भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में लगातार चौथे हफ्ते हुई बढ़त, 561.16 अरब डॉलर पर पहुंचा फोरेक्स रिजर्व

आरबीआई के आंकड़ों के मुताबिक 2 दिसंबर को खत्म हुए हफ्ते में भारत का गोल्ड रिजर्व 1.086 अरब डॉलर से बढ़कर 41.025 अरब डॉलर पर पहुंच गया है जबकि इसी अवधि में Special Drawing Rights (SDRs) 16.4 करोड़ डॉलर की गिरावट के साथ 18.04 अरब डॉलर पर रहा है

डॉलर में बताए जाने वाले फॉरेन करेंसी एसेट में गैर डॉलर करेंसियों जैसे यूरो, पाउंड और येन में भी होने वाले उतार-चढ़ाव को भी शामिल किया जाता है

रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया द्वारा शुक्रवार को जारी किए गए आंकड़ों के मुताबिक 2 दिसंबर 2022 को खत्म हुए हफ्ते में भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 1.02 अरब डॉलर की बढ़ोतरी के साथ 561.162 अरब डॉलर के स्तर पर पहुंच गया है। भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में लगातार चौथे हफ्ते बढ़त देखने को मिली है। इसके पिछले रिपोर्टिंग हफ्ते भारत के कुल विदेशी मुद्रा भंडार में 2.9 अरब डॉलर की बढ़ोतरी देखने को मिली थी और यह 550.14 अरब डॉलर पर पहुंच गया था। वहीं 11 नंवबर 2022 को खत्म हुए हफ्ते में भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में 14.72 अरब डॉलर की बढ़ोतरी देखने को मिली थी। यह अब तक की दूसरी सबसे तेज साप्ताहिक बढ़ोतरी थी।

अक्टूबर 2021 में ऑलटाइम हाई पर था भारत का विदेशी मुद्रा भंडार

गौरतलब है कि अक्टूबर 2021 में भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 645 अरब डॉलर के अपने ऑल टाइम हाई के पास पहुंच गया था। लेकिन उसके बाद ग्लोबल स्थितियों में गड़बड़ी आने के चलते आरबीआई को भारतीय रुपये को सपोर्ट देने के लिए ओपन मार्केट में डॉलर डालने पड़े थे जिसकी वजह से भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट आई।

विदेशी बाजार की पहचान कैसे की जाती है?

इसे सुनेंरोकेंविदेशी विनिमय बाजार एक विकेन्द्रीकृत वैश्विक बाजार है जहां सभी दुनिया की मुद्राओं का कारोबार होता है एक दूसरे, और व्यापारी मुद्राओं के मूल्य परिवर्तन से लाभ या हानि बनाते हैं। विदेशी मुद्रा बाजार को विदेशी मुद्रा बाजार, FX या मुद्रा ट्रेडिंग मार्केट के रूप में भी जाना जाता है।

विदेशी विनियम से आप क्या समझते हैं?

इसे सुनेंरोकेंविदेशी विनिमय को विस्तृत अर्थों में स्पष्ट करते हुए एन्साइक्लोपीडिया ब्रिटानिका में लिखा है कि “विदेशी विनिमय वह प्रणाली है जिसके द्वारा व्यापारिक राष्ट्र पारस्परिक ऋणों का भुगतान करते हैं।” इस प्रकार ऐसे साधन जिनका उपयोग अंतर्राष्ट्रीय भुगतान में किया जाता है, विदेशी विनिमय कहलाता है।

विदेशी मुद्राओं क्या विदेशी मुद्रा बाजार है है?

इसे सुनेंरोकेंक्या है विदेशी मुद्रा भंडार? विदेशी मुद्रा भंडार देश के केंद्रीय बैंकों द्वारा रखी गई धनराशि या अन्य परिसंपत्तियां होती हैं, जिनका उपयोग जरूरत पड़ने पर देनदारियों का भुगतान करने में किया जाता है। पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार एक स्वस्थ अर्थव्यवस्था के लिए काफी महत्वपूर्ण होता है।

क्या आपने पहले विदेशी मुद्रा व्यापार किया है?

