कैसे सरकार के मजबूत हाथ ने आईओसी के पुथुवाईपे एलपीजी परियोजना में मदद की
जबकि अडानी समूह की विझिंजम बंदरगाह परियोजना विरोध में घिरी हुई है, कोच्चि के पुथुवाइप में इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन (आईओसी) का एलपीजी आयात टर्मिनल परियोजना, जिसे इसी तरह के आंदोलन का सामना करना पड़ा, जिसने इसके काम को बार-बार चौपट कर दिया, लगभग ढाई साल से बिना किसी हिचकिचाहट के आगे बढ़ रहा है।
कारण: एलडीएफ सरकार द्वारा दिसंबर 2019 में सीआरपीसी की धारा 144 लागू करना, द्वीप गांव में सार्वजनिक समारोहों पर रोक लगाना। "धारा 144 IOC पुथुवाइप साइट पर 16 दिसंबर, 2019 को एक वर्ष के लिए लगाया गया था। हालाँकि, सरकार ने अभी तक क्लैंपडाउन हटाने की घोषणा नहीं की है। पुलिस बंदोबस्त साइट पर जारी है, जिससे हमें काम के सुचारू कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने में मदद मिलती है, "नाम न छापने की शर्त पर एक आईओसी अधिकारी ने कहा।
पुथुवाइपे: धारा 144 ने काम फिर से शुरू करने में मदद की
715 करोड़ रुपये के एलपीजी आयात टर्मिनल, जिसकी कल्पना 2000 के दशक के अंत में की गई थी, में दो घटक हैं: कोचीन पोर्ट पर एलपीजी उतारने के लिए मल्टी-यूजर लिक्विड टर्मिनल (एमयूएलटी) जेट्टी और पुथुवाइप में एलपीजी स्टोरेज टर्मिनल। जबकि मल्टी के लिए प्रारंभिक परियोजना लागत 225 करोड़ रुपये तय की गई थी, आयात टर्मिनल की लागत 490 करोड़ रुपये थी।
MULT पर काम, जिसमें IOC द्वारा रसोई गैस आयात सुविधा शामिल है, इस मार्च में पुथुवाइप द्वीप पर पूरा किया गया। अधिकारियों ने कहा कि एलपीजी टर्मिनल पर काम, जो सड़क के माध्यम से मंगलुरु से एलपीजी परिवहन की आवश्यकता को समाप्त कर देगा, अगले साल की पहली छमाही में पूरा होने की उम्मीद है, पुलिस सुरक्षा के लिए धन्यवाद।
आईओसी की एलपीजी टर्मिनल परियोजना ने जनता का ध्यान तब आकर्षित किया जब 2013 में केरल राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने इसे हरी झंडी दे दी, जब यूडीएफ सत्ता में थी। तब से, सीपीएम और कांग्रेस सहित निवासियों, पर्यावरण कार्यकर्ताओं और राजनीतिक दलों के विरोध के कारण परियोजना को अलग-अलग समय में व्यवधान का सामना करना पड़ा।
हलचल तब भी जारी रही जब 2016 में एलडीएफ सत्ता में आई। मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन द्वारा बुलाई गई हितधारकों की बैठक विफल रही और फरवरी 2017 में, आईओसी ने परियोजना को रोक दिया। निषेधाज्ञा लागू होने के बाद ही काम फिर से शुरू हुआ।
"पुथुवाइप विरोध बहुत स्थानीय था। इससे सरकार को उन्हें रोकने में मदद मिली," कोच्चि स्थित थिंकटैंक सेंटर फॉर पब्लिक पॉलिसी रिसर्च (सीपीपीआर) के अध्यक्ष डी धनुराज ने कहा। "विझिंजम में, विरोध अधिक व्यापक हैं। एलडीएफ सरकार लोहे के हाथ का उपयोग करके स्थानीय निवासियों के क्रोध को आमंत्रित नहीं करना चाहती है, इस तथ्य को देखते हुए कि 2021 के विधानसभा चुनावों में तिरुवनंतपुरम जिले में उसका पलड़ा भारी रहा है, "उन्होंने कहा।
आईओए के मसौदा अपनाने से जुड़ी याचिका पर सात दिसंबर को सुनवाई करेगा उच्चतम न्यायालय
पीठ ने कहा, ‘‘आपकी आपत्तियों पर सुनवाई सात दिसंबर को होगी। आप उसी दिन इसके बारे में बतायें।’’
उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि वह भारतीय ओलंपिक संघ (आईओए) के संविधान के मसौदे से संबंधित आपत्तियों और मुद्दों पर सुनवाई आईओसी एक दिन के आदेश से अलग कैसे है? सात दिसंबर को करेगा। आईओए की यहां आम सभा की विशेष बैठक के दौरान संविधान के मसौदे को अपनाया गया था।
मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने हालांकि एक अंतरिम याचिका में तत्काल सुनवाई खारिज कर दी जिसमें खेल संस्था के संविधान के मसौदे में कुछ अनधिकृत बदलाव का आरोप लगाया गया है।
