ओवरनाइट ट्रेडिंग

ओवरनाइट ट्रेडिंग से तात्पर्य उन ट्रेडों से है जिन्हें एक्सचेंज के बंद होने और उसके खुलने से पहले रखा जाता है। ओवरनाइट ट्रेडिंग घंटे एक्सचेंज के प्रकार के आधार पर भिन्न हो सकते हैं जिसमें एक निवेशक लेनदेन करना चाहता है। सभी बाजारों में रात भर व्यापार नहीं होता है। ओवरनाइट ट्रेडिंग, घंटे के बाद के कारोबार का विस्तार है ।

चाबी छीन लेना

  • ओवरनाइट ट्रेडिंग वह ट्रेडिंग है जो सामान्य ट्रेडिंग घंटों के बाहर होती है जो प्राथमिक एक्सचेंज द्वारा प्रदान की गई परिसंपत्ति पर सूचीबद्ध होती है।
  • अमेरिकी शेयरों के लिए, रात भर का कारोबार अगले कारोबारी दिन के खुले होने के करीब-घंटे के कारोबार तक फैला हुआ है।
  • विदेशी मुद्रा बाजार में पूरे सप्ताह खुला रहता है क्योंकि व्यापार दुनिया भर के बैंकों और व्यवसायों द्वारा सुविधाजनक होता है। फॉरेक्स मार्केट में कोई भी ओवरनाइट ट्रेडिंग नहीं है क्योंकि बाजार हमेशा खुला रहता है।
  • बॉन्ड्स ने ट्रेडिंग घंटे बढ़ा दिए हैं, और रात भर का कारोबार स्टॉक में सुबह 4 बजे से 9:30 के बीच हो सकता है (जब एक्सचेंज खुलते हैं), और शाम 4 बजे (जब एक्सचेंज बंद होते हैं), और रात 8 बजे

ओवरनाइट ट्रेडिंग को समझना

ओवरनाइट ट्रेडिंग में एक व्यापक श्रेणी के आदेश शामिल हैं जो मानक बाजार घंटों के बाहर रखे जाते हैं। वित्तीय बाजारों के पार, विभिन्न प्रकार के एक्सचेंजों के माध्यम से व्यापार के लिए विभिन्न रास्ते हैं । मुख्यधारा के बाजारों में स्टॉक और बॉन्ड शामिल हैं। वैकल्पिक बाजारों में विदेशी मुद्रा और क्रिप्टोकरेंसी शामिल हैं। प्रत्येक बाजार में रातोंरात व्यापार के लिए मानक होते हैं जो निवेशकों द्वारा विचार किया जाना चाहिए जब ऑफ-मार्केट घंटे के दौरान ट्रेडों को रखा जाता है। उदाहरण के लिए, कुछ ओवर-द-काउंटर (ओटीसी) उत्पादों को व्यापार के घंटों के बाहर कारोबार नहीं किया जा सकता है। दूसरी तरफ, विदेशी मुद्रा बाजार सप्ताह के दौरान बंद नहीं होते हैं, इसलिए इस अर्थ में रात भर का कारोबार नहीं होता है कि यह सप्ताहांत को छोड़कर सभी घंटों में खुला रहता है।

अमेरिकी शेयर बाजारों के लिए तरलता आम तौर पर तब कम होती है जब प्रमुख स्टॉक एक्सचेंज खुले होते हैं। इसका मतलब है कम प्रतिभागी, बड़ी बोली-पूछ फैलाना, और संभावित रूप से अनिश्चित मूल्य चाल और उच्च अस्थिरता ।

विदेशी मुद्रा और ओवरनाइट ट्रेडिंग

विदेशी मुद्रा (विदेशी मुद्रा) बाजार वित्तीय उद्योग में सबसे बड़ा है और वैश्विक मुद्राओं के व्यापार है। सप्ताह में पांच दिन 24 घंटे विदेशी मुद्रा व्यापार किया जा सकता है। इसलिए, विदेशी मुद्रा बाजार में तकनीकी रूप से रातोंरात व्यापार नहीं होता है क्योंकि यह सप्ताह के दौरान हर समय खुला रहता है। कई दिन व्यापारी इस कारण से विदेशी मुद्रा मुद्राओं का व्यापार करते हैं।