फिर भी सम्पूर्ण कारोबार की दृष्टि से यह सबसे बड़ा बाजार है। विदेशी मुद्राओं में प्रतिदिन लगभग ४ ट्रिलियन अमेरिकी डालर के तुल्य कामकाज होता है। अन्य बाजारों की तुलना में यह सबसे अधिक स्थायित्व वाला बाजार है।…चल (FLOATING) विदेशी मुद्रा दरें

रैंक 3
मुद्रा येन
ISO 4217 कोड (प्रतीक) JPY (¥)
% दैनिक अंश (अप्रैल 2016) 19.0%

विदेशी मुद्रा बाजार में भागीदार कौन है समझाइए?

इसे सुनेंरोकेंविदेशी मुद्रा बाजार में प्रमुख भागीदार बड़े वाणिज्यिक बैंक हैं जो बाजार का मूल प्रदान करते हैं; दुनिया भर में 100 से 200 बैंक सक्रिय रूप से विदेशी मुद्रा में “बाजार बनाते हैं”; ये बैंक अपने खुदरा ग्राहकों, बैंक ग्राहकों की सेवा करते हैं, विदेशी वाणिज्य का संचालन करते हैं या वित्तीय परिसंपत्तियों में अंतर्राष्ट्रीय …

विनिमय दर से आप क्या समझते हैं समझाइए?

इसे सुनेंरोकेंविनिमय दर (exchange rate) दो अलग मुद्राओं की सापेक्ष कीमत होती है, अर्थात एक मुद्रा के पदों में दूसरी मुद्रा के मूल्य की माप है। किन्हीं दो मुद्राओं के मध्य विनिमय की दर उनकी पारस्परिक माँग (demand) और आपूर्ति (supply) होती है।

अंतरराष्ट्रीय तरलता की समस्या का मूल कारण क्या है?

इसे सुनेंरोकेंयह सच हो सकता है कि अंतरराष्ट्रीय तरलता की समस्या का एक हिस्सा (जो अंतरराष्ट्रीय भुगतान का साधन प्रदान करता है) विश्वास और समायोजन का हो सकता है, लेकिन मुख्य रूप से यह समस्या अंतरराष्ट्रीय व्यापार की बढ़ती आवश्यकताओं का सामना करने के लिए भंडार की अपर्याप्तता है।

भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में निम्नलिखित में से किसका सर्वाधिक हिस्सा है?

इसे सुनेंरोकेंभारत का विदेशी मुद्रा भण्डार पहले स्थान पर चीन और दूसरे स्थान पर जापान है। भारत का विदेशी मुद्रा भंडार २१ जून २०२० को समाप्त सप्ताह में 4.215 अरब डॉलर बढ़कर अब तक के सबसे उच्चतम स्तर 426.42 अरब डॉलर पर पहुंच गया। इससे पहले का रिकार्ड 13 अप्रैल 2018 को बना था।

एस डी आर क्या है?

इसे सुनेंरोकेंSpecial Drawing Rights: स्पेशल ड्राइंग राइट्स (एसडीआर) यानी विशेष आहरण अधिकार 1969 में अंतरराष्ट्रीय मुुद्रा कोष (आईएमएफ) द्वारा सृजित मौद्रिक रिजर्व करेंसी के एक अंतरराष्ट्रीय प्रकार को संदर्भित करता है जो सदस्य देशों के वर्तमान मनी रिजर्व के एक पूरक के रूप में काम करता है।

