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'अफवाह खरीदें, समाचार बेचें' विदेशी मुद्रा व्यापार रणनीति

"अफवाह खरीदें, समाचार बेचें" एक घटना है जो ज्यादातर बाजारों, विशेष रूप से वित्तीय बाजारों में होती है। व्यापारी कभी-कभी इस विचार को एक व्यापारिक रणनीति में बदल देते हैं, जो यह मानते हैं कि आगामी आर्थिक रिपोर्ट या घटना में क्या होता है। जब व्यापारी इस अटकल के आधार पर संपत्ति खरीदता है, तो यह रणनीति के अफवाह चरण का गठन करता है। एक बार प्रतीक्षित ईवेंट पास होने या रिपोर्ट जारी होने के बाद, लौकिक समाचार को सार्वजनिक कर दिया गया है। फिर व्यापारी अपने पदों को खोदता है और बाजार चलता है।

'अफवाहों' में एक सबक

विदेशी मुद्रा बाजार के बाहर के बाजारों में ( विदेशी मुद्रा ), व्यापारी और निवेशक समान रूप से प्रत्याशित भविष्य के नकदी प्रवाह के आधार पर खरीदते हैं। इसका मतलब है, अगर किसी कंपनी को पहले से सोचे गए शेयरधारकों की तुलना में अधिक राजस्व प्रदान करने की उम्मीद है, तो व्यापारी बढ़े हुए लाभांश या स्टॉक की कीमतों का लाभ उठाने के लिए स्टॉक को जल्दी से खरीद लेंगे। यह व्यवहार विदेशी मुद्रा विदेशी मुद्रा समाचार व्यापार रणनीति पर भी लागू होता है, लेकिन नकदी-प्रवाह के बजाय, व्यापारी अक्सर कार्य करते हैं

इस रणनीति का उपयोग करने वाले निवेशक तलाश करते हैं मंडित बाजार . जब संभावित समाचार या जानकारी से पता चलता है कि एक परिसंपत्ति भविष्य के अधिक नकदी प्रवाह का उत्पादन कर सकती है, तो यह "अफवाह" है - यह संपत्ति अगले कुछ हफ्तों या महीनों में अधिक होने की अफवाह है। निवेशक उस परिसंपत्ति को उस बिंदु तक खरीद लेंगे जहां अब इसका मूल्यांकन नहीं किया गया है।

यदि अफवाह झूठी है, या बाजार ने परिसंपत्ति को खत्म कर दिया है, ताकि यह अब अंडरवैल्यूड न हो (और संभावित रूप से बन जाए overvalued), फिर एक समाचार या वित्तीय रिपोर्ट जो अपेक्षाओं से थोड़ा नीचे आती है, सही रूप से a का कारण बनेगी बेच डाल। केवल एक हैरान कर देने वाली घटना प्रत्याशित अफवाह से बढ़कर स्टॉक वैल्यूएशन को बनाए रखेगा। यदि कोई आश्चर्यचकित करने वाली समाचार घटना पर्याप्त सकारात्मक है, तो यह संभावित रूप से मूल्य को और भी अधिक बढ़ा सकती है।

एक उदाहरण विदेशी मुद्रा व्यापार के लिए लागू है

एक सामान्य विदेशी मुद्रा परिदृश्य जो अफवाहें और समाचार दोनों पैदा करता है एक देश के केंद्रीय बैंक और इसकी ब्याज दर नीति की चिंता करता है। जब एक केंद्रीय बैंक ब्याज दरें बढ़ाता है, तो यह आम तौर पर एक मजबूत अर्थव्यवस्था का संकेत देता है, और विदेशी मुद्रा व्यापारी मुद्रा के मूल्य में वृद्धि की उम्मीद करते हैं।

यदि कोई विदेशी मुद्रा व्यापारी किसी योजना की हवा पकड़ता है या अन्यथा एक केंद्रीय बैंक ब्याज दरों को बढ़ाता है, तो विश्वास करता है - "अफवाह" - व्यापारी इसी मुद्रा को खरीद सकता है। तब, जब केंद्रीय बैंक वास्तव में ब्याज दर को आगे बढ़ाता है - "समाचार" - विदेशी मुद्रा व्यापारी देखेगा क्योंकि समाचार मुद्रा के मूल्य को अधिक धक्का देता है। एक बार जब मुद्रा व्यापारी को एक अच्छा लाभ कमाने के लिए एक उच्च पर्याप्त मूल्य मारता है, तो वह व्यापारी "समाचार को बेच देगा" और मुद्रा का उच्च मूल्य पर व्यापार करेगा।

