इसमें कहा गया है कि अगस्त महीने में आर्थिक स्थिति पटरी पर लौटती दिखी। इसका कारण महामारी की रोकथाम के लिये लगायी गयी पाबंदियों से विभिन्न क्षेत्रों में ढील दिये जाने तथा टीकाकरण अभियान में तेजी से वृद्धि है।
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आपूर्ति और मांग क्षेत्र संकेतक
मूल्य की चाल रैखिक नहीं हैं. मांग और आपूर्ति कीमतें ड्राइव करते हैं.जब मांग आपूर्ति और मांग क्षेत्र संकेतक आपूर्ति से अधिक हो जाती है तो कीमतें अधिक हो जाती हैं और जब आपूर्ति मांग से अधिक हो जाती है तो कीमतें कम हो जाती हैं. जब निरंतर और निरंतर मांग होती है, तो एक अपट्रेंड होता है, और इसी तरह, जब निरंतर और निरंतर आपूर्ति होती है, तो डाउनट्रेंड होता है. निरंतर खरीदारी के बीच, एक अवधि हो सकती है जब आपूर्ति मांग से अधिक होती है और कीमतें गिरती हैं. लेकिन बाद में खरीदार निचले स्तरों पर आते हैं, मांग को बढ़ाते हैं, और कीमतें एक बार फिर से अपने ऊपर की ओर फिर से शुरू हो जाती हैं. यह निरंतर आपूर्ति के दौरान भी सच है आपूर्ति और मांग क्षेत्र संकेतक जब मांग आपूर्ति से अधिक हो सकती है और कीमतें बढ़ सकती हैं. लेकिन बाद में, आपूर्ति फिर से शुरू हो जाती है और कीमतें गिर जाती हैं और अपनी गिरावट जारी रखती हैं.
प्रवृत्ति में यह सुधार, जो एक अपट्रेंड के दौरान रुक-रुक कर आपूर्ति और डाउनट्रेंड के दौरान रुक-रुक कर मांग के कारण होता है, पुलबैक के रूप में जाना जाता है. जो लोग इस प्रवृत्ति से चूक गए हैं, उनके लिए पुलबैक वापस आने और प्रवृत्ति की सवारी करने के अवसर हैं. हालांकि, किसी को यह सुनिश्चित करना होगा कि रुक-रुक कर मांग या आपूर्ति एक पुलबैक है न कि प्रवृत्ति में बदलाव.
कमियों की पहचान करना
एक पुलबैक की पहचान करने से पहले, एक प्रवृत्ति की पहचान की जानी चाहिए. व्यापार की दिशा जाननी है, नहीं तो पुलबैक अर्थहीन हो जाता है. दूसरी सबसे महत्वपूर्ण बात समर्थन और प्रतिरोध क्षेत्रों को जानना है. समर्थन क्षेत्र वह है जहां मांग फिर से बढ़ती है और प्रतिरोध क्षेत्र वह होता है जहां आपूर्ति फिर से शुरू होती है. यह वह क्षेत्र है जहां से पुलबैक आपूर्ति और मांग क्षेत्र संकेतक होता है. मूविंग एवरेज, फिबोनाची रिट्रेसमेंट, ट्रेंड लाइन और अन्य निरंतरता पैटर्न जैसे संकेतकों का उपयोग करके पुलबैक की पहचान की जा आपूर्ति और मांग क्षेत्र संकेतक सकती है. हमारे उदाहरणों में, हम मूविंग एवरेज, फाइबोनैचि रिट्रेसमेंट और ट्रेंडलाइन का उपयोग करके पुलबैक की जांच करेंगे. पुलबैक में प्रवेश लंबे समय तक चलने के लिए समर्थन लेने या कम जाने के लिए प्रतिरोध का सामना करने पर आधारित हो सकता है. यदि आप पुलबैक की पुष्टि करने के लिए इसके साथ कैंडलस्टिक आपूर्ति और मांग क्षेत्र संकेतक पैटर्न का उपयोग करते हैं तो बाधाओं में भी सुधार होता है.
अर्थव्यवस्था मजबूती के रास्ते पर, संभावनायें हो रही बेहतर: आरबीआई बुलेटिन
पत्रिका के सितंबर अंक में अर्थव्यवस्था की स्थिति पर प्रकाशित एक लेख में कहा गया है कि सकल मांग में तेजी आ रही है। वहीं आपूर्ति पक्ष की ओर देखा जाए तो आईआईपी (औद्योगिक उत्पादन सूचकांक) और बुनियादी उद्योग औद्यागिक गतिविधियों में सुधार को प्रतिबिंबित कर रहे हैं। जबकि सेवा क्षेत्र के संकेतक सतत पुनरूद्धार को बता रहे हैं।
आरबीआई के डिप्टी गवर्नर माइकल देबव्रत पात्रा की अगुवाई वाली टीम ने लेख में लिखा है, ‘‘हमारा मानना है कि अगस्त में देश महत्वपूर्ण पड़ाव से गुजरा है तथा सितंबर में यह और सुदृढ़ होगा।’’
इसमें यह भी कहा गया है कि मुद्रास्फीति में वृद्धि की गति धीमी पड़ रही है और यह अनुमान से कहीं ज्यादा अनुकूल है।
मांग कम, फिर महंगाई क्यों?