विदेशी मुद्रा बाजार है

अतंरबैंक विदेशी मुद्रा बाजार में रूपया 16 पैसे मजबूत

अतंरबैंक विदेशी मुद्रा बाजार में रूपया 16 पैसे मजबूत

मुंबई। रूपया कल शुक्रवार को अंतरबैंक विदेशी मुद्रा मार्केट में लगातार तीसरे दिन भी बढ़ोतरी जारी रहे इस वृद्धि से रूपया में 16 पैसे की वृद्धि के साथ चार सप्ताह के उच्चतम स्तर पर डॉलर के मुकाबले 63.67 पर पहुंच गया। ऐसा निर्यातकों द्वारा डॉलर की बिक्री बढ़ाने के ध्यान में रखा गया है।

विदेशी मुद्रा कारोबारियों ने बोला है कि इसके अलावा घरेलू इक्विटी मार्केट में मजबूत शुरूआत और यूरो एवं अन्य विदेशी मुद्राओं के मुकाबले डॉलर में कमजोरीकी वजह से रूपए को सहारा मिला। रूपया कल 39 पैसे की मजबूती विदेशी मुद्रा बाजार है के साथ 63.73 के लेवल पर बंद हो गया।

क्या मानना है फॉरेक्स एक्सपर्ट
फॉरेक्स एक्सपर्ट का मानना है कि मानसून की गति के आधार पर ही रुपए की गति निर्भर करेगी। इसके अलावा, कच्चे तेल के दामों में कमी भी रुपये पर दबाव बना सकती है। अमेरिका में ब्याज दरों में बढ़ोत्तरी भी रुपये के लिए दबाव बनाने का काम करेगा, ऐसे में आगे डॉलर के मुकाबले रुपया 64.5-65 के भीतर रह सकता है।

विदेशी मुद्रा का प्रबंधन जरूरी

भारत का कुल विदेशी कर्ज 620 अरब डॉलर है और इसमें से 267 अरब डॉलर आगामी नौ माह में चुकाना है. कम अवधि के कर्ज का यह अनुपात 44 प्रतिशत है.

विदेशी मुद्रा का प्रबंधन जरूरी

बीते आठ महीनों में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों ने शेयर और बॉन्ड की बिकवाली कर लगभग 40 अरब डॉलर भारत से निकाल लिया है. इसी अवधि में भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में 52 अरब डॉलर की कमी हुई है. अमेरिकी डॉलर की तुलना में भारतीय रुपये के मूल्य में गिरावट जारी है. निर्यात की अपेक्षा आयात में तेजी से वृद्धि हो रही है. इसका मतलब है कि हमें भुगतान के लिए निर्यात से प्राप्त डॉलर से कहीं अधिक डॉलर की जरूरत है.

सामान्य परिस्थितियों में भी भारत के पास डॉलर की संभालने लायक कमी रहती आयी है, जो अमूमन सकल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) का एक से दो प्रतिशत होती है. आम तौर पर यह 50 अरब डॉलर से कम रहती है और आयात से अधिक निर्यात होने पर इसमें बढ़ोतरी होती है. इस कमी की भरपाई शेयर बाजार में विदेशी निवेश, विदेशी कर्ज, निजी साझेदारी या बॉन्ड खरीद से की जाती है.

इस तरह से आनेवाली पूंजी हमेशा ही चालू खाता घाटे से अधिक रही है, जिससे भारत का ‘भुगतान संतुलन’ खाता अधिशेष में रहता है. विदेशी कर्ज और उधार से ही ऐसा अधिशेष रखना जरूरी नहीं कि अच्छी बात ही हो, खासकर तब दुनियाभर में कर्ज का दबाव है. लेकिन सामान्य दिनों में विदेशियों का आराम से भारतीय अर्थव्यवस्था को कर्ज देना उनके भरोसे का संकेत है.

