कारखाना विदेशी मुद्रा कर्नाटक
प्राकृतिक संसाधनों को संसाधित कर के अधिक उपयोगी एवं मूल्यवान वस्तुओं में बदलना विनिर्माण कहलाता है। ये विनिर्मित वस्तुएँ कच्चे माल से तैयार की जाती हैं। विनिर्माण उद्योग में प्रयुक्त होने वाले कच्चे माल या तो अपने प्राकृतिक स्वरूप में सीधे उपयोग में ले लिये जाते हैं जैसे कपास, ऊन, लौह अयस्क इत्यादि अथवा अर्द्ध-संशोधित स्वरूप में जैसे धागा, कच्चा लोहा आदि जिन्हें उद्योग में प्रयुक्त कर के और अधिक उपयोगी एवं मूल्यवान वस्तुओं के रूप में बदला जाता है। अतः किसी विनिर्माण उद्योग से विनिर्मित वस्तुएँ दूसरे विनिर्माण उद्योग के लिये कच्चे माल का कार्य करती हैं। अब यह सर्वमान्य तथ्य है कि किसी भी देश की आर्थिक-प्रगति या विकास उसके अपने उद्योगों के विकास के बिना संभव नहीं है।
औद्योगिक विकास के स्तर का किसी देश की आर्थिक सम्पन्नता से सीधा सम्बन्ध है। विकसित देशों जैसे संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान, रूस की आर्थिक सम्पन्नता इन देशों की औद्योगिक इकाइयों की प्रोन्नत एवं उच्च विकासयुक्त वृद्धि से जुड़ा है। औद्योगिक दृष्टि से अविकसित देश अपने प्राकृतिक संसाधानों का निर्यात करते हैं तथा विनिर्मित वस्तुओं को अधिक मूल्य चुकाकर आयात करते हैं। इसीलिये आर्थिक रूप से ये देश पिछड़े बने रहते हैं।
भारत में विनिर्माण उद्योग का सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 30% का योगदान है। इन औद्योगिक इकाइयों द्वारा करीब 280 लाख लोगों को रोजगार उपलब्ध कराए जाते हैं। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि निर्माण उद्योग राष्ट्रीय आय तथा रोजगार के प्रमुख स्रोत हैं।
इस पाठ के अन्तर्गत हम भारत में विकसित विभिन्न प्रकार के निर्माण उद्योग, उनके वर्गीकरण तथा उनके क्षेत्रीय वितरण कर अध्ययन करेंगे।
उद्देश्य
इस पाठ का अध्ययन करने के पश्चात आपः
- भारत में विनिर्माण उद्योगों के ऐतिहासिक विकास को जान सकेंगे;
- हमारे देश के आर्थिक विकास एवं प्रगति में इन औद्योगिक इकाइयों के योगदान को समझ सकेंगे;
- उद्योगों का विभिन्न लक्षणों के आधार पर वर्गीकरण कर सकेंगे;
- औद्योगिक विकास का सम्बन्ध कृषि, खनिज तथा ऊर्जा के साथ स्थापित कर सकेंगे;
- उद्योगों के स्थानीयकरण को प्रभावित करने वाले कारकों का परीक्षण कर सकेंगे;
- कुछ प्रमुख कृषि-आधारित उद्योगों तथा खनिज आधारित उद्योंगों के स्थानिक वितरण का वर्णन कर सकेंगे;
- भारत के मानचित्र पर कुछ चुने हुए उद्योगों की अवस्थितियों को दर्शा सकेंगे और उनकी पहचान कर सकेंगे;
- भारत में औद्योगिक विकास को बढ़ावा देने के लिये बनाई गई विभिन्न नीतियों के योगदान को समझा सकेंगे;
- औद्योगिक विकास और क्षेत्रीय विकास के बीच सम्बन्ध स्थापित कर सकेंगे;
- स्थान-विशेष पर स्थापित उद्योगों के विकास एवं वृद्धि पर आर्थिक उदारीकरण के प्रभाव का वर्णन कर सकेंगे;