'अफवाह बेचो खबरें खरीदें' के निहितार्थ

व्यापारियों के लिए प्राथमिक कुंठाओं में से एक ऐसी चीज है जिसे आप मजबूत होने के लिए जानते हैं, जो केवल एक बिक्री-बंद मूल्य को खोने के लिए खरीदकर बनाई गई है। ऐसा होने के कई कारण हो सकते हैं, लेकिन व्यापारियों की जानकारी को संसाधित करने के तरीके में अंतर के कारण यह कम हो सकता है। यह विचार नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री डैनियल काहनमैन की पुस्तक, "सोच, तेज और धीमी" में उजागर किया गया था।

ऐसे उदाहरण में, एक व्यापारी को व्यापार करने से पहले खबर को पचाने में समय लगता है, जबकि अन्य व्यापारी अफवाहों के सामने आते ही आवेगपूर्ण तरीके से कार्य करते हैं। धीमी गति से काम करने वाले व्यापारी अक्सर "ज्ञात" या "समाचार" का लाभ लेने के लिए इन-द-ट्रेडर्स व्यापारियों को तरलता प्रदान करते हैं।

तल - रेखा

जब एक सकारात्मक समाचार घटना सामने आती है और मूल्य बढ़ता है, तो उस सकारात्मक समाचार को जारी करने से बाजार में प्रवेश करने का सबसे खराब समय हो सकता है। यही वह समय है जब कम कीमत पर शेयर खरीदने वाले बाकी सभी लोग मुनाफा कमाने के लिए बाजार से बाहर हो सकते हैं।

विदेशी मुद्रा व्यापार में कुछ चीजें अन्य व्यापारियों के लिए तरलता का स्रोत होने की तुलना में अधिक निराशाजनक हैं। इस भाग्य से बचने के सर्वोत्तम तरीकों में से एक अच्छी खबर घटना के बाद एक रिटर्न्स की प्रतीक्षा करना है - कीमत दिशा में एक संक्षिप्त उलट-पलट कर बेहतर कीमत पर खरीदना।

विदेशी मुद्रा समाचार व्यापार रणनीति

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वक्त की जरूरत है रुपये में व्यापार, अंतरराष्ट्रीय बाजार में अन्य के मुकाबले मजबूत और स्थिर होगी भारतीय मुद्रा

रुपये को वैश्विक मान्यता दिलाने के लिए भारतीय अर्थव्यवस्था के आकार में वृद्धि करनी होगी जिसके लिए भारत को मैन्यूफैक्चरिंग हब बनाना होगा। रुपये में निवेश एवं व्यापार को बढ़ाने से रुपये के मूल्य में भी वृद्धि होगी जो वैश्विक व्यापार में भारत की भागीदारी के नए आयाम स्थापित करेगी।

[डा. सुरजीत सिंह]। हाल में जारी अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि विश्व की अर्थव्यवस्था मंदी की ओर बढ़ रही है। डालर के निरंतर मजबूत होने से महत्वपूर्ण मुद्राएं कमजोर पड़ने लगी हैं। विभिन्न देशों के विदेशी मुद्रा भंडार घटने लगे हैं, जिसके चलते वैश्विक वृद्धि दर घट रही है। आर्थिक परिदृश्य बदलने से वैश्विक भू-राजनीति भी बदल रही है। भारत सरकार ने इस पर गंभीरता से विचार करना प्रारंभ किया है कि इन बदलते वैश्विक हालात के लिए जिम्मेदार अमेरिकी डालर पर निर्भरता को कैसे कम किया जाए?

जब सब कुछ इंटरनेट के भरोसे हो रहा है तो साइबर सुरक्षा सुनिश्चित करना भी हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए।

इस संदर्भ में आरबीआइ ने एक नई शुरुआत करते हुए यह घोषणा की कि निर्यातक एवं आयातक रुपये में भी व्यापार कर सकेंगे। इस योजना का प्रमुख उद्देश्य वैश्विक व्यापार में भारत की हिस्सेदारी बढ़ाना एवं डालर में होने वाली व्यापार निर्भरता को कम करना है। रुपये में होने वाले पारस्परिक लेनदेन के लिए आरबीआइ ने एक प्रणाली विकसित की है। इससे निर्यात और आयात की कीमत और चालान सभी कुछ रुपये में ही होगा।