पीठ ने कहा, ‘‘आपकी आपत्तियों पर सुनवाई सात दिसंबर को होगी। आप उसी दिन इसके बारे में बतायें।’’
आईओए ने उच्चतम न्यायालय और अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति (आईओसी) की देखरेख में तैयार अपने संविधान के मसौदे को गुरुवार को स्वीकार कर लिया लेकिन कई सदस्यों ने कहा कि शीर्ष अदालत के इसे अनिवार्य बनाने के बाद उन्हें ऐसा करने के लिए मजबूर किया गया।
आईओए महासचिव राजीव मेहता ने बाद में आईओसी को बताया कि संविधान के मसौदे में कुछ स्वीकृत प्रावधान सितंबर में स्विट्जरलैंड में संयुक्त बैठक में हुई सहमति से ‘काफी अलग’ थे।
आईओसी ने सितंबर में आईओए को अंतिम चेतावनी दी थी कि दिसंबर तक चुनाव करायें या फिर या निलंबन का सामना करें।
यहां आईओए की आम सभा की विशेष बैठक के दौरान कुछ सदस्यों ने मसौदा संविधान में कम से कम आधा दर्जन संशोधनों पर आपत्ति जताई और कहा कि ‘आम सभा के लोकतांत्रिक अधिकारों को पूरी तरह से छीन लिया गया।’।
दिसंबर तक चुनाव नहीं कराने की स्थिति में आईओसी से निलंबन की धमकी के साथ उच्चतम न्यायालय के निर्देशों के बाद आईओए के पास अपने संविधान में बदलाव करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा था।
संविधान का मसौदा उच्चतम न्यायालय द्वारा नियुक्त किये गये शीर्ष अदालत के सेवानिवृत्त न्यायाधीश एल नागेश्वर राव ने तैयार किया और आईओसी ने पहले ही इसे मंजूरी दे दी है।
महंगे सिलेंडर का झंझट खत्म! IOC ने तैयार किया ये खास ‘स्टोव’, अब महज कुछ खर्चे में बनेगा खाना..
डेस्क : भारत की शीर्ष तेल कंपनी इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन (IOC) ने बुधवार को एक स्थिर, रिचार्जेबल और इनडोर कुकिंग स्टोव का अनावरण किया। यह सूर्य की ऊर्जा का उपयोग करता है, लेकिन इसे कहीं भी ले जाने की आवश्यकता नहीं है, इसे रसोई में रखा जाता है। स्टोव पाने के लिए आपको केवल एक बार खर्च करना होगा और कोई रखरखाव लागत नहीं है। इसे जीवाश्म ईंधन के विकल्प के रूप में देखा जा रहा है।
तेल मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने अपने सरकारी आवास पर आयोजित समारोह की मेजबानी की. जहां तीन बार चूल्हे पर बना खाना परोसा गया। इस चूल्हे का नाम ‘सूर्य नूतन’ रखा गया है। इस अवसर पर आईओसी के निदेशक (आर एंड डी) एसएसवी रामकुमार ने कहा कि स्टोव सोलर कुकर से अलग है क्योंकि इसे धूप में नहीं रखना पड़ता है। सूर्य नूतन, जिसे फरीदाबाद में IOC के अनुसंधान और विकास विभाग द्वारा विकसित किया गया है, हमेशा रसोई में रहता है और एक केबल बाहर या छत पर रखे PV पैनल के माध्यम से कैप्चर की गई सौर ऊर्जा को वहन करती है।
यह कैसे काम करता है : यह सूर्य से ऊर्जा एकत्र करता है, फिर इसे विशेष रूप से डिज़ाइन किए गए हीटिंग तत्व के माध्यम से गर्मी में परिवर्तित करता है, फिर थर्मल ऊर्जा को वैज्ञानिक रूप से सिद्ध थर्मल बैटरी में संग्रहीत करता है और इनडोर खाना पकाने में उपयोग के लिए ऊर्जा को फिर से परिवर्तित करता है। कैप्चर की गई ऊर्जा न केवल चार लोगों के परिवार की खाना पकाने की जरूरतों को पूरा करती है बल्कि रात के खाने की भी।
उन्होंने कहा, “एक किलो एलपीजी (स्टोव का उपयोग करके) बचाने से 3% कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन कम हो जाएगा।” उन्होंने कहा कि वर्तमान में लद्दाख सहित 60 स्थानों पर प्रोटोटाइप का परीक्षण किया जा रहा है, जहां सौर तीव्रता बहुत अधिक है।
मुक़दमेबाज़ी का डर दिखा कर अभिव्यक्ति की आज़ादी को दबाया नहीं जा सकता
किसी निवेश के भले-बुरे पर ज़ाहिर की गई राय को अडानी समूह द्वारा मानहानि कैसे समझा जा सकता है? The post मुक़दमेबाज़ी का डर दिखा कर अभिव्यक्ति की आज़ादी को दबाया नहीं जा सकता appeared first on The Wire - Hindi.