यह सब तेजी से बदलने को है और भारत के विदेशी मुद्रा कोष के संरक्षक रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने चेतावनी का शुरुआती संकेत दे दिया है. अगर भाग्य ने साथ दिया और मान लिया जाये कि इस वित्त वर्ष में 80 अरब डॉलर की बड़ी रकम भी भारत में आये, तब भी भुगतान संतुलन खाते में 30-40 अरब डॉलर की कमी रहेगी. हमारा चालू खाता घाटा जीडीपी का 3.2 प्रतिशत तक होकर 100 अरब डॉलर के पार जा सकता है.

विदेशी मुद्रा के इस अतिरिक्त दबाव को झेलने के लिए हमारा भंडार पूरा नहीं होगा. इसीलिए रिजर्व बैंक ने अप्रवासी भारतीयों से डॉलर में जमा को आकर्षित करने के लिए कुछ छूट दी है. इसने विदेशी कर्ज लेना भी आसान बनाया है तथा भारत सरकार के बॉन्ड के विदेशी स्वामित्व की सीमा भी बढ़ा दी है. इन उपायों का उद्देश्य अधिक डॉलर आकर्षित करना है.

बढ़ते व्यापार और चालू खाता घाटा तथा इस साल चुकाये जाने वाले विदेशी कर्ज की मात्रा बढ़ने जैसे चिंताजनक संकेतों को देखते हुए ऐसे उपायों की जरूरत थी. भारत का कुल विदेशी कर्ज 620 अरब डॉलर है और इसमें से 267 अरब डॉलर आगामी नौ माह में चुकाना है. कम अवधि के कर्ज का यह अनुपात 44 प्रतिशत है और खतरनाक रूप से अधिक है.

कर्ज लेने वाली निजी कंपनियों को या तो नया कर्ज लेना होगा या फिर भारत के मुद्रा भंडार से धन निकालना होगा. दूसरा विकल्प वांछित नहीं है क्योंकि मुद्रा भंडार घट रहा है और उसे बढ़ाने की जरूरत है. पहला विकल्प आसान नहीं होगा क्योंकि डॉलर विकासशील देशों में जाने के बजाय अमेरिका की ओर जा रहा है. किसी भी स्थिति में नये कर्ज पर अधिक ब्याज देना होगा, जिससे भविष्य में बोझ बढ़ेगा.

रिजर्व बैंक की पहलें केंद्र सरकार द्वारा डॉलर बचाने के उपायों के साथ की गयी हैं. सोना पर आयात शुल्क बढ़ाकर 12.5 प्रतिशत कर दिया गया है. बहुत अधिक मांग के कारण भारत दुनिया में सोने का सबसे बड़ा आयातक है. शुल्क बढ़ाने से मांग कुछ कम भले हो, पर इससे तस्करी भी बढ़ सकती है. गैर-जरूरी आयातों पर कुछ रोक लगने की संभावना है ताकि डॉलर का जाना रुक सके.

विदेशी मुद्रा और विनिमय दर का प्रबंधन रिजर्व बैंक की जिम्मेदारी है. अभी शेयर बाजार पर निवेशकों के निकलने के अलावा तेल की बढ़ी कीमतों के कारण भी दबाव है. इससे भारत का कुल आयात खर्च (सालाना 150 अरब डॉलर से अधिक) प्रभावित होता है तथा अनुदान खर्च भी बढ़ता है क्योंकि तेल व खाद के दाम का पूरा भार उपभोक्ताओं पर नहीं डाला जाता है.

इस अतिरिक्त वित्तीय बोझ का सामना करने के लिए सरकार ने इस्पात और तेल शोधक कंपनियों के मुनाफे पर निर्यात कर लगाया है. इस कर से एक लाख करोड़ रुपये से अधिक के राजस्व संग्रहण की अपेक्षा है. यह रुपये के मूल्य में गिरावट के असर से निपटने का एक अप्रत्यक्ष तरीका है.