उत्तरी अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, एशिया और यूरोपीय बाजारों के बीच व्यापारिक घंटों का ओवरलैप व्यापारी के लिए किसी भी समय ब्रोकर-डीलर के माध्यम से विदेशी मुद्रा व्यापार को निष्पादित करना संभव बनाता है।

यूएस स्टॉक एक्सचेंज और ओवरनाइट ट्रेडिंग

9:30 और 4:00 ईएसटी के बीच प्राथमिक लिस्टिंग एक्सचेंजों पर अमेरिकी व्यापार में स्टॉक ईएसटी। यह तब होता है जब एक्सचेंज, अन्य संचार के साथ-साथ इलेक्ट्रॉनिक संचार नेटवर्क (ईसीएन) ट्रेडिंग की सुविधा प्रदान करता है। प्राथमिक एक्सचेंजों को खोलने और बंद होने से पहले ट्रेडों को अभी भी ईसीएन पर आयोजित किया जा सकता है।

ईसीएन ट्रेडिंग सुबह 4:00 बजे शुरू होती है और रात 8:00 ईएसटी पर समाप्त होती है। इन्हें विस्तारित घंटे या विस्तारित व्यापार कहा जाता है ।

म्यूचुअल फंड और ओवरनाइट ट्रेडिंग

म्यूचुअल फंड एक आगे शुद्ध परिसंपत्ति मूल्य (एनएवी) मूल्य निर्धारण नियम द्वारा शासित होते हैं, जिन्हें अगले दिन के एनएवी मूल्य प्राप्त करने के लिए बाजार के बंद होने के विदेशी मुद्रा व्यापार में क्या फैला है? बाद सभी आदेशों की आवश्यकता होती है। यह नियम म्युचुअल फंड के लिए प्रत्येक दिन के अंत में एक चिकनी एनएवी अकाउंटिंग को सुनिश्चित करने में मदद करता है। चूंकि एनएवी की गणना प्रति दिन केवल एक बार की जाती है, इसलिए म्यूचुअल फंड निवेशक को समापन मूल्य में एक दिन से अगले दिन तक पर्याप्त अंतर दिखाई दे सकता है। म्यूचुअल फंड निवेशकों के लिए, यह वर्तमान दिन के बाजार के करीब व्यापार करने के लिए अधिक प्रोत्साहन प्रदान कर सकता है।

इस मामले में, ऑर्डर सामान्य बाजार घंटों के बाहर रखा जा सकता है, लेकिन लेनदेन तब तक संसाधित नहीं होते हैं जब तक कि एनएवी मूल्य उपलब्ध नहीं होता है।

बॉन्ड मार्केट ओवरनाइट ट्रेडिंग

बांड भी पूरे दिन एक्सचेंजों पर व्यापार करते हैं। बांड केवल कुछ एक्सचेंजों पर जारी किए जाते हैं जो व्यापार के लिए उनकी उपलब्धता को सीमित करते हैं। निर्माता निर्माताओं के माध्यम से बांड व्यापार। बॉन्ड को NYSE और नैस्डैक में बॉन्ड एक्सचेंज सहित विभिन्न एक्सचेंजों पर सूचीबद्ध किया गया है।

NYSE बॉन्ड पर सुबह 4:00 बजे से रात 8:00 ईएसटी तक कारोबार किया जा सकता है।

एक स्टॉक में ओवरनाइट ट्रेडिंग का वास्तविक-विश्व उदाहरण

निम्नलिखित चार्ट Apple Inc. (AAPL) स्टॉक में रातोंरात ट्रेडिंग सत्र को दर्शाता है। NASDAQ शेयर बाजार, जिस पर AAPL सूचीबद्ध है, उच्च मात्रा पर 4:00 पर बंद कर देता है। घंटे के बाद व्यापार शुरू होता है। वॉल्यूम गिरता है, एक बड़े स्पाइक को छोड़कर 5:01 अपराह्न मूल्य अंतरण मूल्य से थोड़ा कम होता है, आखिरी लेनदेन 7:59 बजे होता है

अगले दिन, पहला व्यापार सुबह 4:00 बजे होता है, पिछली रात की कार्रवाई की तुलना में अधिक कीमत पर। प्री-मार्केट में वॉल्यूम अपेक्षाकृत हल्का है, और फिर सुबह 9:30 बजे NASDAQ एक्सचेंज के खुले में आगे बढ़ता है

कई शेयरों की तुलना में Apple के पास रातोरात अपेक्षाकृत अधिक सक्रिय ट्रेडिंग है। सभी स्टॉक में इस उदाहरण के रूप में रातोंरात ट्रेडिंग सक्रिय नहीं है।

8 विषय प्रोग्राम्स में विदेशी मुद्रा 2023

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क्या विदेशी मुद्रा भंडार का 17% फूंक देगा RBI?