मौद्रिक सख्ती के कारण आर्थिक वृद्धि पर कुछ दबाव दिखना स्वाभाविक है।

विश्व की बदलती आर्थिक परिस्थितियों में बहुत से देश न चाहते हुए भी अपना व्यापार डालर में करने को मजबूर हैं। भारत 86 प्रतिशत व्यापार डालर में करता है। भारत के आयात, निर्यात से ज्यादा होने के कारण अधिक डालर की आवश्यकता होती है। अप्रैल से सितंबर 2022 के दौरान भारत का कुल निर्यात 229.05 अरब डालर एवं आयात 378.53 अरब डालर का हुआ। रुपये-डालर की विनिमय दर को बनाए रखने के लिए आरबीआइ 50 अरब डालर से अधिक व्यय कर चुका है। भारत की तरह दुनिया का भी अधिकांश व्यापार डालर में ही होता है। विश्व के सभी देश डालर के सापेक्ष अपनी-अपनी विनिमय दर को स्थिर करने के प्रयासों में लगे हुए हैं। बढ़ती महंगाई को नियंत्रित करने के लिए अमेरिका के फेडरल रिजर्व ने ब्याज की दर को बढ़ा दिया है, जिससे विश्व के धन का प्रवाह अमेरिका की तरफ होने लगा है। इससे डालर और मजबूत होता जा रहा है।

इन परिस्थितियों में डालर के दबदबे को कम करने के लिए भारत सरकार ने सही समय पर सही पहल की है। रुपये में व्यापार करने का फैसला ऐसे समय में आया है, जब दुनिया के अधिकतर देश न सिर्फ मुद्रा भंडार में कमी का सामना कर रहे हैं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय वित्तीय निपटान में कठिनाइयों से भी जूझ रहे हैं। इन विपरीत परिस्थितियों में भारत की यह व्यवस्था विनिमय दर में होने वाले उतार-चढ़ाव के जोखिमों से भी सुरक्षा प्रदान करेगी। यह उन भारतीय निर्यातकों की समस्या को कम करेगी, जिनका भुगतान युद्ध के कारण अटका हुआ है। यह रूस और ईरान जैसे देश के साथ हमारे व्यापारिक संबंधों को बेहतर बनाने में मददगार होगी, जिन पर अमेरिकी प्रतिबंध है। रुपये में व्यापार से विश्व भर में न सिर्फ इसकी स्वीकृति बढ़ेगी, बल्कि विश्व में भारत का अर्थिक स्तर भी बढ़ेगा।

विदेश मंत्रालय के सार्थक प्रयासों का ही नतीजा है कि अनेक देशों विशेष रूप से श्रीलंका, मालदीव, विभिन्न दक्षिण पूर्व एशियाई देश, अफ्रीकी और लैटिन अमेरिकी देशों ने भी रुपये में व्यापार करने में अपनी सहमति व्यक्त की है। भारत के साथ रुपये में व्यापार करने के लिए रूस सहर्ष तैयार है। रुपये-रूबल में व्यापार के बाद रुपया-रियाल एवं रुपया-टका में व्यापार की दिशा में कार्य प्रारंभ हो चुका है। यदि इन सभी देशों को किया जाने वाला भुगतान रुपये में होगा तो इसका सीधा लाभ भारतीय अर्थव्यवस्था को होगा। श्रीलंका की आर्थिक स्थिति ठीक न होने से वह भी भारत के साथ रुपये में व्यापार करने के लिए तैयार है। स्पष्ट है कि आने वाले समय में रुपया अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान स्थापित करेगा।

कुछ अर्थशास्त्रियों का मत है कि यह व्यवस्था उन देशों में ही सफल हो पाएगी, जहां आयात और निर्यात लगभग बराबर है। वे यह भी प्रश्न करते हैं कि यह व्यवस्था उन देशों में कैसे लागू होगी, जिन देशों के पास बैलेंस शेष रह जाएगा। भारत सरकार इसके लिए कई क्षेत्रीय समूहों जैसे ब्रिक्स के साथ एक रिजर्व मुद्रा की व्यवस्था बना सकती है, जिससे जुड़े हुए देश पारस्परिक रूप से आपसी मुद्राओं में व्यापार कर सकते हैं। इसमें कोई दो राय नहीं कि इस व्यवस्था के सफल होते ही विश्व का आर्थिक खेल ही बदल जाएगा।

इस प्रणाली का सबसे महत्वपूर्ण उद्देश्य किसी अंतरराष्ट्रीय मुद्रा के महत्व को कम करना नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारतीय रुपये को बेहतर बनाने की एक शुरुआत करना है। यह समय की मांग भी है कि भारतीय और अंतरराष्ट्रीय बाजार एक-दूसरे के लिए अधिक खुले विकल्प रखें एवं विभिन्न प्रकार के वित्तीय साधनों के संबंध में रुपये को अधिक उदार बनाएं। इसके लिए आवश्यक है कि रुपये के संदर्भ में एक मजबूत विदेशी मुद्रा बाजार बनाया जाए। बैंकिंग क्षेत्र की सुदृढ़ता के लिए आवश्यकतानुसार सुधार निरंतर जारी रहने चाहिए।