लेकिन निर्यात कर एक असाधारण और अपवादस्वरूप उपाय है तथा इसे तभी सही ठहराया जा सकता है, जब तेल की कीमतें बहुत अधिक बढ़ी हैं. भारत सरकार पर राज्यों को मुआवजा देने का वित्तीय भार भी है, जो वस्तु एवं सेवा कर के संग्रहण में कमी के कारण देना होता है. राज्य सरकारों पर अपने कर्ज का भी बड़ा बोझ है और 10 राज्यों की स्थिति तो खतरनाक स्तर पर पहुंच चुकी है, जो उनके दिवालिया होने का कारण भी बन सकता है.

बाहरी मोर्चे पर रुपये पर दबाव केवल तेल की कीमतें बढ़ने से आयात खर्च में वृद्धि के कारण नहीं है. तेल और सोने के अलावा अन्य कई उत्पादों, जैसे- इलेक्ट्रॉनिक्स, केमिकल, कोयला आदि के आयात में अप्रैल से जून के बीच 32 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है. जून में सोने का आयात पिछले साल जून से 170 प्रतिशत अधिक रहा था. यह देखना होगा कि अधिक आयात शुल्क से सोना आयात कम होता है या नहीं.

भारतीय संप्रभु गोल्ड बॉन्ड खरीद सकते हैं, जो सोने का डिमैट विकल्प है और कीमती विदेशी मुद्रा भी बाहर नहीं जाती. सरकार को आक्रामक होकर बॉन्ड बेचना चाहिए. आगामी महीनों में घरेलू और बाहरी मोर्चों पर दोहरे घाटे के प्रबंधन के लिए ठोस उपाय करने होंगे. उच्च वित्तीय घाटा उच्च ब्याज दरों का कारण बनता है और उच्च व्यापार घाटा रुपये को कमजोर करता है.

अगर दोनों घाटों को कम करने के लिए इन दो नीतिगत औजारों (ब्याज दर और विनिमय दर) पर ठीक से काम किया जाता है, तो हम संकट से बच सकते हैं. रुपये को कमजोर करना एक स्वाभाविक ढाल है, पर निर्यात बढ़ने तक अल्प अवधि में व्यापार घाटे को बढ़ा सकता है.

इसी तरह वित्तीय घाटा कम करने के लिए खर्च पर नियंत्रण और अधिक कर राजस्व संग्रहण जरूरी है. अधिक राजस्व के लिए आर्थिक वृद्धि और रोजगार में बढ़त की आवश्यकता है. दुनिया में मंदी की हवाओं के कारण अगर तेल के दाम गिरते हैं, तो यह भारत के लिए मिला-जुला वरदान होगा क्योंकि वैश्विक मंदी भारतीय निर्यात के लिए ठीक नहीं है, जो व्यापार घाटा कम करने के लिए जरूरी है.

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आखिर क्यों लुढ़क रहा है हमारा रुपया, ये है वजह?

जब विदेशी मुद्रा बाजार में डॉलर की सप्लाई अधिक हो जाती है तो डॉलर के दाम गिरते हैं और तदनुसार रुपए का दाम ऊंचा होता है। इसके विपरीत जब विदेशी मुद्रा बाजार में डॉलर की डिमांड बढ़ जाती है तो डॉलर का दाम बढ़ जाता है और तदनुसार रुपए का दाम गिरता है जैसा कि वर्तमान में हो रहा है।

why indian rupee falling down here are the reason | आखिर क्यों लुढ़क रहा है हमारा रुपया, ये है वजह?

आखिर क्यों लुढ़क रहा है हमारा रुपया, ये है वजह?