आरबीआई 100 अरब डालर खर्च करके रुपये के दाम को स्थिर करने की कोशिश कर रही है
• इस साल जनवरी से अब तक रुपया सात फीसदी टूट चुका है
• पिछले साल सितंबर में विदेशी मुद्रा का भंडार 642 अरब डालर था . अब ये गिरकर 580 अरब डालर हो गया
• यानी साठ अरब डालर विदेशी मुद्रा का भंडार वैसे ही कम हो गया है.
• उपर से क्रूड आयल के इम्पोर्ट पर अंधाधुंध डालर खर्च हो रहा है.
• एक क्वाटर में ही 47 अरब डालर के क्रूड आयल का निर्यात बढ़ चुका है. भी
• क्रूड आयल का इम्पोर्ट 89 परसेंट बढ़ गया है.
• इसका मतलब है कि चार महीने में डालर को ऊपर लाने के लिए आप 100 अरब खर्च करेंगे और अतिरिक्त पेट्रोल खरीदने पर ही मुद्राबाजार में चार महीने में इसका आधा खर्च हो जाएगा यानी मेहनत गई पानी में
• एक क्वाटर में इतनी बढ़ोतरी हुई है
• इसके अलावा पेट्रोलियम प्रोडक्ट भी दस दशमलव सात प्रतिशत इम्पोर्ट हुए हैं
• यानी घरेलू जरूरतों के लिए आपको पेट्रोल बाहर से मंगाना पड़ा है
• दशा ये है कि कच्चे तेल का दाम आसमान छूने वाला है . एक आशंका जताई गई है कि रूसी कच्चे तेल पर अहर
• प्रतिबंध लगते हैं तो वो 200 डालर प्रति बैरल बढ़ जएगा यानी दाम होगा डबल से ज्यादा
• उस हालत में होने वाला है ये ऊंट के मुंह में जीरा
• 580 डालर विदेशी मुद्रा भंडार है
• 100 अरब डालर चार महीने में खर्च किया जा सकता है
• 47 अरब डालर तो एक तिमाही में ही क्रूड इम्पोर्ट का खर्च बढ़ गया.
• अब अगर दाम दो सौ डालर जाता है तो ये संख्या एक तिमाही में ही 100 अरब डालर पार कर जाएगी
• यानी इम्पोर्ट इतने का बढ़ेगा.
• हम किस ओर बढ़ रहे हैं
• भारत का व्यापार घाटा लगातार बढ़ रहा है यानी आब इम्पोर्ट करने के मुकाबले एक्सपोर्ट ज्यादा कर रहेहैं.
• ये दुगुना हो गया है. 2020 में ये 51000 करोड़ था जो 2021 में एक लाख बारह हजार करोड़ हो गया.
• डालर में ही व्यापारहोता है. जितना ज्यादा व्यपार घाटा उतना डालर का बोझ

• आरबीआई के आंकड़ों के मुताबिक15 जुलाई को समाप्त सप्ताह में विदेशी मुद्रा भंडार 7.541 अरब डॉलर घटकर 572.712 अरब डॉलर रह गया। इससे पहले के सप्ताह में विदेशी मुद्रा भंडार 8.062 अरब डॉलर घटकर 580.252 अरब डॉलर रह गया था। स्वर्ण भंडार का मूल्य भी 83 करोड़ डॉलर घटकर 38.356 अरब डॉलर रह गया।

• कर्ज चुकाने के लिए भी डालर की जरूरत होती है. जितना विदेशी कर्ज होगा उतने ज्यादा डालर नियमित खर्च होंगे

गिरता रुपया, उठता डॉलर

भारत की इकॉनमी के लिए डॉलर का होना ज़रूरी है, क्यूंकि आर्थिक सेहत इस बात पर निर्भर करती है की विदेशी मुद्रा भंडार कितना भरा हुआ है। और विदेशी मुद्रा भंडार इस बात पर निर्भर करता है की आप कितना निर्यात कर रहे हैं।