- औद्योगिक विकास के पर्यावरण पर पड़ रहे प्रभाव की व्याख्या कर सकेंगे।
24.1 आधुनिक उद्योगों का संक्षिप्त इतिहास
भारत में आधुनिक औद्योगिक विकास का प्रारंभ मुंबई में प्रथम सूती कपड़े की मिल की स्थापना (1854) से हुआ। इस कारखाने की स्थापना में भारतीय पूँजी तथा भारतीय प्रबंधन ही मुख्य था। जूट उद्योग का प्रारंभ 1855 में कोलकाता के समीप हुगली घाटी में जूट मिल की स्थापना से हुआ जिसमें पूँजी एवं प्रबंध-नियन्त्रण दोनो विदेशी थे। कोयला खनन उद्योग सर्वप्रथम रानीगंज (पश्चिम बंगाल) में 1772 में शुरू हुआ। प्रथम रेलगाड़ी का प्रारंभ 1854 में हुआ। टाटा लौह-इस्पात कारखाना जमशेदपुर (झारखण्ड राज्य) में सन 1907 में स्थापित किया गया। इनके बाद कई मझले तथा छोटी औद्योगिक इकाइयों जैसे सीमेन्ट, कांच, साबुन, रसायन, जूट, चीनी तथा कागज इत्यादि की स्थापना की गई। स्वतंत्रता पूर्व औद्योगिक उत्पादन न तो पर्याप्त थे और न ही उनमें विभिन्नता थी।
स्वतंत्रता प्राप्ति के समय भारत की अर्थव्यवस्था अविकसित थी, जिसमें कृषि का योगदान भारत के सकल घरेलू उत्पाद का 60% से अधिक था तथा देश की अधिकांश निर्यात से आय कृषि से ही थी। स्वतंत्रता के 60 वर्षों के बाद भारत ने अब अग्रणी आर्थिक शक्ति बनने के संकेत दिए हैं।
भारत में औद्योगिक विकास को दो चरणों में विभक्त किया जा सकता है। प्रथम चरण (1947-80) के दौरान सरकार ने क्रमिक रूप से अपना नियन्त्रण विभिन्न आर्थिक-क्षेत्रों पर बढ़ाया। द्वितीय चरण (1980-97) में विभिन्न उपायों द्वारा (1980-1992 के बीच) अर्थव्यवस्था में उदारीकरण लाया गया। इन उपायों द्वारा उदारीकरण तात्कालिक एवं अस्थाई रूप से किया गया था। अतः 1992 के पश्चात उदारीकरण की प्रक्रिया पर जोर दिया गया तथा उपागमों की प्रकृति में मौलिक भिन्नता भी लाई गई।
स्वतंत्रता के पश्चात भारत में व्यवस्थित रूप से विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं के अन्तर्गत औद्योगिक योजनाओं को समाहित करते हुए कार्यान्वित किया गया और परिणामस्वरूप बड़ी संख्या में भारी और मध्यम प्रकार की औद्योगिक इकाइयों की स्थापना की गई। देश की औद्योगिक विकास नीति में अधिक ध्यान देश में व्याप्त क्षेत्रीय असमानता एवं असंतुलन को हटाने में केन्द्रित किया गया था और विविधता को भी स्थान दिया गया। औद्योगिक विकास में आत्मनिर्भरता को प्राप्त करने के लिये भारतीय लोगों की क्षमता को प्रोत्साहित कर विकसित किया गया। इन्हीं सब प्रयासों के कारण भारत आज विनिर्माण के क्षेत्र में विकास कर पाया है। आज हम बहुत सी औद्योगिक वस्तुओं का निर्यात विभिन्न देशों को करते हैं।
पाठगत प्रश्न 24.1
1. कब और किस जगह कोयले का उत्खनन सर्वप्रथम शुरू हुआ?
2. भारत में किस वर्ष में रेलगाड़ी का प्रारंभ हुआ?
3. टाटा लौह और इस्पात संयंत्र किस जगह कारखाना विदेशी मुद्रा कर्नाटक स्थापित किया गया था?