किसी निवेश के भले-बुरे पर ज़ाहिर की गई राय को अडानी समूह द्वारा मानहानि कैसे समझा जा सकता है?
पिछले सप्ताह अदानी समूह ने द वायर की वेबसाइट पर प्रकाशित एक लेख को हटाने की मांग करते हुए इसके खिलाफ 100 करोड़ रुपये का एक सिविल मानहानि का मुकदमा दायर किया. साथ ही इस लेख को अडानी समूह की तौहीन करने वाला बताते हुए इस विषय पर आगे कोई स्टोरी छापने से रोक लगाने की मांग भी की.
इस लेख में ओडिशा में अडानी समूह द्वारा समर्थित एक एलएनजी टर्मिनल परियोजना में इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन (आईओसी) और गैस अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (गेल) जैसी सार्वजनिक कंपनियों द्वारा 49 प्रतिशत इक्विटी निवेश के फैसले की आर्थिक समझदारी पर सवाल उठाया गया है.
इसी तरह से आईओसी ने अलग से गुजरात में जीएसपीसी एलएनजी नाम के एक एलएनजी टर्मिनल में भी 50 प्रतिशत की हिस्सेदारी खरीदी है. यह अडानी समूह और गुजरात स्टेट पेट्रोलियम कॉरपोरेशन (जीएसपीसी) के बीच का एक साझा उपक्रम है.
द वायर का आलेख एक सीधा सा और किसी के भी मन में सहज तरीके से उठने वाला सवाल पूछता है: सार्वजनिक क्षेत्र की किसी कंपनी को करदाताओं का पैसा किसी परियोजना की 49 प्रतिशत हिस्सेदारी खरीदने में क्यों खर्च करना चाहिए, जबकि वह 51 प्रतिशत हिस्सेदारी लेकर इसके पूरे प्रबंधन को अपने हाथों में ले सकती थी.
49 प्रतिशत हिस्सेदारी खरीदने के बाद भी उस परियोजना का नियंत्रण निजी खिलाड़ी के हाथों में रहने देना निश्चित तौर पर यह सवाल उठाता है कि आखिर इससे सरकार या उस सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी को क्या हासिल हो रहा है?
आईओसी के एक पूर्व अध्यक्ष, जो अपने नाम को उजागर करना नहीं चाहते थे, ने आईओसी एक दिन के आदेश से अलग कैसे है? द वायर को बताया कि अडानी की परियोजना में किसी किस्म का प्रबंधकीय नियंत्रण लिए बगैर 49 प्रतिशत हिस्सेदारी खरीदने से आईओसी को कोई रणनीतिक फायदा नहीं हो रहा है.
हमारा यह मानना है कि उनका नजरिया काफी अहमियत रखता है, क्योंकि उन्होंने आईओसी के शीर्ष पद पर काम किया है और वे भी कंपनी के हितों को उतनी ही अच्छी तरह से समझते हैं, जितनी अच्छी तरह से मौजूदा प्रबंधन समझता है.
सवाल है, किसी निवेश से होने वाले फायदों या उसकी खामियों के बारे में मात्र अपनी राय रखना इस परियोजना पर पूरा नियंत्रण रखने वाले प्राइवेट पार्टनर अडानी समूह की मानहानि करने वाला कैसे माना जा सकता है?
वैसे भी, किसी भी नजरिए से इन निवेशों के फायदे को लेकर उठने वाले सवालों आईओसी एक दिन के आदेश से अलग कैसे है? का जवाब देने की जिम्मेदारी भारत सरकार या पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय की ही बनती है, न कि किसी और की, इसलिए इस मामले में अडानी समूह द्वारा द वायर के खिलाफ मानहानि का मुकदमा दायर करना थोड़ा विचित्र है.