पिछली सदी के नौवें दशक में जब भारत एक बंद अर्थव्यवस्था थी, विदेशी मुद्रा दुर्लभ थी और डालर ‘भगवान’ था। बदलते समय के साथ रूस एवं चीन ने हमारे समक्ष उदाहरण पेश किया कि डालर के बिना भी अर्थव्यवस्था को चलाया जा सकता है। यह उम्मीद की जानी चाहिए कि भारतीय रुपया अंतरराष्ट्रीय बाजार में अन्य मुद्राओं के मुकाबले मजबूत और स्थिर बनेगा। रुपये को वैश्विक मान्यता दिलाने के लिए भारतीय अर्थव्यवस्था के आकार में भी वृद्धि करनी होगी, जिसके लिए भारत को एक मैन्यूफैक्चरिंग हब बनाना होगा। रुपये में निवेश एवं व्यापार को बढ़ाने से रुपये के मूल्य में भी वृद्धि होगी, जो वैश्विक व्यापार में भारत की भागीदारी के नए आयाम स्थापित करेगी।

वक्त की जरूरत है रुपये में व्यापार, अंतरराष्ट्रीय बाजार में अन्य के मुकाबले मजबूत और स्थिर होगी भारतीय मुद्रा

रुपये को वैश्विक मान्यता दिलाने के लिए भारतीय अर्थव्यवस्था के आकार में वृद्धि करनी होगी जिसके लिए भारत को मैन्यूफैक्चरिंग हब बनाना होगा। रुपये में निवेश एवं व्यापार को बढ़ाने से रुपये के मूल्य में भी वृद्धि होगी जो वैश्विक व्यापार में भारत की भागीदारी के नए आयाम स्थापित करेगी।

[डा. सुरजीत सिंह]। हाल में जारी अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि विश्व की अर्थव्यवस्था मंदी की ओर बढ़ रही है। डालर के निरंतर मजबूत होने से महत्वपूर्ण मुद्राएं कमजोर पड़ने लगी हैं। विभिन्न देशों के विदेशी मुद्रा भंडार घटने लगे हैं, जिसके चलते वैश्विक वृद्धि दर घट रही है। आर्थिक परिदृश्य बदलने से वैश्विक भू-राजनीति भी बदल रही है। भारत सरकार ने इस पर गंभीरता से विचार करना प्रारंभ किया है कि इन बदलते वैश्विक हालात के लिए जिम्मेदार अमेरिकी डालर पर निर्भरता को कैसे कम किया जाए?

जब सब कुछ इंटरनेट के भरोसे हो रहा है तो साइबर सुरक्षा सुनिश्चित करना भी हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए।

इस संदर्भ में आरबीआइ ने एक नई शुरुआत करते हुए यह घोषणा की कि निर्यातक एवं आयातक रुपये में भी व्यापार कर सकेंगे। इस योजना का प्रमुख उद्देश्य वैश्विक व्यापार में भारत की हिस्सेदारी बढ़ाना एवं डालर में होने वाली व्यापार निर्भरता को कम करना है। रुपये में होने वाले पारस्परिक लेनदेन के लिए आरबीआइ ने एक प्रणाली विकसित की है। इससे निर्यात और आयात की कीमत और चालान सभी कुछ रुपये में ही होगा।

मौद्रिक सख्ती के कारण आर्थिक वृद्धि पर कुछ दबाव दिखना स्वाभाविक है।

विश्व की बदलती आर्थिक परिस्थितियों में बहुत से देश न चाहते हुए भी अपना व्यापार डालर में करने को मजबूर हैं। भारत 86 प्रतिशत व्यापार डालर में करता है। भारत के आयात, निर्यात से ज्यादा होने के कारण अधिक डालर की आवश्यकता होती है। अप्रैल से सितंबर 2022 के दौरान भारत का कुल निर्यात 229.05 अरब डालर एवं आयात 378.53 अरब डालर का हुआ। रुपये-डालर की विनिमय दर को बनाए रखने के लिए आरबीआइ 50 अरब डालर से अधिक व्यय कर चुका है। भारत की तरह दुनिया का भी अधिकांश व्यापार डालर में ही होता है। विश्व के सभी देश डालर के सापेक्ष अपनी-अपनी विनिमय दर को स्थिर करने के प्रयासों में लगे हुए हैं। बढ़ती महंगाई को नियंत्रित करने के लिए अमेरिका के फेडरल रिजर्व ने ब्याज की दर को बढ़ा दिया है, जिससे विश्व के धन का प्रवाह अमेरिका की तरफ होने लगा है। इससे डालर और मजबूत होता जा रहा है।