24.2 उद्योगों का वर्गीकरण
विभिन्न लक्षणों के आधार पर उद्योगों को कई वर्गों में विभाजित किया जा सकता है। किन्तु निम्न सारिणी में उद्योगों को 5 प्रमुख आधारों पर वर्गीकृत किया गया है-
भारत में इंजीनियरिंग उद्योग
सूती वस्त्र और लौह और इस्पात उद्योग के बाद इंजीनियरिंग उद्योग भारत के कुछ सबसे महत्वपूर्ण उद्योग हैं। भारत ने देश की स्वतंत्रता के बाद से विभिन्न प्रकार के मशीनरी और उपकरणों के कारखाना विदेशी मुद्रा कर्नाटक निर्माण में काफी विकास किया है। इंजीनियरिंग उद्योग बुनियादी कच्चे माल जैसे फाउंड्री-ग्रेड आयरन स्पेशल स्टील्स और मिश्र धातु का निर्माण मशीन टूल्स, उपकरण और मशीनरी का निर्माण करते हैं। उदाहरण के लिए कोलकाता, दुर्गापुर और भद्रावती में फोर्जिंग उद्योग के लिए विशेष मिश्र धातु स्टील्स बनाए जाते हैं। दिलचस्प बात यह है कि अधिकांश इंजीनियरिंग सामान, औद्योगिक उपकरण और मशीनरी भारत में प्रतिष्ठित विदेशी फर्मों और कंसोर्टियम के सहयोग से निर्मित किए जा रहे हैं। एक निश्चित बिंदु पर भारत सभी प्रकार के परिष्कृत सामानों के लिए अन्य देशों पर पूरी तरह से निर्भर था। भारत को विदेशों से कुल मशीनरी का आयात करना पड़ा। लेकिन अब स्थिति बड़े पैमाने पर बदल गई है। देश अब कपड़ा, चीनी, कागज, चाय, सीमेंट, खनन और पेट्रोकेमिकल संयंत्रों के लिए पूरी मशीनरी का निर्माण करता है। रांची में भारी इंजीनियरिंग संयंत्र लोहे और इस्पात उद्योग के लिए आवश्यक विशाल मशीनों को डिजाइन और निर्माण कर रहा है। न केवल घरेलू बल्कि अंतर्राष्ट्रीय बाजार के लिए भी इंजीनियरिंग सामानों की विशाल रेंज का उत्पादन किया जाता है। उद्योग कठिन विदेशी मुद्रा अर्जित करता है। हिंदुस्तान मशीन टूल्स (HMT) मशीनों और सटीक उपकरणों की एक विस्तृत विविधता का उत्पादन करता है। इंजीनियरिंग में देश विकासशील दुनिया में सबसे ऊपर है। इसने कई एफ्रो-एशियाई देशों में भी ‘औद्योगिक संपदा’ स्थापित की है। भारत के इंजीनियरिंग उद्योगों कारखाना विदेशी मुद्रा कर्नाटक द्वारा निर्मित वस्तुओं का निर्यात अन्य देशों द्वारा किया जाता है। इस उद्योग के प्रमुख उत्पादन में मशीन टूल्स शामिल हैं जो औद्योगिक मशीनरी, ऑटोमोबाइल, रक्षा उपकरण, रेलवे इंजन और इलेक्ट्रिकल मशीनरी के निर्माण का आधार बनाते हैं। भारत में आजादी के बाद आधुनिक मशीन उपकरण निर्माण कारखाने शुरू हुए। पहले बड़े पैमाने पर आधुनिक उद्योग भारत सरकार द्वारा बेंगलुरु में स्थापित किया गया था। बेंगलुरु देश का प्रमुख मशीन टूल्स विनिर्माण केंद्र है, जिसके बाद कोलकाता, मुंबई, लुधियाना और रांची जैसे अन्य केंद्र हैं। विशाखापट्टनम में भारी प्लेट और पोत उपकरण निर्मित किए जाते हैं। भारी प्लेटों का उपयोग आसवन कॉलम, टैंक और विभिन्न अन्य प्रकार के जहाजों के निर्माण में किया जाता है। सामान्य मैकेनिकल इंजीनियरिंग उद्योगों में डीजल इंजन, पंप, नट, बोल्ट, नाखून, रेजर ब्लेड, साइकिल, लिफ्ट, धातु कैप्सूल, सिलाई मशीन, रेजर ब्लेड आदि का उत्पादन शामिल है। इसमें औद्योगिक मशीनरी और भारी विद्युत उपकरण का निर्माण भी शामिल है। इसके अलावा, ट्रांसफार्मर, स्विचगियर और मोटर नियंत्रण गियर उपकरण, घरेलू विद्युत मशीनों और उपकरणों, तारों, केबलों, बिजली की मोटरों और अधिक का निर्माण इंजीनियरिंग उद्योगों का एक हिस्सा है।
CM Bommai ने कहा, कर्नाटक देश में जल्द ही एथेनॉल का सबसे बड़ा उत्पादक होगा !