रुपए का मूल्य गिर रहा है। कई वर्षो से रुपए का मूल्य लगभग 64 रुपए प्रति डॉलर था जो इस समय घटकर 70 रुपए प्रति डॉलर के ऊपर हो गया है। रुपए का यह मूल्य हमारे विदेशी मुद्रा बाजार में निर्धारित होता है। यह बाजार एक मंडी सरीखा है। मंडी में आलू का दाम इस बात पर निर्भर करता है कि विक्रे ता कितने हैं, और खरीददार कितने हैं। इसी प्रकार रुपए का दाम विदेशी मुद्रा बाजार में इस बात पर निर्भर करता है कि डॉलर की सप्लाई कितनी है और डिमांड कितनी है।

जब विदेशी मुद्रा बाजार में डॉलर की सप्लाई अधिक हो जाती है तो डॉलर के दाम गिरते हैं और तदनुसार रुपए का दाम ऊंचा होता है। इसके विपरीत जब विदेशी मुद्रा बाजार में डॉलर की डिमांड बढ़ जाती है तो डॉलर का दाम बढ़ जाता है और तदनुसार रुपए का दाम गिरता है विदेशी मुद्रा बाजार है जैसा कि वर्तमान में हो रहा है।

रुपए के मूल्य में गिरावट के कारण जानने के लिए हमें देखना होगा कि डॉलर की सप्लाई कम क्यों है और डिमांड ज्यादा क्यों है? पहले सप्लाई को लें। डॉलर की सप्लाई का प्रमुख स्रोत हमारे निर्यात हैं। हमारे उद्यमी जब इलेक्ट्रॉनिक उपकरण अथवा गलीचे का निर्यात करते हैं तो विदेशी खरीददार उसका पेमेंट डॉलर में करते हैं। हमारे निर्यातक इन डॉलर को हमारे विदेशी मुद्रा बाजार में बेचते हैं और इनके बदले रुपए खरीदते हैं। डॉलर की सप्लाई कम होने का प्रमुख कारण यह है कि हमारे निर्यात कम हो रहे हैं। इसलिए निर्यातकों द्वारा कम मात्ना में डॉलर अर्जित किए जा रहे हैं।

डॉलर की सप्लाई कम होने का दूसरा कारण विदेशी निवेश में गिरावट है। विदेशी निवेशक डॉलर को भारतीय मुद्रा में बेचकर रुपए में बदलते हैं और तब उस रुपए का भारत में निवेश करते हैं। जनवरी से अप्रैल 2017 में विदेशी निवेशकों ने 1400 करोड़ डॉलर का भारत में निवेश किया था। जनवरी से अप्रैल 2018 में यह रकम गिरकर मात्न 30 करोड़ रह गई है। इसलिए विदेशी निवेश से डॉलर की सप्लाई कम आ रही है।

डॉलर की डिमांड ज्यादा होने का एक और कारण यह है कि भारत से अमीर लोग पलायन कर रहे हैं। वे भारत की नागरिकता छोड़कर अपनी पूंजी को भारत से दूसरे देशों में ले जा रहे हैं और वहां की नागरिकता स्वीकार कर रहे हैं। इस कार्य के लिए भी वे रु पयों को विदेशी मुद्रा बाजार में जमा करके डॉलर खरीद रहे हैं।

दूसरी तरफ हमारे विदेशी मुद्रा बाजार में हमारी डॉलर की डिमांड बढ़ रही है। इसका एक कारण कच्चे ईंधन तेल के दाम में वृद्धि है। अमेरिका में अर्थव्यवस्था तीव्र गति से बढ़ रही है। इससे अमेरिका में तेल की डिमांड बढ़ रही है और विश्व बाजार में कच्चे तेल के दाम 60 रुपए प्रति बैरल से बढ़कर वर्तमान में 80 रुपए प्रति बैरल हो गया है।

इसी क्रम में हमारे दूसरे आयातों में भी वृद्धि हो रही है। चीन से खिलौने, फुटबाल आदि का आयात भारी मात्ना में हो रहा है। इन आयात के लिए हमारे आयातक विदेशी मुद्रा बाजार में रुपए जमा करते हैं और डॉलर खरीदते हैं। आयातकों द्वारा रुपए ज्यादा मात्ना में हमारे विदेशी मुद्रा बाजार में जमा किए जा रहे हैं और तदनुसार डॉलर की डिमांड बढ़ रही है।

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