इसके आईओसी एक दिन के आदेश से अलग कैसे है? साथ ही यह भी ध्यान में रखा जाना चाहिए कि सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप) परियोजनाओं पर, खासकर अगर वे बुनियादी ढांचे के क्षेत्र की हों, मीडिया में नियमित बहसें होती रही हैं.
ऐसा इन परियोजनाओं की जटिल प्रकृति के कारण भी होता है और इस कारण भी होता है कि कैग (नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक) जैसी संवैधानिक संस्थाओं के अलावा अन्य सरकारी ऑडिटरों द्वारा भी इनकी जांच नियमित तौर पर और अनिवार्य तरीके से होती है.
हाल के वर्षों में सड़कें, हवाई अड्डे, तेल की खोज और बुनियादी ढांचे से संबंधित पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप परियोजनाओं पर मीडिया में काफी कुछ लिखा गया है और उन पर अच्छी-खासी बहसें भी चली हैं.
इसलिए हमारा यह मानना है कि सार्वजनिक तेल कंपनियों के निवेश को लेकर उठाए गए कुछ सवालों के जवाब में अडानी समूह द्वारा दायर किया गया सिविल मानहानि का मुकदमा इस विषय पर विचार-विमर्श और बहसों को हतोत्साहित करने की एक कोशिश है.
दिलचस्प यह है कि मीडिया का गला घोंटने की यह कोशिश एक ऐसे समय में हुई है जब कई बड़े कॉरपोरेट समूह भारी कर्जे में डूबे हुए हैं और बैंकों से पैसा हासिल करने में कामयाब नहीं हो पा रहे हैं.
ऐसा लगता है कि नकद की ढेर पर बैठी सार्वजनिक कंपनियां, खासकर तेल क्षेत्र की कंपनियां निजी क्षेत्र के निवेश की कमी की भरपाई कर रही हैं और कई मामलों में ऐसे निवेश निजी क्षेत्र के साथ साझीदारी में हो रहे हैं.
लेकिन हमारे द्वारा उठाया जाने वाला सवाल यह है कि आखिर यह निवेश किस तरह की शर्तों पर हो रहा है? यह एक बेहद जायज सवाल है. इसे मानहानि करनेवाला करार देना, बड़ी रकम वाले मानहानि के मुकदमों से डराने की नई रणनीति का ही एक और उदाहरण नजर आता है.
अंग्रेजी में जिसे स्लैप- (स्ट्रैटेजिक लॉ सूट अगेंस्ट पब्लिक पार्टिसिपेशन यानी जन भागीदारी को रोकने के लिए रणनीतिक मुकदमेबाजी) की संज्ञा दी गई है.
मीडिया को डराने और सरकार और बड़े व्यावासायिक सवालों के बीच सांठ-गांठ को लेकर असहज करने वाले सवालों को सार्वजनिक बहसों से दूर रखने के लिए एक हथियार के तौर पर ‘स्लैप’ का इस्तेमाल पहले की तुलना में आज कहीं ज्यादा संख्या में किया जा रहा है.
मीडिया द्वारा करदाताओं के पैसे का पब्लिक-प्राइवेट परियोजनाओं में निवेश करने को लेकर सरकार से जवाब मांगे जाने पर कॉरपोरेट समूहों द्वारा मानहानि का मुकदमा दायर करना, निस्संदेह बेहद हैरान करने वाला है.
मीडिया के पास जनहित से जुड़े मामलों में आईओसी एक दिन के आदेश से अलग कैसे है? सरकार और कॉरपोरेट घरानों से सवाल पूछने का पूरा अधिकार है. कभी-कभी कॉरपोरेटों के द्वारा रिपोर्टिंग की वैसी छोटी-मोटी चूकों को काफी तूल दिया जाता है, जो वास्तव में मीडिया द्वारा उठाए गए असली सवाल का केंद्रीय हिस्सा नहीं होता.
इस संदर्भ में दो दिन पहले एक मानहानि के मुकदमे में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी काफी प्रासंगिक है. शीर्ष अदालत ने मौखिक तौर आईओसी एक दिन के आदेश से अलग कैसे है? पर इस बात पर जोर दिया कि मीडिया को अभिव्यक्ति की आजादी का पूरी तरह से इस्तेमाल करना चाहिए और किसी घोटाले या उसमें शामिल लोगों की रिपोर्टिंग के दौरान हुई छोटी-मोटी चूकों को मानहानि करने वाला नहीं कहा जा सकता है.
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