इन परिस्थितियों में डालर के दबदबे को कम करने के लिए भारत सरकार ने सही समय पर सही पहल की है। रुपये में व्यापार करने का फैसला ऐसे समय में आया है, जब दुनिया के अधिकतर देश न सिर्फ मुद्रा भंडार में कमी का सामना कर रहे हैं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय वित्तीय निपटान में कठिनाइयों से भी जूझ विदेशी मुद्रा समाचार व्यापार रणनीति रहे हैं। इन विपरीत परिस्थितियों में भारत की यह व्यवस्था विनिमय दर में होने वाले उतार-चढ़ाव के जोखिमों से भी सुरक्षा प्रदान करेगी। यह उन भारतीय निर्यातकों की समस्या को कम करेगी, जिनका भुगतान युद्ध के कारण अटका हुआ है। यह रूस और ईरान जैसे देश के साथ हमारे व्यापारिक संबंधों को बेहतर बनाने में मददगार होगी, जिन पर अमेरिकी प्रतिबंध है। रुपये में व्यापार से विश्व भर में न सिर्फ इसकी स्वीकृति बढ़ेगी, बल्कि विश्व में भारत का अर्थिक स्तर भी बढ़ेगा।

विदेश मंत्रालय के सार्थक प्रयासों का ही नतीजा है कि अनेक देशों विशेष रूप से श्रीलंका, मालदीव, विभिन्न दक्षिण पूर्व एशियाई देश, अफ्रीकी और लैटिन अमेरिकी देशों ने भी रुपये में व्यापार करने में अपनी सहमति व्यक्त की है। भारत के साथ रुपये में व्यापार करने के लिए रूस सहर्ष तैयार है। रुपये-रूबल में व्यापार के बाद रुपया-रियाल एवं रुपया-टका में व्यापार की दिशा में कार्य प्रारंभ हो चुका है। यदि इन सभी देशों को किया जाने वाला भुगतान रुपये में होगा तो इसका सीधा लाभ भारतीय अर्थव्यवस्था को होगा। श्रीलंका की आर्थिक स्थिति ठीक न होने से वह भी भारत के साथ रुपये में व्यापार करने के लिए तैयार है। स्पष्ट है कि आने वाले समय में रुपया अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान स्थापित करेगा।

कुछ अर्थशास्त्रियों का मत है कि यह व्यवस्था उन विदेशी मुद्रा समाचार व्यापार रणनीति देशों में ही सफल हो पाएगी, जहां आयात और निर्यात लगभग बराबर है। वे यह भी प्रश्न करते हैं कि यह व्यवस्था उन देशों में कैसे लागू होगी, जिन देशों के पास बैलेंस शेष रह जाएगा। विदेशी मुद्रा समाचार व्यापार रणनीति भारत सरकार इसके लिए कई क्षेत्रीय समूहों जैसे ब्रिक्स के साथ एक रिजर्व मुद्रा की व्यवस्था बना सकती है, जिससे जुड़े हुए देश पारस्परिक रूप से आपसी मुद्राओं में व्यापार कर सकते हैं। इसमें कोई दो राय नहीं कि इस व्यवस्था के सफल होते ही विश्व का आर्थिक खेल ही बदल जाएगा।

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पिछली सदी के नौवें दशक में जब भारत एक बंद अर्थव्यवस्था थी, विदेशी मुद्रा दुर्लभ थी और डालर ‘भगवान’ था। बदलते समय के साथ रूस एवं चीन ने हमारे समक्ष उदाहरण पेश किया कि डालर के बिना भी अर्थव्यवस्था को चलाया जा सकता है। यह उम्मीद की जानी चाहिए कि भारतीय रुपया अंतरराष्ट्रीय बाजार में अन्य मुद्राओं के मुकाबले मजबूत और स्थिर बनेगा। रुपये को वैश्विक मान्यता दिलाने के लिए भारतीय अर्थव्यवस्था के आकार में भी वृद्धि करनी होगी, जिसके लिए भारत को एक मैन्यूफैक्चरिंग हब बनाना होगा। रुपये में निवेश एवं व्यापार को बढ़ाने से रुपये के मूल्य में भी वृद्धि होगी, जो वैश्विक व्यापार में भारत की भागीदारी के नए आयाम स्थापित करेगी।

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