अर्थशास्त्र का यह सामान्य नियम है कि जब बाजार में मांग होती है, तब महंगाई बढ़ती है। पर मांग न होने के बावजूद यदि कीमतें आसमान छू रही हों, तो उसकी एक बड़ी वजह तंत्र की गड़बड़ी मानी जाती है। और, यदि मंशा कीमतें बढ़ाकर अर्थव्यवस्था को संभालना हो, तो चढ़ती महंगाई मांग कम कर देती है, जिससे अर्थव्यवस्था का नुकसान ही होता है। भारत में फिलहाल ऐसी ही स्थिति है। कोरोना से ध्वस्त हो चुके भारतीय बाजार में मांग काफी कम हो गई है, फिर भी यह बेहिसाब महंगाई से जूझ रहा है। खाने के तेल से लेकर दाल, सब्जियां, रसोई गैस, पेट्रोल-डीजल, दूध जैसी तमाम रोजमर्रा की चीजों के दाम बढ़ गए हैं। इसकी सबसे ज्यादा मार असगंठित क्षेत्र से जुड़े लोगों पर पड़ी है, जिनकी हिस्सेदारी भारतीय श्रम-बल में लगभग 94 फीसदी है।
आंकडे़ बताते हैं कि मई में खुदरा महंगाई दर बढ़कर 6.3 फीसदी हो गई, जबकि अप्रैल में यह 4.23 फीसदी थी। थोक महंगाई दर भी अपनी रिकॉर्ड ऊंचाई (12.94 फीसदी) पर है। चूंकि थोक मूल्य का असर उपभोक्ता मूल्य पर पड़ता है और पिछले मार्च से ही थोक मूल्य में तेजी दिख रही है, इसका मतलब है कि आने वाले महीनों में भी उपभोक्ताओं को शायद ही राहत मिल सके। हालांकि, महंगाई दर गिरने का अर्थ यह नहीं होता कि वस्तुओं के दाम कम हो रहे हैं। इसका मतलब होता है, कीमत बढ़ने की उसकी रफ्तार कम हो रही है।
लेखक के बारे में
प्रोफेसर अरुण कुमार, अर्थशास्त्री और मैल्कम एस अदिशेशिया अध्यक्ष प्रोफेसर, सामाजिक विज्ञान संस्थान, नई आपूर्ति और मांग क्षेत्र संकेतक दिल्ली|
Watch Prof Arun Kumar at IMPRI #WebPolicyTalk
Socio-Economic Impacts of Coronavirus Pandemic
Pandemic and Budget Implementation and Way Forward
विस्तार
मार्च 2022 में सेवा क्षेत्र की गतिविधियों में सुधार देखने को मिला है। मांग की स्थिति मजबूत आपूर्ति और मांग क्षेत्र संकेतक होने के चलते बीते महीने सेवा क्षेत्र का पीएमआई इंडेक्स 53.6 के स्तर पर पहुंच गया। हालांकि, इस बीच इनपुट लागत 11 वर्षों में उच्चतम स्तर पर पहुंच गई है।
आठवें महीने उत्पादन आपूर्ति और मांग क्षेत्र संकेतक में तेजी
एसएंडपी ग्लोबल इंडिया सर्विसेज पीएमआई इंडेक्स फरवरी में 51.8 के स्तर पर था, जो मार्च महीने में बढ़कर 53.6 पर आ गया है। गौरतलब है कि सेवा क्षेत्र की आपूर्ति और मांग क्षेत्र संकेतक गतिविधियों में यह इजाफा पिछले साल दिसंबर 2021 के बाद से विस्तार की सबसे मजबूत दर है। इस संबंध में जारी एक रिपोर्ट में कहा गया है कि लगातार आठवें महीने सेवा क्षेत्र ने उत्पादन में तेजी देखी है।
रूस-यूक्रेन युद्ध का असर
गौरतलब है कि परचेजिंग मैनेजर्स इंडेक्स (पीएमआई) की भाषा में कहें तो इसका 50 से ऊपर रहना संबंधित क्षेत्र की गतिविधियों में विस्तार को प्रदर्शित करता है, जबकि इसका 50 के नीचे पहुंचना संकुचन को आपूर्ति और मांग क्षेत्र संकेतक आपूर्ति और मांग क्षेत्र संकेतक दर्शाता है। एस एंड पी ग्लोबल में एसोसिएट निदेशक पोलीन्ना डी लीमा ने बुधवार को जारी रिपोर्ट में कहा है कि रूस और यूक्रेन के बीच जारी युद्ध से आपूर्ति श्रृंखलाएं बाधित हुई हैं।
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