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एक तरफ कहा जा रहा है की आर्थिक खुशहाली है.. गाँव गाँव में लोगों के अकाउंट में पैसे आ गए है, टॉयलेट बनवाने के लिए दूर दराज़ इलाकों में भी गरीबों को १२ हज़ार रुपये मिल गए हैं और प्रधानमंत्री की नीतियों की बदौलत घर बनवाने के लिए १ लाख.. लेकिन दूसरी तरफ बेशर्म रुपया है की गिरता ही जा रहा है.. बेशर्मी से गिरते हुए रुपये ने डॉलर के मुकाबले एक ऐतिहासिक रिकॉर्ड बनाया है। इतिहास में पहली बार १ डॉलर की कीमत अब ७४ रुपये को भी पार कर गयी है। इसे ऐसे समझिये.. आज के दिन आप अमेरिका या दुनिया के किसी भी देश में जायेंगे तो आपको डॉलर खरीदना होगा.. ७४ रुपये देने पर आपको १ डॉलर मिलेगा और वहां अगर आप १ डॉलर का भी कोई सामान लेंगे तो जेब से ७४ रुपये गए।

किसी भी देश की अर्थव्यवस्था विदेशी मुद्रा व्यापार में क्या फैला है? की सेहत वहां की मुद्रा की मजबूती से आंकी जाती है। इसलिए भारतीय राजनीति में रुपए के गिरने को सरकार की प्रतिष्ठा से जोड़ा जाता रहा है। आज रुपये के गिरने जो भी अन्तराष्ट्रीय कारण हैं वो तब भी रहे होंगे जब अगस्त 2013 में रुपया डॉलर की तुलना में हिचकोले खा रहा था और उस समय की नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज ने कहा था, “रुपए ने अपनी क़ीमत खोई और प्रधानमंत्री ने अपनी प्रतिष्ठा।”

अभी की मज़बूत सरकार के प्रधानमंत्री मोदी रुपये के कमज़ोर होने को रोक नहीं पा रहे हालाँकि जुलाई 2013 में रुपए में गिरावट पर तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर उन्हों ने तंज़ किया था कि गिरता रुपया मनमोहन सिंह की उम्र से होड़ कर रहा है। लेकिन आज तो रूपया प्रधानमंत्री की उम्र को पीछे छोड़ गया। पीएम ६८ के और रुपया ७४ का।

खैर ये तो है राजनीती.. इसे जाने दीजिये। रुपये के कमज़ोर होने के पीछे कारण क्या हैं और डॉलर के मुकाबले रुपये का कमज़ोर होना हमारे लिए क्यूँ चिंता की बात है, डॉलर इतना अहम् क्यूँ है इसे समझिये।

डॉलर के मुकाबले रुपये का कमज़ोर होना क्यूँ अहम् है

आज की तारीख़ में एक डॉलर की क़ीमत 74 रुपए से ऊपर चली गई है। इसका मतलब ये हुआ कि अगर आप एक आईफ़ोन खरीदना चाहते हैं जिसकी कीमत एक हज़ार डॉलर है और एक डॉलर की क़ीमत 74 रुपए हो गई है तो आपको 74 हज़ार रुपए देने होंगे।

डॉलर के मुकाबले रुपया कमज़ोर होने के कई मतलब हैं। पहला तो यह कि भारत निर्यात कम और आयात ज़्यादा कर रहा है। इसे व्यापार घाटा कहा जाता है।

आरबीआई के अनुसार जून 2018 में ख़त्म हुई तिमाही में व्यापार घाटा बढ़कर 45.7 अरब डॉलर हो गया जो पिछले साल 41.9 अरब डॉलर था। दूसरा यह कि लोगों को देश के सामान और सेवा पसंद नहीं आ रहे हैं इसलिए विदेशी सामान और सेवा ख़रीद रहे हैं। तीसरा यह कि विदेशी निवेशक अपना पैसा निकाल रहे हैं।