कनार्टक् न्यूज डेस्क . कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने शुक्रवार को कहा कि आने वाले दिनों में कर्नाटक देश के सबसे बड़े एथेनॉल उत्पादक देश के रूप में उभरेगा। एस निजलिंगप्पा शुगर इंस्टीट्यूट, बेलागवी और बक्वेस्ट कंसल्टेंसी एंड इंजीनियरिंग प्राइवेट लिमिटेड द्वारा आयोजित कर्नाटक में इथेनॉल उत्पादन पर एक सेमिनार में अपने संबोधन में उन्होंने कहा कि राज्य में, 32 चीनी मिलें इथेनॉल का उत्पादन कर रही हैं, जबकि अन्य 60 कारखाने उत्पादन शुरू करने के लिए मंजूरी प्राप्त करने के विभिन्न चरण में हैं।उन्होंने कहा कि राज्य सरकार एथनॉल नीति बना रही है।
बोम्मई ने कहा कि इथेनॉल उत्पादन के लिए राज्य और केंद्र सरकार द्वारा विशेष प्रोत्साहन प्रदान किया जाएगा, जो कि पेट्रोल में इथेनॉल मिश्रण को 20 प्रतिशत तक बढ़ाने के केंद्र के फैसले के आलोक में अगले डेढ़ साल में भारी वृद्धि देखेगा। यह देखते हुए कि न केवल गन्ने से, बल्कि धान, ज्वार और गेहूं की भूसी से भी इथेनॉल का उत्पादन किया जा सकता है। उन्होंने कहा, दुनिया स्वच्छ ऊर्जा, नवीकरणीय ऊर्जा की ओर बढ़ रही है। इथेनॉल उत्पादन और उपयोग पर अधिक शोध की आवश्यकता है। हाइड्रोजन हरित ऊर्जा के एक प्रमुख स्रोत के रूप में उभर रहा है। देश में लगभग 43 प्रतिशत नवीकरणीय ऊर्जा का उत्पादन कर्नाटक में किया जा रहा है।
राज्य सरकार ने 1.30 लाख करोड़ रुपये के बड़े निवेश प्रवाह वाले हरित ऊर्जा के उत्पादन के लिए 3 समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर किए हैं। इसमें समुद्र के पानी से अमोनिया का उत्पादन शामिल है। बोम्मई ने कहा कि ये पहल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ऊर्जा क्षेत्र में भारत को आत्मनिर्भर बनाने के मिशन को एक बड़ा धक्का देगी और भारत को 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने में मदद करेगी। कर्नाटक की अर्थव्यवस्था में चीनी कारखानों का बड़ा योगदान है। उन्होंने कहा कि कारखाना विदेशी मुद्रा कर्नाटक राज्य की 72 चीनी मिलों ने लाखों लोगों को रोजगार दिया है और किसानों की आय में वृद्धि की है। बोम्मई ने कहा कि वाहनों के लिए जीवाश्म ईंधन में इथेनॉल मिश्रण बढ़ाने के केंद्र सरकार के फैसले से न केवल देश के लिए कीमती विदेशी मुद्रा की बचत होगी, बल्कि पर्यावरण संरक्षण में भी मदद मिलेगी।
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पेट्रोलियम उत्पाद क्या होता है और इसका उत्पादन भारत में कहां किया जाता है
पेट्रोलियम उत्पाद, तेल रिफाइनरियों में संशोधित कच्चे तेल (refined crude oil) (पेट्रोलियम) से प्राप्त होने वाले विभिन्न उपोत्पादों को कहा जाता है| इन उपोत्पादों में मुख्य हैं: गैसोलीन (पेट्रोल),डीजल ईंधन,एस्फाल्ट, ईंधन तेल, मिट्टी का तेल (केरोसिन) और डामर आदि| भारत में स्वतंत्रता प्राप्ति के समय तक मात्र असम में ही खनिज तेल निकाला जाता था, लेकिन उसके बाद गुजरात तथा बाम्बे हाई में खनिज तेल का उत्खनन प्रारम्भ किया गया है।
पेट्रोलियम उत्पाद किसे कहते हैं ?
