह अच्छा प्रदर्शन कर रहा हो तो ये कंपनियां (पोर्टफोलियो में शामिल) उम्मीद के मुताबिक डिविडेंड नहीं प्राप्त कर पातीं हैं। इसलिए डिविडेंड यील्ड की गणना करते समय इन परिस्थितियों पर भी नजर रखनी चाहिए।

दोनों का सम्मिश्रण

इस तरह की परिस्थितियां भी हो सकती है जहां डिविडेंड यील्ड फंड के पास भी डिविडेंड ऑप्शन हो। चूंकि यह ऑप्शन सभी प्रकार के फंड्स में उपलब्ध रहता है इसलिए इससे निवेशकों के मन में किसी तरह का भ्रम उत्पन्न नहीं होता।

दरअसल डिविडेंड यील्ड फंड उस एसेट को प्रदर्शित करता है जिसमें निवेश (स्कीम द्वारा) किया जाएगा एवं डिविडेंड ऑप्शन वह रूट होगा जिसके जरिए निवेशक सुनिश्चित कर सकेगा कि फंड द्वारा की जा रही कमाई उसे प्राप्त हो। इस पहलू पर काफी सावधानी पूर्वक ध्यान देने की जरूरत है ताकि निवेशक को अपने निवेश को लेकर (कहां निवेश किया जा रहा है) कोई संदेह न रहे।

एक और संदेह की स्थिति वहां उत्पन्न हो सकती है जहां कोई कखग (मान लें) ग्रोथ फंड हो एवं वहां ग्रोथ ऑप्शन भी हो। ऐसी परिस्थिति में भी पूरे मसले को ठीक से समझा जा सकता है। यहां निवेशक को सबसे पहले ग्रोथ फंड की प्रकृति पर नजर रखनी चाहिए। इससे यह पता चलेगा कि किस तरह के शेयरों को इस फंड के पोर्टफोलियो में जगह दी गई है। उसके बाद फंड के अंतर्गत चयनित सब-ऑप्शन पर भी नजर डालें। यह ग्रोथ या डिविडेंड ऑप्शन के रूप में हो सकता है।

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