भारत की इकॉनमी के लिए डॉलर का होना ज़रूरी है, क्यूंकि आर्थिक सेहत इस बात पर निर्भर करती है की विदेशी मुद्रा भंडार कितना भरा हुआ है। और विदेशी मुद्रा भंडार इस बात पर निर्भर करता है की आप कितना निर्यात कर रहे हैं। अगर आप बेचेंगे ज्यादा तो भंडार ज्यादा भरा होगा। तो भारत दुनिया के बाज़ार में क्या क्या बेचता है इस पर निर्भर होगा की उसके पास कितने डॉलर हैं। विदेशी मुद्रा भंडार आप्रवासियों के डॉलर से भी भरता है। भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 400.52 अरब डॉलर पहुंच गया है। विशेषज्ञों का कहना है कि 400 का आंकड़ा एक मनोवैज्ञानिक आंकड़ा है और इससे नीचे गया तो भारत के लिए चिंता की बात होगी।

अब विदेशी मुद्रा भंडार का ४०० पहुँच जाना ये दिखता है कि हम तेल के आयत के साथ साथ ज़्यादातर चीज़ें खरीद रहे हैं इसलिए हमारे डॉलर कम हैं।

चूँकि दिनिया भर के बाज़ार में ज़्यादातर कारोबार डॉलर में होता है और अमेरिकी आर्थिक संस्थानों का जाल ऐसा फैला है कि प्रभुत्व डॉलर का ही है। इसलिए जब भारत ईरान या सऊदी अरब से तेल खरीद ता है तो डॉलर देने होते हैं।भारत रूस से S400 मिसाइल खरीदेगा तो भुगतान डॉलर में होगा क्यूंकि रूस की मुद्रा रूबल इतनी मज़बूत नहीं की वैश्विक कारोबार में इस्तेमाल हो। भारत ने फ़्रांस से रफ़ाल लड़ाकू विमान ख़रीदा तो भुगतान डॉलर में करना पड़ा। यानी भारत और ज़्यादातर देशों को अंतर्राष्ट्रीय कारोबार के लिए डॉलर की ज़रुरत है और इसलिए डॉलर के मुकाबले रुपये का कमज़ोर होना बुरी खबर है।

दो देश डॉलर के बजे अपनी मुद्रा में भी व्यापार कर सकते हैं लेकिन ऐसा दो देशों में आपसी सहमति से किया जा सकता है। ईरान के साथ भारत रुपए देकर तेल का आयात करता रहा है। रूस ने भी भारत से रुपए और रूबल में व्यापार की हामी भर दी है। इसका मतलब यह हुआ कि रूस और ईरान को वैसे सामान की ज़रूरत होनी चाहिए जो भारत में मिलते हों।

चीन भी कई देशों के साथ अपनी ही मुद्र में व्यापार करता है। लेकिन बड़ी तस्वीर ये है कि डॉलर हावी है।

भारत अपनी ज़रूरत का 80 फ़ीसदी तेल आयात करता है जिसके लिए उसे डॉलर की ज़रूरत है ख़ास कर के तब जब ईरान पर लगे अमेरिकी प्रतिबन्ध ईरान से तेल खरीदने को धीरे धीरे सीमित करते जायेंगे। कहा जा रहा है कि रुपए की सेहत विदेशी मुद्रा व्यापार में क्या फैला है? ठीक नहीं हुई और कच्चे तेल की क़ीमत अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में कम नहीं हुई तो 2018-2019 में तेल का आयात बिल 108 अरब डॉलर तक पहुंच जाएगा। इससे विदेशी मुद्रा भंडार भी प्रभावित होता है।

इसे ऐसे सोचिए कि अगर अगले चार सालों तक भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 400 अरब डॉलर पर ही स्थिर रहा और इसी में से हर साल तेल के लिए 108 अरब डॉलर खर्च करता रहा तो कुछ भी नहीं बचेगा।

किसी भी देश की अर्थव्यवस्था की सेहत केवल घरेलू कारणों से प्रभावित नहीं होती है। अगर भारतीय मुद्रा रुपया कमज़ोर हो रहा है तो इसका कारण वैश्विक भी है।

एक सबसे बड़ा कारण है अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल की बढ़ती क़ीमतें, और ऐसे में ईरान और वेनेज़ुएला पर अमेरिकी नियंत्रण।

लेकिन प्रधान मंत्री मोदी ने 2014 के आम चुनाव में कमज़ोर रुपये को चुनावी मुद्दा बनाया था। 2013 में जब रुपए में गिरावट आई थी तो मोदी ने कहा था कि कांग्रेस ने भारतीय मुद्रा को आईसीयू में पहुंचा दिया है। अब जब रुपया दोबारा ICU में है तो लाज़मी है कि आम चुनाव में ये भी मुद्दा बनेगा।

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