पेट्रोलियम उत्पाद, तेलशोधक कारखानों में संशोधित कच्चे तेल (refined crude oil) (पेट्रोलियम) से प्राप्त होने वाले विभिन्न उपोत्पादों (byproducts) को कहा जाता है|
क्या आपको पता है कि कच्चे तेल की सहायता से बहुत से अन्य उपोत्पाद (byproducts) लोगों की जरुरत के हिसाब से बनाये जाते हैं| इन सभी उपोत्पादों (byproducts) का मुख्य उपयोग ईंधन के रूप में किया जाता है|
image source:Business Insider
पेट्रोलियम से प्राप्त किये जाने वाले उपोत्पादों के नाम इस प्रकार हैं:
I. गैसोलीन (पेट्रोल)
II. डीजल ईंधन
III. एस्फाल्ट
IV. ईंधन तेल
V. जेट ईंधन
VI. मिट्टी का तेल (केरोसिन)
VII. द्रवीभूत पेट्रोलियम गैस (एलपीजी)
VIII. चिकनाई वाले तेल
IX. पैराफिन मोम
X. डामर
XI.पेट्रोकेमिकल्स
नीचे दिया गया ग्राफ यह दिखाता है कि एक बैरल तेल में कितना उत्पाद कितनी प्रतिशत मात्रा में पाया जाता है|
सोने और हीरे की खदानें भारत मे कहाँ पर है और इनसें कितना सोना निकलता है
एस्फाल्ट - जिसका उपयोग सड़कों तथा अन्य स्थानों के निर्माण में प्रयुक्त होने वाले एस्फाल्ट कंक्रीट का निर्माण करने के लिए बजरी को बांधकर रखने वाले पदार्थ के रूप में किया जाता है।
डामर- इस प्रयोग मूलत: सड़कों को बनाने में किया जाता है| यह काले रंग का होता है| इसकी मदद से सड़क पर बिछायी जाने वाली गिट्टी ठीक से चिपक जाती है |
पेट्रोलियम कोक, जिसका उपयोग विशिष्ट कार्बन उत्पादों (जैसे कुछ प्रकार के इलेक्ट्रोड) अथवा ठोस ईंधन में किया जाता है।
मोम (पैराफिन), जिसका इस्तेमाल अन्य चीजों के अलावा जमे हुए खाद्य पदार्थों की पैकेजिंग में किया जाता है। इसे पैकेज्ड ब्लॉक के रूप तैयार करने के लिए किसी स्थान तक भारी मात्रा में भेजा जा सकता है।
तेल रिफाइनरियों के द्वारा विभिन्न उत्पाद कैसे बनाये जाते हैं?
कच्चे कारखाना विदेशी मुद्रा कर्नाटक तेल से निकालने वाले विभिन्न उत्पाद, कच्चे तेल को अलग अलग तापमानों पर संशोधित करने पर प्राप्त होते हैं जैसे सबसे अधिक तापमान 340 0 C पर बिटुमिन मिलता है 270 0 C पर डीजल, 170 0 C पर कैरोसीन, 70 0 C पर पेट्रोल और 20 0 C पर रिफाईनरी गैस मिलती है |
जानें भारत में एक नोट और सिक्के को छापने में कितनी लागत आती है?
भारत में किन किन जगहों से तेल की खुदाई होती है?
भारत में स्वतंत्रता प्राप्ति के समय तक मात्र असम में ही खनिज तेल निकाला जाता था, लेकिन कारखाना विदेशी मुद्रा कर्नाटक उसके बाद गुजरात तथा बाम्बे हाई में खनिज तेल का उत्खनन प्रारम्भ किया गया। तेल एवं प्राकृतिक गैस आयोग द्वारा देश के स्थलीय एवं सागरीय भागो में 26 ऐसे बेसिनों का पता लगाया गया है, जहाँ से तेल-प्राप्ति की पर्याप्त संभावनाएं है। अंतर्राष्ट्रीय भू-गर्मिक सर्वेक्षण के अनुसार भारत में खनिज तेल का भंडार 620 करोड़ टन है। तेल एवं प्राकृतिक गैस आयोग ने भारत का कुल खनिज तेल भंडार 1750 लाख टन बताया है।
भारत के तीन प्रमुख क्षेत्र ऐसे हैं- जहाँ से खनिज तेल प्राप्त किया जा रहा है:
1. सबसे महत्तवपूर्ण तेल क्षेत्र उत्तरी-पूर्वी राज्यों असम तथा मेघालय में फैला है|
2. गुजरात में खम्भात की खाड़ी का समीपवर्ती क्षेत्र
3. मुम्बई तट से लगभग 176 किमी दूर अरब सागर में स्थित बाम्बे हाई नामक स्थान भी तेल उत्खनन की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हो गया है। यहाँ पर 1250 लाख टन तेल भंडार अनुमानित किये गये है।
भारत में तेल शोधन कारखाने कहां-कहां पर हैं ?
आंध्र प्रदेश के तातीपाका स्थित लघु रिफायनरी का स्वामित्व ONGC के पास है। इस समय देश में 15 सार्वजनिक क्षेत्र की रिफायनरियों के साथ साथ एक रिफायनरी निजी क्षेत्र (रिलायंस) में भी कार्यरत है। वर्तमान में भारत अपनी तेल आवश्यकता की केवल 20% पूर्ति देश में होने वाले उत्पादन से कर रहा है और बकाया का 80% तेल आयात किया जा रहा है |
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